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Written By वार्ता
Last Modified: झुंझुनूं , शनिवार, 30 नवंबर 2013 (07:41 IST)

राजस्थान में चुनाव प्रचार से दूर ही रहे वरिष्ठ जाट नेता

राजस्थान में चुनाव प्रचार से दूर ही रहे वरिष्ठ जाट नेता -
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झुंझुनूं। राजस्थान विधानसभा के चुनाव प्रचार से इस बार प्रभावी जाट नेता दूर ही नजर आए। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष डॉ. चन्द्रभान राजस्थान में स्टार प्रचारक होने के बावजूद अपने चुनाव क्षेत्र मंडावा को छोड़कर किसी अन्य चुनाव क्षेत्र में प्रचार करने नहीं गए।

मंडावा में कांग्रेस की मौजूदा विधायक रीटा चौधरी के बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ने से डॉ. चन्द्रभान कड़े संघर्ष में फंस गए। इस कारण डॉ. चन्द्रभान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष होने के बावजूद कहीं चुनाव प्रचार करने नहीं जा पाए हैं।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व केन्द्रीय मंत्री शीशराम ओला भी राजस्थान विधानसभा चुनाव में स्टार प्रचारक थे मगर उनके बीमार होने से वो भी कहीं कांग्रेस प्रत्याशियों के पक्ष में चुनाव प्रचार करने नहीं जा पाए। राजस्थान के जाटों में मिर्धा परिवार का बड़ा दबदबा रहा है लेकिन कांग्रेस ने इस बार रामनिवास मिर्धा के पुत्र हरेन्द्र मिर्धा का टिकट काट देने से उन्होंने कांग्रेस से बगावत कर नागौर सीट से निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर गए।

हरेन्द्र मिर्धा के निर्दलीय चुनाव लड़ने से कांग्रेस को नुकसान होने की संभावना बढ़ गई है। जाटों के प्रभावी जाट नेता रहे नाथूराम मिर्धा के परिवार से उनकी पोती ज्योति मिर्धा नागौर से कांग्रेस की सांसद हैं मगर वे भी नागौर के बाहर कहीं प्रचार के लिए नहीं निकल पा रही हैं।

जाटों के बड़े नेता परसराम मदेरणा स्वयं वृद्ध होने व उनके विधायक पुत्र महिपाल मदेरणा के भंवरी देवी प्रकरण में जेल में बंद होने से मदेरणा परिवार मनोवैज्ञानिक रूप से दबाव में है। महिपाल की पत्नी लीला मदेरणा को कांग्रेस ने टिकट दिया है मगर वे खुद अपनी जीत के लिए संघर्ष कर रही हैं। कुम्भाराम आर्य की पुत्रवधु सुचित्रा आर्य कांग्रेस में हैं मगर उनका जाटों पर असर नहीं है वे स्वयं पिछला विधानसभा चुनाव हार चुकी हैं।

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे नारायण सिंह भी कहीं चुनाव प्रचार में नहीं जा पा रहे हैं। नारायण सिंह खुद पिछला विधानसभा चुनाव दांतारामगढ़ से माकपा के अमराराम से हार गए थे। इस बार फिर वह दांतारामगढ़ में माकपा के अमराराम व भाजपा के हरीश कुमावत के सामने त्रिकोणीय संघर्ष में फंसे हुए हैं।

छह बार विधायक रहे नारायण सिंह के लिए इस बार का चुनाव महत्वपूर्ण है। यदि इस बार भी वो हार जाते हैं तो फिर उनके राजनीतिक जीवन का अंतिम चुनाव साबित होगा इस कारण वो हरसंभव चुनाव जीतने का प्रयास कर रहे हैं। इस कारण उनका पूरा समय अपने स्वयं के चुनाव प्रचार में ही बीत रही है। (वार्ता)