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Last Modified: गुरुवार, 11 अगस्त 2022 (16:17 IST)

12 अगस्त शुक्रवार वरलक्ष्मी व्रत की कैसे की जाती है पूजा, पढ़ें कथा

12 अगस्त शुक्रवार वरलक्ष्मी व्रत की कैसे की जाती है पूजा, पढ़ें कथा - Varalakshmi Vrat And Katha
Varalakshmi Vrat: श्रावण मास के समाप्त होने के बाद जो पहला शुक्रवार आता है उस दिन वरलक्ष्मी का व्रत रखा जाता है। इस बार यह व्रत 12 अगस्त को रखा जाएगा। आओ जानते हैं कि क्या महत्व है इस व्रत का और कैसे की जाती है इसमें पूजा।
 
महत्व : इस दिन माता लक्ष्मी के वरलक्ष्मी स्वरूप की पूजा की जाती है। वरलक्ष्मी का व्रत रखने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। विवाहित महिलाएं वरलक्ष्मी व्रत को पति और बच्चों दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए रखती हैं। वरलक्ष्मी की पूजा से सभी आठों यानी अष्टलक्ष्मी की पूजा फल मिलता है। यानी प्रेम, धन, शक्ति, शांति, प्रसिद्धि, खुशी, पृथ्वी और विद्या की आठ देवी।
 
शोभन योग- 12 अगस्त सुबह 11 बजकर 33 मिनट से 13 अगस्त सुबह 07 बजकर 49 मिनट तक।
 
वरलक्ष्मी कैसे करें पूजा :
1. पूजा सामग्री : नारियल, चंदन, हल्दी, कुमकुम, कलश, लाल वस्त्र, अक्षत, फल, फूल, दूर्वा, दीप, धूपस माला, हल्दी, मौली, दर्पण, कंघा, आम के पत्ते, पान के पत्ते, दही, केले, पंचामृत, कपूर दूध और जल इकट्ठा कर लें।
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2. पूजा विधि :
- प्रातः काल नित्य कर्मों से निपटकर पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें।
- पूजा स्थान पर लकड़ी का पाट लगाएं और उस पर लाल रंग का साफ वस्त्र बिछाएं।
- अब उस पर माता लक्ष्मी और गणेशजी की मूर्ति स्थापित करें। 
- सभी मूर्ति या चित्र को जल छिड़कर स्नान कराएं और फिर व्रत का संकल्प लें। 
- अब मूर्ति या तस्वीर के दाहिने ओर चावल की ढेरी के उपर जलभरा कलश रखें।
- कलश के चारों ओर चंदन लगाएं, मौली बांधें और कलश की पूजा करें।
- अब माता लक्ष्मी और गणेश के समक्ष धूप-दीप और घी का दीपक प्रज्वलित करें।
- इसके बाद फूल, दूर्वा, नारियल, चंदन, हल्दी, कुमकुम, माला, नैवेद्य अर्पित करें यानी षोडोषपचार पूजा करें।
- मां वरलक्ष्मी को सोल श्रृंगार अर्पित करें और उन्हें भोग लगाएं। 
- इसके बाद माता के मंत्रों का जाप करें।
- अंत में माता की आरती करें। आरती करके सभी के बीच प्रसाद का वितरण कर दें।
- पूजा और आरती के बाद वरलक्ष्मी व्रत कथा का पाठ करें।
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वरलक्ष्मी व्रत कथा:- 
कहा जाता है कि भगवान शिव जी ने माता पार्वती वरलक्ष्मी व्रत की कथा सुनाई थी। इस व्रत की कथा के अनुसार मगध देश में कुंडी नामक एक नगर था। उस नगर का निर्माण सोने से हुआ था। उस नगर में चारुमती नाम की एक महिला रहती थी। चारुमती अपने पति का बहुत ख्याल रखती थी और वह माता लक्ष्मी की बहुत बड़ी भक्त थी। 
 
चारुमती हर शुक्रवार माता लक्ष्मी का व्रत करती थी और लक्ष्मी जी भी उससे से बहुत प्रसन्न रहती थी। एक बार मां लक्ष्मी ने चारुमती के सपने में आकर उसको इस व्रत के बारे में बताया। तब चारुमती से उस नगर की सभी महिलाओं के साथ मिलकर विधि-पूर्वक इस व्रत को रखा और मां लक्ष्मी की पूजा की। जैसे ही चारुमती की पूजा संपन्न हुई, वैसे ही उसके शरीर पर सोने के कई आभूषण सज गए तथा उसका घर भी धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया। उसके बाद नगर की सभी महिलाओं ने भी इस व्रत को रखना शुरू कर दिया। तभी से इस व्रत को वरलक्ष्मी व्रत के रूप में मान्यता मिल गई।
 
अब प्रत्येक वर्ष महिलाएं इस व्रत को विधिपूर्वक करने लगी। यह व्रत अपार धन-संपत्ति देने वाला व्रत है। इस व्रत को रखने से धन संबंधी सारी दिक्कतें दूर होकर दिन-प्रतिदिन घर में धन-समृद्धि बढ़ती जाती है। 
  
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