वैकुंठ चतुर्दशी कब है? जानिए हरि-हर मिलन के इस दिन का महत्व, मुहूर्त, पूजा विधि और कथा
Vaikunth Chaturdashi 2021 हिंदू धर्मग्रंथों में वैकुंठ चतुर्दशी का बहुत अधिक महत्व माना गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान वैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव और श्रीहरि विष्णु के पूजन का विधान है। प्रतिवर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को यह पर्व मनाया जाता है।
वर्ष 2021 में यह त्योहार बुधवार, 17 नवंबर 2021 को मनाया जा रहा है। कैलेंडर के मत-मतांतर के चलते वैकुंठ चतुर्दशी पर्व कहीं 17 नवंबर को तो कई स्थानों पर 18 नवंबर 2021 को किया जाएगा। कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन श्राद्ध, तर्पण आदि कार्य करने की भी विशेष मान्यता है।
मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान भोलेनाथ देवशयनी से लेकर देवउठनी एकादशी तक चार महीने सृष्टि का भार संभालने के बाद पुन: भगवान विष्णु को सौंप देते हैं। जब चार महीने के लिए भगवान विष्णु शयन निद्रा में चले जाते हैं, तब सृष्टि की संचालन भगवान शिव करते हैं और देवप्रबोधिनी एकादशी के बाद जब विष्णु जाग जाते हैं तब शिव जी उन्हें यह सृष्टि वापस दे देते हैं। इस दिन विष्णु जी की कमल पुष्पों से पूजा करनी चाहिए तथा भगवान शिव की पूजा भी करनी चाहिए।
इस दिन जो मनुष्य भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना पूरे मनोभाव से करते हैं उन्हें वैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। यह दिन भगवान शिव और विष्णु जी के मिलन को दर्शाता है, अत: वैकुंठ चतुर्दशी को हरिहर का मिलन भी कहा जाता है।
Vaikunth Chaturdashi muhurat वैकुंठ चतुर्दशी के मुहूर्त-
इस बार Vaikunth Chaturdashi चतुर्दशी तिथि का प्रारंभ 17 नवंबर, दिन बुधवार को प्रातः 09.50 मिनट से शुरू होगी तथा गुरुवार, 18 नवंबर 2021 को दोपहर 12.00 बजे चतुर्दशी तिथि का समापन होगा।
व्रत पूजन विधि- Vaikunth Chaturdashi date puja vidhi
कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी यानी वैकुंठ चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल स्नानदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इस दिन वैकुंठ के अधिपति भगवान विष्णु की पूजा-आराधना करने का विधान है। भगवान के समक्ष व्रत का संकल्प करें और पूरे दिन व्रत करें। रात्रि के समय कमल के पुष्पों से भगवान विष्णु की पूजन करें। तत्पश्चात भगवान शिव का विधि-विधान के साथ पूजन करें। दूसरे दिन प्रातः उठकर शिव जी का पूजन करके जरूरतमंद को भोजन करवाने के पश्चात व्रत का पारण करें।
Vaikunth Chaturdashi story कथा- एक बार भगवान विष्णु शिव जी का दर्शन करने महादेव की नगरी काशी में आए। उसके बाद उन्होंने मणिकर्णिका घाट पर स्नान करने के पश्चात एक हजार स्वर्ण कमलों से शिव जी का पूजन करने का संकल्प लिया।
विष्णु जी की परीक्षा लेने के उद्देश्य से शिव जी ने उन स्वर्ण कमलों में से एक कमल कम कर दिया। तब उस कमल की पूर्ति करने के लिए विष्णु जी ने अपने नयन कमल शिव जी को अर्पित करने का विचार किया। जैसे ही विष्णु जी अपने नयन अर्पित करने को तत्पर हुए, शिव जी प्रकट हो गए और विष्णु जी से कहा कि आपके समान मेरा कोई भक्त नहीं है। आज से कार्तिक मास की चतुर्दशी 'वैकुंठ चतुर्दशी' के नाम से जानी जाएगी। विष्णु जी की भक्ति से प्रसन्न होकर शिव जी ने उन्हें सुदर्शन चक्र प्रदान किया।
शिव जी ने कहा कि वैकुंठ चतुर्दशी के दिन व्रत-उपवास रखकर जो भक्त सबसे पहले आपका (विष्णु जी) पूजन करेगा, उसे वैकुंठ की प्राप्ति होगी।