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Written By प्रीति सोनी

धारा 497 पर फैसला : सुलग रहे हैं कुछ सवाल...

धारा 497 पर फैसला : सुलग रहे हैं कुछ सवाल... - Section 497 Adultery Law
संविधान की धारा 497 पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए इस धारा को ही समाप्त कर दिया। इसके अंतर्गत उन पुरुषों को 5 साल की सजा का प्रावधान था, जो किसी विवाहित महिला के साथ, उसकी सहमति से या बगैर सहमति के संबंध बनाता है। लेकिन वह भी तब, जब महिला के पति द्वारा इस मामले की शिकायत, सबूत के साथ दर्ज कराई जाए। 
 
विवाहेतर संबंध के इस मामले में महिला किसी भी तरह कानूनी तौर पर अपराधी नहीं मानी जाती। यहां महिला को किसी तरह का अधिकार नहीं है कि वह इस तरह की शिकायत का समर्थन या नकार सके। दूसरी ओर अगर आरोपी पुरुष विवाहित है, तो उसकी पत्नी को भी इस संबंध में शिकायत दर्ज करने का कोई अधिकार नहीं है। 
अब सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार से जुड़ी कानून की इस धारा को असंवैधानिक करार दिया है। 
 
इसके बाद विवोहतर संबंध किसी भी तरह के अपराध की श्रेणी से बाहर होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर फैसला सुनाते हुए चीन, जापान और ब्राजील जैसे देशों का भी उदाहरण दिया जहां पर इस तरह के मामलों को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जाता। लेकिन इससे जुड़े अनेकों सवाल देश के कई लोगों के मन में उठ रहे हैं, जिसका जवाब न मिल पाना, समाज के लिए खतरे से कम नहीं है - 
 
1 भारत सांस्कृतिक आधार पर अपनी अलग पहचान रखता है, जहां नैतिकता को महत्व दिया जाता है और धर्म को सर्वोपरि... ऐसे में व्यभिचार के इस मामले में कानून के लिहाज से क्या अन्य देशों को उदाहरण के तौर पर पेश किया जा सकता है?
 
2 क्या हिन्दू संस्कृति वाले इस देश में इस तरह के क्रांतिकारी फैसले, समाज की दिशा को तय नहीं करते? अगर हां, तो व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर रखना समाज में क्या संदेश देता है?  
 
3 कानून हमेशा समाज में एक व्यवस्था बनाने और उनके सही संचालन के लिए होते हैं, लेकिन यह फैसला समाज में कैसी व्यवस्था बनाएगा? 
 
4 मानवीय दृष्टिकोण से या व्यक्तिगत तौर पर विवाहेतर संबंध किसी का चुनाव हो सकता है, लेकिन क्या यह समाज के बड़े तबके को प्रभावित नहीं करता?  
 
5 अपराध की श्रेणी से बाहर करके व्यक्तिगत स्वतंत्रता देना सही हो सकता है, लेकिन क्या यह जीवनसाथी के प्रति वफादारी और उत्तरदायित्व को प्रभावित नहीं करता, अगर करता है तो यह मानसिक विकृतियों का कारण बन सकता है।  
 
6 इस फैसले में इस बात पर तो ध्यान दिया गया है कि पुरुष हमेशा फुसलाने वाला और महिला हमेशा पीड़ित नहीं हो सकती.... लेकिन संबंधित अन्य जो मानसिक तौर पर पीड़ित हैं उनकी ओर कोर्ट का ध्यान नहीं गया 
 
7 इस फैसले के बाद, चूंकि विवाहेतर संबंध अब कानूनी तौर अपराध नहीं होंगे, ऐसे नैतिक अपराधों में इजाफा हो सकता है और संभवत: तलाक के उन मामलों में भी जिसका कारण व्यभिचार हो।
 
8 अब कोई भी विवाहित व्यक्ति विवाह नामक संस्था की गरिमा बनाए रखने के लिए बाध्य नहीं रह जाएगा, बल्कि वह बेखौफ स्वेच्छा से विवाहेतर संबंध रख सकता है।
 
9 यह फैसला कहीं न कहीं विवाह नामक संस्था और पवित्र रिश्ते के महत्व को कम करता है।  
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