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Last Updated : शनिवार, 1 फ़रवरी 2025 (17:38 IST)

कुंभ महापर्व: ज्योतिषीय योग एवं महत्व

कुंभ महापर्व: ज्योतिषीय योग एवं महत्व - Kumbh Mahaparva: Astrological Yoga and Importance
Prayagraj Mahakumbh 2025 Astrology: सनातन धर्म तथा भारतीय संस्कृति में कुंभ का विशेष महत्व है, कुंभ का बहुत विस्तृत अर्थ है। सामान्यतया कुंभ शब्द का तात्पर्य घट, घड़ा या कलश से लिया जाता है परंतु सनातन धर्म में कुंभ शब्द मंगल सूचक तथा शुभ संकेत माना जाता है। पौराणिक काल से आधुनिक युग तक प्रत्येक मांगलिक कार्यों चाहे वह किसी का विवाह हो, भूमि पूजन हो या गृह प्रवेश सभी में कुंभ का उपयोग किया जाता है। यहां पर कुंभ प्रयोजन से तात्पर्य महाकुंभ पर्व से है पौराणिक मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन के समय भगवान धन्वंतरि अमृत से भरा कलश लेकर प्रकट हुए जिसको पाने की इच्छा से देवता तथा असुरों में संघर्ष हुआ तथा इसी संघर्ष में चार स्थान जिसमें प्रयागराज, उज्जैन, नासिक तथा हरिद्वार में अमृत बूंदे गिर गई, जहां पर कुंभ महापर्व का आयोजन किया जाता है। इस क्रम में 14 जनवरी 2025 से कुंभ महापर्व का आयोजन प्रयागराज में किया जा रहा है जिसका धार्मिक एवं ज्योतिषी महत्व है।
ज्योतिषीय कुंभ योग:
1. वृषभ राशि पर बृहस्पति हो तथा मकर राशि पर सूर्य का प्रवेश हो तो माघ महीने की अमावस्या को प्रयाग में कुंभ योग बनता है।
2. माघ महीने में सूर्य तथा चंद्रमा मकर राशि पर हो तथा वृषभ राशि पर गुरु हो तो अमावस्या के दिन तीर्थराज प्रयाग में कुंभ का महापर्व आयोजित होता है।
 
उज्जैन, नासिक, प्रयागराज तथा हरिद्वार इन चार स्थानों में कुंभ का आयोजन किया जाता है। परंतु चारों का समय और स्नान का योग अलग-अलग होता है। प्रत्येक 12 वर्षों के पश्चात सूर्य, चंद्र तथा गुरु के योग से घटित होने वाला महाकुंभ विशेष शुभ फल देने वाला होता है। इस वर्ष 14 जनवरी 2025 को गुरु वृषभ राशि में विराजमान थे तथा सूर्य ने 14 जनवरी को मकर राशि में प्रवेश किया था। इसलिए शास्त्रनुसार प्रयागराज में कुंभ महापर्व का आयोजन किया गया है, कुंभ महापर्व का वर्णन हमारे धार्मिक ग्रंथो में विस्तार से बताया गया है। 
 
कुंभ स्नान का तत्काल प्रभाव प्राप्त होता है की कौवा कोयल के रूप में आ जाता है और बगुले हंस की गति को पा जाते हैं। प्रयागराज में गंगा, जमुना और सरस्वती का संगम है, संगम को ही प्रयाग कहते हैं अतः तीन महान नदियों के मिलने से वह स्थान तीर्थ हो जाता है। इन तीन नदियों के मिलन से बना तीर्थ तीर्थराज प्रयाग कहलाया। भारत भूमि पर महाकुंभ कब से मनाया जाता है इसके ठोस प्रमाण प्राप्त नहीं हो सके। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवासुर संग्राम से इसका आरंभ माना जाता है। मध्यकालीन युग में राजा हर्षवर्धन के काल से प्रयाग कुंभ में भाग लेने का वर्णन मिलता है। राजा हर्षवर्धन पुण्यात्मा थे तथा दान, पुण्य, धाम, अनुष्ठान करते थे तभी से कुंभ पर्व का वर्णन मिलता है।