Amethi Lok Sabha Seat: पिछले लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी को 55 हजार से ज्यादा वोटों से हराने वालीं स्मृति ईरानी (Smriti Irani) के लिए इस बार मुकाबला आसान दिखाई नहीं दे रहा है। 2019 में राहुल को हराकर भाजपा की कद्दावर नेता के रूप में उभरीं स्मृति को इस बार ज्यादा मेहनत करनी पड़ रही है। अमित शाह से लेकर जेपी नड्डा तक भाजपा के दिग्गज नेता ईरानी के समर्थन में रैलियां और रोड शो कर चुके हैं। कांग्रेस ने यहां से गांधी परिवार के करीबी किशोरीलाल शर्मा ( Kishorilal Sharma) को मैदान में उतारा है। इस बार कांग्रेस को सपा का समर्थन भी हासिल है।
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स्मृति की लोकप्रियता ज्यादा : लोकप्रियता के मामले में देखें तो शर्मा स्मृति ईरानी के सामने कहीं नहीं ठहरते, लेकिन उनके पक्ष में सबसे बड़ी बात यह है कि वे चुनाव प्रबंधन में माहिर हैं। वे लंबे समय से रायबरेली और अमेठी में गांधी परिवार का चुनाव प्रबंधन देखते आ रहे हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि वे गली-मोहल्लों तक लोगों से काफी करीब से जुड़े हुए हैं। छोटे-मोटे लोगों के पास भी उनके मोबाइल नंबर मिल जाएंगे। यहां के ब्राह्मण वोट का झुकाव शर्मा के पक्ष में रह सकता है। चूंकि यह गांधी परिवार की परंपरागत सीट है, इसका भी शर्मा को फायदा मिल सकता है। मूलत: लुधियाना के रहने वाले शर्मा खत्री ब्राह्मण हैं। राजीव गांधी के करीबी थे, उन्हीं के साथ पहली बार अमेठी आए थे और फिर यहीं के होकर रह गए।
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टक्कर तगड़ी है : अमेठी क्षेत्र के
बहादुरपुर इलाके के
रामभरोसे ने बताया कि इस बार टक्कर तगड़ी दिखाई दे रही है। परिणाम का पहले से अनुमान लगाना काफी कठिन है। स्मृति ईरानी भी इस बात को समझ रही हैं, इसीलिए वे अमेठी छोड़कर बाहर नहीं गईं। उन्हें क्षेत्र में होने वाले शादी-विवाह के कार्यक्रम में देखा जा रहा है। वे इसके माध्यम से लोगों से जुड़ने की कोशिश कर रही हैं। एक प्रधान के यहां तो वे हल्दी के कार्यक्रम में भी पहुंच गई थीं। कहने का तात्पर्य यह है कि इस बार उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ रही है।
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स्मृति राम मंदिर और मोदी से उम्मीद : स्मृति ईरानी के पक्ष में सबसे बड़ी बात राम मंदिर का निर्माण और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का चेहरा है। ये दोनों ही बातें भाजपा उम्मीदवार के लिए प्लस पॉइंट साबित हो सकती हैं। ईरानी के पक्ष में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा रैली कर चुके हैं, वहीं अमित शाह ने प्रचार के आखिरी दिन रोड शो करके माहौल बनाया। नड्डा ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर तीखा हमला बोलते हुए कहा था कि जो अमेठी के सगे नहीं हुए वे रायबरेली के क्या होंगे।
वहीं, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने ने अमेठी क्षेत्र में रैली के दौरान प्रधानमंत्री मोदी पर जमकर निशाना साधा। प्रियंका गांधी ने कहा- उन्होंने (मोदी) कभी आपका कष्ट नहीं सुना, लेकिन आपने जिसे हराया, वह यानी मेरे भाई (राहुल गांधी) कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक देशवासियों की समस्या सुनने के लिए 4000 किलोमीटर पैदल चले हैं। यह विचारधारा और राजनीतिक सभ्यता का फर्क है। जगदीशपुर के बृजेश शर्मा भाजपा की जीत प्रति आश्वस्त दिखाई दिए। उन्होंने कहा कि इस बार सबसे बड़ा मुद्दा राम मंदिर ही रहेगा। और, भाजपा उम्मीदवार स्मृति ईरानी पर रामजी की कृपा बरसने जा रही है।
राजपूतों का विरोध : राजपूतों का बड़ा वर्ग यूं तो भाजपा समर्थक माना जाता है, लेकिन गुजरात में राजकोट सीट से भाजपा प्रत्याशी पुरुषोत्तम रूपाला की टिप्पणी के बाद यह वर्ग भाजपा से नाराज है। राजपूत करणी सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष महीपाल सिंह ने हाल ही में कहा था कि जो पार्टी महिलाओं का सम्मान नहीं करती, हम उसका विरोध करते हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा के नेता महिलाओं का अपमान करते हैं और पार्टी मुखिया और शीर्ष नेतृत्व चुप्पी साधे रहता है। दरअसल, रूपाला की टिप्पणी का असर गुजरात से बाहर राजस्थान और उत्तर प्रदेश में देखने को मिला है।
अमेठी के जातीय समीकरण : अमेठी लोकसभा सीट पर सबसे ज्यादा 34 फीसदी ओबीसी वोट हैं, दलित वर्ग के मतदाताओं की भी यहां अच्छी-खासी तादाद है, जो कि करीब 26 प्रतिशत है। यहां 8 फीसदी ब्राह्मण और 12 प्रतिशत राजपूत मतदाता हैं। 20 फीसदी के लगभग यहां मुस्लिम मतदाता हैं।
5 विधानसभा सीटों में बंटा है संसदीय क्षेत्र : लोकसभा सीट के विधानसभा चुनाव परिणामों पर नजर डालें तो यह 5 विधानसभा सीटों में बंटा हुआ है। गौरीगंज और अमेठी में समजावादी पार्टी के विधायक हैं, जबकि जगदीशपुर, सलोन और तिलोई में भाजपा के विधायक हैं। इस दृष्टि से देखें तो भाजपा का पलड़ा भारी है। हालांकि विधानसभा और लोकसभा के मुद्दे अलग-अलग होते हैं।
क्या है अमेठी सीट का इतिहास : इस सीट के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो यहां सबसे ज्यादा 13 बार (उपचुनाव सहित) कांग्रेस ने जीत हासिल की, जबकि 1977 में आपातकाल के बाद हुए चुनाव में जनता पार्टी जीत मिली। 1977 में इस सीट पर कांग्रेस के दिग्गज नेता संजय गांधी को भी हार का सामना करना पड़ा था। उसी साल इंदिरा गांधी रायबरेली में पराजित हुई थीं। 1998 में पहली बार इस सीट पर भाजपा का खाता खुला, जब संजय सिंह चुनाव जीते। 1999 में सोनिया गांधी भी यहां से सांसद रह चुकी हैं। राहुल गांधी यहां से लगातार तीन बार (2004-2014) सांसद रहे हैं, लेकिन 2019 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। बड़ा सवाल यह है कि अमेठी सीट पर स्मृति ईरानी अपनी जीत को दोहराती हैं या फिर यह सीट एक बार फिर कांग्रेस की झोली में जाएगी।