समारोह में जाएं तो मुश्किल, न जाएं तो मुश्किल...
-मुकेश बिवाल, जयपुर से
जयपुर। शादियों का सीजन और चुनावी दौर... प्रत्याशी दोहरी मुसीबत में हैं। इसके उलट शादी वाले परिवार के लिए स्टेटस सिंबल। किस शादी में क्षेत्र के कितने प्रत्याशी पहुंच रहे हैं, इस पर नाते-रिश्तेदारों की नजर है। वहीं कौन प्रत्याशी किस शादी में जा रहा है, इस पर चुनाव आयोग की भी कड़ी नजर है।देवउठनी एकादशी से सावों का सीजन शुरू हुआ। तकरीबन हर दूसरे दिन सावों का मुहूर्त है। या यूं कहें कि सावों की भरमार है। इसका प्रत्याशियों को फायदा है तो नुकसान भी। प्रत्याशी पूरे दिन जनसंपर्क के बावजूद इतने लोगों से नहीं मिल पाते जितने कि एक शादी समारोह में मिल जाते हैं।शाम तक संपर्क-सभाओं के बाद अंधेरा ढलने पर प्रत्याशियों के काफिले शादी के पांडालों का रुख करते हैं। इन दिनों एक-एक प्रत्याशी अपने क्षेत्र में रोज 15-20 शादियां अटेंड कर रहा है। काफिले के पहुंचते ही मेजबान का मानो कद बढ़ जाता है।बेटी की शादी है तब तो बारातियों के सामने पिता के रुतबे में कई गुना इजाफा तय समझो। कई बार तो ऐसा संयोग भी बन रहा है कि कई-कई प्रत्याशी एक ही शादी में पहुंचते हैं।तब इनके परस्पर मिलने न मिलने पर खासा गौर किया जाता है। कुछ पल में यह चुनावी चर्चा का विषय बन जाता है। शादी वाले घरों के भीतर महिलाओं तक में इसी की खुसर-फुसर छिड़ जाती है। रूट चार्ट के साथ शादी में जाना होता है तय : अधिकांश प्रत्याशियों के अगले तीन-चार दिन के दौरे तय हैं। सुबह चुनाव कार्यालय से निकलने के पहले इनके अनुसार रूट चार्ट तय होता है। इसी समय तारीख विशेष के सारे निमंत्रण पत्र लेकर उसी के मुताबिक रूट बना लेते हैं। इस तरह रास्ते के सावे दिन में साधकर प्रत्याशी हाजिरी जरूर दर्ज करवा लेते हैं।प्रत्याशियों के लिए यह सबसे बड़ी उलझन है लोक-लाज और आचार संहिता। दोनों के बीच असमंजस। शादी में जाकर नेग-चार की परंपरा निभाना जरूरी है। लिफाफे या गिफ्ट देते कोई मोबाइल में कैद करके आचार संहिता वालों तक क्लिप तो पहुंचा ही सकता है।अव्वल तो वोट-प्रचार की बात तक मुंह से निकल जाए तब भी परेशानी की आशंका। उपहार नहीं दें या हल्का दें तो बुलाने वाले की शान के खिलाफ। अधिकांश प्रत्याशी स्वयं शादी समारोहों में जाने की कोशिश करते हैं। कुछ ने परिजनों को यह जिम्मा सौंप रखा है। बेहद जरूरी होने पर ही वे वहां जा पा रहे हैं।