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  4. Pawan Singh increases NDA problems in Karakat, contest becomes triangular
Last Modified: मंगलवार, 14 मई 2024 (17:19 IST)

काराकाट में पवन सिंह ने बढ़ाई NDA की मुश्किल, मुकाबला हुआ त्रिकोणीय

Karakat Lok sabha seat
Karakat Lok Sabha Seat of Bihar: भोजपुरी स्टार पवन सिंह ने बिहार की काराकाट लोकसभा सीट पर मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। पश्चिम बंगाल की आसनसोल सीट से भाजपा का टिकट ठुकराने के बाद पवन ने काराकाट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। जिस तरह से उनके नामांकन में भीड़ उमड़ी है, उससे उनको कमजोर नहीं आंका जा सकता है। दूसरी ओर, इस सीट पर प्रियंका चौधरी की एंट्री ने मुकाबले को रोचक बना दिया है। 
 
दरअसल, पश्चिम बंगाल की आसनसोल लोकसभा सीट मुकाबले को बिहारी बनाम बिहारी बनाना चाहती थी, लेकिन पवन सिंह ने भाजपा की इस पेशकश को ठुकरा दिया। तृणमूल ने आसनसोल से बिहारी बाबू के नाम से मशहूर शत्रुघ्न सिन्हा को टिकट दिया है। काराकाट सीट परिसीमन के बाद 2009 में अस्तित्व में आई है। इससे पहले यह सीट बिक्रमगंज के नाम से जानी जाती थी। वर्तमान में इस सीट से जदयू के महाबली सिंह सांसद हैं, लेकिन एनडीए में हुए सीटों के बंटवारे में यह सीट जदयू के हाथ से निकल गई। 2019 में महाबली ने उपेन्द्र कुशवाहा को 84 हजार से ज्यादा मतों से हराया था। ALSO READ: Rae Bareli: रायबरेली में आसान नहीं है राहुल गांधी की राह, दादी इंदिरा गांधी को भी झेलनी पड़ी थी शिकस्त
 
कुशवाहा का पवन पर निशाना : एनडीए ने यहां से उपेन्द्र कुशवाहा को टिकट दिया है। उपेन्द्र मई 2014 से दिसंबर 2018 तक में मोदी कैबिनेट में मंत्री रह चुके हैं। किसी समय जदयू का हिस्सा रहे कुशवाहा नीतीश कुमार से मतभेद के चलते पार्टी से अलग हो गए थे और उन्होंने रालोसपा के नाम से नई पार्टी बना ली। पवन की एंट्री ने उपेन्द्र की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। पवन के मैदान में उतरने के बाद कुशवाहा ने उन पर निशाना साधते हुए कहा- ग्लैमर से राजनीति नहीं चलती है, राजनीति मुद्दों से चलती है। लोगों की समस्याओं का कितना निराकरण किया जाता है यह महत्वपूर्ण होता है। 
 
पॉवर स्टार के नाम से मशहूर पवन सिंह को अपने साथी सितारों का भी साथ मिल रहा है। भोजपुरी अभिनेता खेसारी लाल यादव ने कहा कि अगर पवन उनको बुलाएंगे तो वह जरूर उनके लिए चुनाव प्रचार करने जाएंगे। उन्होंने कहा कि भाई पवन सिंह को मेरी तरफ से शुभकामनाएं। वे संसद पहुंचकर हमारी भाषा, सिनेमा, शिक्षा और रोजगार के लिए आवाज उठाएं। यदि यादव वोट पवन को मिलते हैं, तो वे परिणाम को बदल भी सकते हैं। खेसारी यादव के पिता ने भी पवन सिंह का समर्थन किया है। ALSO READ: किसकी जीत की खुशबू से महकेगा कन्नौज, दिग्गज समाजवादी लोहिया भी जीत चुके हैं यहां से लोकसभा चुनाव
 
