स्कंद षष्ठी/सुब्रह्मण्य षष्ठी व्रत क्या है?: स्कंद षष्ठी का व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के ज्येष्ठ पुत्र भगवान कार्तिकेय को समर्पित है। भगवान कार्तिकेय को दक्षिण भारत में मुरुगन और सुब्रह्मण्य के नाम से पूजा जाता है। यह व्रत हर माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को रखा जाता है।
स्कंद षष्ठी 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त:
स्कंद षष्ठी 2025 की तारीख बुधवार, 26 नवंबर।
मार्गशीर्ष, शुक्ल षष्ठी तिथि का आरंभ- 25 नवंबर 2025, रात 10 बजकर 56 मिनट पर
षष्ठी तिथि का समापन- 27 नवंबर 2025, देर रात 12 बजकर 01 मिनट पर।
पूजा के लिए शुभ/ विजय मुहूर्त- दोपहर 01 बजकर 54 मिनट से 02 बजकर 36 मिनट तक।
महत्व: धार्मिक मान्यता है कि इसी तिथि पर भगवान स्कंद ने तारकासुर नामक दैत्य का वध किया था, इसलिए यह दिन बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। स्कंद षष्ठी व्रत का पालन करने से भक्तों को विशेष लाभ मिलते हैं। यह व्रत विशेष रूप से संतान प्राप्ति के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। महिलाएं संतान की दीर्घायु और सुयोग्य संतान की कामना के लिए यह व्रत रखती हैं।
भगवान कार्तिकेय को मंगल ग्रह का स्वामी माना जाता है। इस दिन व्रत और पूजा करने से कुंडली में मंगल दोष के नकारात्मक प्रभाव कम होते हैं और व्यक्ति में साहस, पराक्रम और आत्मविश्वास की वृद्धि होती है। साथ ही मान्यता है कि स्कंद षष्ठी व्रत से शारीरिक कष्ट, रोग और जीवन की बाधाएं दूर होती हैं। भगवान कार्तिकेय, शिव-पार्वती के पुत्र हैं, इसलिए उनकी पूजा से धन, वैभव और मानसिक शांति की प्राप्ति होती है।
स्कंद षष्ठी पूजन विधि: स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय (मुरुगन) की पूजा निम्नलिखित विधि से करनी चाहिए-
व्रत संकल्प: सुबह जल्दी उठकर, स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें।
दक्षिण दिशा की ओर मुख करके भगवान कार्तिकेय का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें।
देव स्थापना: पूजा स्थल को साफ करें और एक चौकी पर भगवान कार्तिकेय (स्कंद देव), भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
अभिषेक और पूजन: भगवान कार्तिकेय को पंचामृत से अभिषेक कराएं।
इसके बाद चंदन, हल्दी, अक्षत, कलावा, इत्र और विशेषकर चंपा का फूल अर्पित करें।
घी का अखंड दीपक जलाएं।
मंत्र जप: पूरे दिन 'ॐ स्कंदाय नमः' या 'ॐ कार्तिकेयाय नमः' मंत्र का 108 बार जाप करें।
आरती और भोग: स्कंद षष्ठी महात्म्य का पाठ करें और भगवान कार्तिकेय की आरती करें।
उन्हें खीर, फल या मिष्ठान्न का भोग लगाएं।
व्रत पारण: व्रत का पारण अगले दिन सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही करें।
व्रत के नियम:
इस दिन तामसिक भोजन (मांस, मदिरा, लहसुन, प्याज) का सेवन नहीं करना चाहिए।
व्रतधारी को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
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