सात्विक प्रेम का पर्व रक्षाबंधन
रक्षाबंधन पर्व सात्विक प्रेम का पर्व है। तीन नदियों के संगम की तरह यह दिन तीन उत्सवों का दिन है। श्रावणी पूर्णिमा, नारियल पूर्णिमा और रक्षाबंधन। अपनी आत्मा ही अपना भाई है और अपनी वृत्तियां ही अपनी बहन हैं। रक्षाबंधन पर्व पर राग द्वेष से ऊपर उठकर मैत्री का विकास करें एवं त्याग, संयम, प्रेम, मैत्री और अहिंसा को अपने जीवन में बनाने का संकल्प लें। रक्षाबंधन पर्व का सांस्कृतिक महत्व है। भाई-बहन का रिश्ता अद्भुत स्नेह व आकर्षण का प्रतीक है। प्रत्येक रूप में पुरुष नारी का रक्षक है। प्रत्येक पुरुष अबला के आत्मसम्मान की रक्षा के साथ-साथ अन्य जीवों की भी रक्षा करें। आज व्यक्ति ने पक्षी की तरह आकाश में उ़ड़ना सीख लिया है। आज आदमी ने मछली की तरह पानी में तैरना सीख लिया है, पर आदमी ने धरती पर इंसान की तरह चलना नहीं सीखा है। वह दूसरों की क्रिया की नकल बड़ी अच्छी तरह करता है किंतु स्वयं के असली रूप में आना भूल गया है। रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के प्रेम का त्योहार है। प्रेम वासना के रूप में प्रदर्शित हो तो इंसान को रावण और प्रेम प्रार्थना के रूप में प्रदर्शित होने पर मानव को राम बना देता है।मां का बच्चे के प्रति प्रेम ममतामयी, भाई-बहन का प्रेम अनुरागमयी, भाई-भाई के साथ प्रेम स्नेहमयी, समाज व संगठन में सौहार्दमयी, व्यक्ति का व्यक्ति से मित्रतामयी, पति का पत्नी के साथ वासनामयी, परमात्मा के प्रति भक्तिमयी और संतों के प्रति प्रेम वात्सल्यमयी हो जाता है। श्रावण व श्रावक के बंधन का दिन है रक्षाबंधन। सावन के महीने में मनुष्य होता है पावन। बचपन में पिता सुरक्षा करता है, यौवन में पति, बुढ़ापे में भाई। भाई का एक ऐसा रिश्ता है जो बचपन से लेकर बुढ़ापे तक सभी बहनों की सुरक्षा देता है। भारतीय संस्कृति में पर्वों का बहुत बड़ा महत्व होता है। पर्व यानी जो पूर्ण कर दे, तृप्त कर दे, उत्साहित कर दे। रक्षाबंधन इस देश का राष्ट्रीय पर्व है। लौकिक रिश्तों में आज के इस भयावह वातावरण में भी सबसे पावन यदि कोई रिश्ता है तो वो भाई-बहन का रिश्ता है।