राजाराम का पलड़ा भारी : विधानसभा चुनाव के परिणामों पर नजर डालें तो इस सीट पर महागठबंधन के उम्मीदवार राजाराम सिंह का पलड़ा भारी दिखाई दे रहा है। इस संसदीय क्षेत्र में 6 विधानसभा सीटें- नोखा, डेहरी, काराकाट, गोह, ओबरा और नबीनगर आती हैं। काराकाट सीट पर पर सीपीआईएमएल के अरुण कुशवाह विधायक हैं, जबकि शेष सभी सीटों पर राष्ट्रीय जनता दल के विधायक हैं।
जातियां बिगाड़ेंगी उम्मीदवारों का गणित : काराकाट सीट पर सबसे ज्यादा मतदाता यादव हैं, जिनकी संख्‍या करीब 3 लाख है। कुर्मी और कोईरी मतदाताओं की संख्या ढाई लाख के लगभग है, डेढ़ लाख यहां मुस्लिम मतदाता हैं। ढाई लाख के लगभग यहां राजपूत वोटर हैं। 2 लाख वैश्य और 75 हजार ब्राह्मण हैं, 50 हजार के लगभग भूमिहार हैं। कुशवाहा और कुर्मी वोट उपेन्द्र और राजाराम के बीच बंट सकते हैं। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने प्रियंका चौधरी काराकाट से टिकट देकर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है। चौधरी महागठबंधन के मुस्लिम वोटरों में सेंध लगा सकती हैं। मल्लाह वोट भी उनके खाते में जा सकते हैं। ALSO READ: बदायूं में सपा और भाजपा का नए चेहरों पर दांव, शिवपाल के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न
 
क्या है उपेन्द्र कुशवाहा की मुश्किल : राजपूत वोटरों की अच्छी संख्‍या होने का पवन सिंह को फायदा मिल सकता है। वे युवाओं में भी काफी लोकप्रिय हैं। यदि पवन चुनाव नहीं भी जीत पाते हैं तो वे उपेन्द्र कुशवाहा का ज्यादा नुकसान करेंगे। क्योंकि कुशवाहा को मिलने वाले सवर्ण वोट उनके खाते में चले जाएंगे। उपेन्द्र कुशवाहा को वर्तमान सांसद महाबली कुशवाहा समर्थकों से भीतरघात का भी खतरा रहेगा। महाबली इस सीट पर 2 बार के सांसद हैं। चूंकि वे वर्तमान में सांसद हैं साथ ही उनका टिकट भी काट दिया गया है, ऐसे में वे कभी नहीं चाहेंगे कि उपेन्द्र इस सीट से जीतें। नीतीश कुमार के साथ भी उपेन्द्र के संबंध अच्छे नहीं हैं। ऐसे में उन्हें नुकसान झेलना पड़ सकता है। यदि मोदी का चेहरा चला तो ही उनकी नैया पार हो सकती है।  
 
काराकाट सीट का इतिहास : यह सीट परिसीमन के बाद 2009 में अस्तित्व में आई है। इससे पहले यह सीट बिक्रमगंज के नाम से जानी जाती थी। 2009 में इस सीट पर पहला चुनाव जदयू के महाबली सिंह ने जीता। 2019 में वे एक बार फिर सांसद बने। 2014 में उपेन्द्र कुशवाहा को इस सीट पर जीत मिली।

बिक्रमगंज सीट 1962 में अस्तित्व में आई। यहां से पहला चुनाव कांग्रेस के रामसुभग सिंह ने जीता। कांग्रेस ने 5 बार इस सीट से चुनाव जीता। 1984 में तपेश्वर सिंह आखिरी बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते थे। इसके बाद कांग्रेस कभी भी इस सीट पर वापसी नहीं कर पाई। तीन बार इस सीट पर जनता दल के उम्मीदवार चुनाव जीते, जबकि 1998 में बशिेष्ठ नारायण सिंह समता पार्टी के टिकट पर जीते। 1999 में कांति सिंह राजद के टिकट पर चुनाव जीतीं, जबकि 2004 में जदयू के टिकट पर अजीत कुमार सिंह चुनाव जीते। 
 
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