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Written By WD Feature Desk
Last Updated : गुरुवार, 1 अगस्त 2024 (10:30 IST)

Guru Pradosh Vrat 2024: गुरु प्रदोष व्रत के शुभ मुहूर्त, कथा और सरल पूजा विधि

Guru Pradosh Vrat 2024: गुरु प्रदोष व्रत के शुभ मुहूर्त, कथा और सरल पूजा विधि - Today Guru Pradosh Vrat
Highlights
 
* 01 अगस्त को गुरु प्रदोष व्रत। 
* गुरु प्रदोष पूजा के मुहूर्त।
* गुरु प्रदोष व्रत के बारे में जानें।
Pradosh Vrat : हिंदू पंचांग कैलेंडर के अनुसार वर्ष 2024 में अगस्त माह का पहला प्रदोष व्रत (त्रयोदशी तिथि) यानी गुरु प्रदोष व्रत दिन गुरुवार, 01 अगस्त 2024 को रखा जा रहा है। शास्त्रों के अनुसार सायंकाल के समय को प्रदोष काल कहा जाता है।

मान्यतानुसार गुरु प्रदोष व्रत शुभ, मंगलकारी तथा शिव की अपार कृपा दिलाने वाला माना गया है। अत: प्रदोष व्रत के दिन सायंकाल में पूजन किया जाता है। इस व्रत से देवगुरु बृहस्पति की भी कृपा प्राप्त होती है। यह व्रत सौ गायों का दान करने के बराबर फल देने वाला कहा गया है। 
 
पूजा विधि : 
- इस दिन पूजन के लिए एक जल से भरा हुआ कलश, बेल पत्र, धतूरा, भांग, कपूर, सफेद और पीले पुष्प एवं माला, आंकड़े का फूल, सफेद और पीली मिठाई, सफेद चंदन, धूप, दीप, घी, सफेद वस्त्र, आम की लकड़ी, हवन सामग्री, 1 आरती के लिए थाली सभी सामग्री को एकत्रित करके रख लें। 
 
- त्रयोदशी तिथि के दिन सायं के समय प्रदोष काल में भगवान शिव जी का पूजन किया जाता है। 
 
- इस तिथि पर देवगुरु बृह‍स्पति तथा शिव-पार्वती जी का पूजन किया जाता है। 
 
- आज के शुभ मंत्र- 
- 'ॐ नम: शिवाय:' 
- 'ॐ बृं बृहस्पतये नम:' 
इसका जाप करना अधिक महत्व का माना गया है। 
 
गुरु प्रदोष व्रत : 01 अगस्त 2024, गुरुवार के मुहूर्त : 
 
श्रावण कृष्ण त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ- 01 अगस्त को दोपहर 03:28 मिनट से, 
प्रदोष व्रत का समापन- 02 अगस्त को दोपहर 03:26 मिनट पर। 
 
त्रयोदशी पर गुरु प्रदोष व्रत का पूजन समय : शाम 07:12 से 09:18 मिनट तक।
कुल अवधि: 02 घंटे 06 मिनट्स
 
01 अगस्त : दिन का चौघड़िया
 
शुभ - सुबह 05:43 से 07:24 तक।
चर - अपराह्न 10:46 से 12:27 तक।
लाभ - दोपहर 12:27 से 02:08 तक।
अमृत - दोपहर 02:08 से 03:50 तक।
शुभ - शाम 05:31 से 07:12 तक।
 
रात्रि का चौघड़िया
अमृत - शाम 07:12 से 08:31 तक।
चर - रात 08:31 से 09:50 तक।
लाभ - रात्रि 12:28 से 02 अगस्त 01:46 तक।
शुभ - तड़के 03:05 से 02 अगस्त 04:24 तक।
अमृत - तड़के 04:24 से 02 अगस्त 05:43 तक।
 
कथा : 
 
गुरु प्रदोष व्रत की कथा के अनुसार एक बार इंद्र और वृत्तासुर की सेना में घनघोर युद्ध हुआ। देवताओं ने दैत्य-सेना को पराजित कर नष्ट-भ्रष्ट कर डाला। यह देख वृत्तासुर अत्यंत क्रोधित हो स्वयं युद्ध को उद्यत हुआ। आसुरी माया से उसने विकराल रूप धारण कर लिया। सभी देवता भयभीत हो गुरुदेव बृहस्पति की शरण में पहूंचे। 
 
बृहस्पति महाराज बोले- पहले मैं तुम्हें वृत्तासुर का वास्तविक परिचय दे दूं। वृत्तासुर बड़ा तपस्वी और कर्मनिष्ठ है। उसने गंधमादन पर्वत पर घोर तपस्या कर शिवजी को प्रसन्न किया। पूर्व समय में वह चित्ररथ नाम का राजा था। एक बार वह अपने विमान से कैलाश पर्वत चला गया। वहां शिवजी के वाम अंग में माता पार्वती को विराजमान देख वह उपहासपूर्वक बोला- 'हे प्रभो! मोह-माया में फंसे होने के कारण हम स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं किंतु देवलोक में ऐसा दृष्टिगोचर नहीं हुआ कि स्त्री आलिंगनबद्ध हो सभा में बैठे।'
 
चित्ररथ के यह वचन सुन सर्वव्यापी शिवशंकर हंसकर बोले- 'हे राजन! मेरा व्यावहारिक दृष्टिकोण पृथक है। मैंने मृत्युदाता-कालकूट महाविष का पान किया है, फिर भी तुम साधारणजन की भांति मेरा उपहास उड़ाते हो!'
 
माता पार्वती क्रोधित हो चित्ररथ से संबोधित हुईं- 'अरे दुष्ट! तूने सर्वव्यापी महेश्‍वर के साथ ही मेरा भी उपहास उड़ाया है अतएव मैं तुझे वह शिक्षा दूंगी कि फिर तू ऐसे संतों के उपहास का दुस्साहस नहीं करेगा- अब तू दैत्य स्वरूप धारण कर विमान से नीचे गिर, मैं तुझे शाप देती हूं।'
 
जगदम्बा भवानी के अभिशाप से चित्ररथ राक्षस योनि को प्राप्त हुआ और त्वष्टा नामक ऋषि के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न हो वृत्तासुर बना। गुरुदेव बृहस्पति आगे बोले- 'वृत्तासुर बाल्यकाल से ही शिवभक्त रहा है अत हे इंद्र! तुम बृहस्पति प्रदोष व्रत कर शंकर भगवान को प्रसन्न करो।' देवराज ने गुरुदेव की आज्ञा का पालन कर बृहस्पति प्रदोष व्रत किया। गुरु प्रदोष व्रत के प्रताप से इंद्र ने शीघ्र ही वृत्तासुर पर विजय प्राप्त कर ली और देवलोक में शांति छा गई। अत: प्रदोष व्रत हर शिव भक्त को अवश्य करना चाहिए।

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