धार्मिक मान्यतानुसार मोक्षदा एकादशी का व्रत विधि-विधान से करने पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है, और यह व्रत मोक्षदायक माना जाता है। चूंकि इसी दिन गीता जयंती भी होती है, इसलिए पूजा में श्रीमद्भगवद्गीता का पूजन विशेष रूप से शामिल होता है। सही विधि और पूजा सामग्री के साथ इन पर्वों को मनाने से आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
मोक्षदा एकादशी व्रत की पूजा सामग्री- मोक्षदा एकादशी पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा के लिए आपको निम्नलिखित वस्तुएं एकत्रित करनी चाहिए:
- भगवान विष्णु/श्री कृष्ण की मूर्ति या तस्वीर
- पूजा की चौकी
- चौकी पर बिछाने के लिए, पीला वस्त्र
- गंगाजल या शुद्ध जल
- पंचामृत/ दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल का मिश्रण
- तुलसी दल/ तुलसी के पत्ते - एकादशी के दिन नहीं तोड़े जाते, इसलिए एक दिन पहले तोड़ लें।
- पीले फूल/ गेंदे के पुष्प, कमल का फूल और माला
- फल केला, सेव आदि, पीले रंग की मिठाई
- धूप, दीप, अगरबत्ती
- पीला चंदन और रोली
- पाठ के लिए श्रीमद्भगवद्गीता
- नारियल
- भगवान को अर्पित करने के लिए 1 जनेऊ।
1. संकल्प और व्रत के नियम (1 दिसंबर 2025)
ब्रह्म मुहूर्त में स्नान: एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त यानी सूर्योदय से पहले में उठकर स्नान करें। यदि संभव हो तो स्नान के जल में गंगाजल या तुलसी पत्र मिलाएं।
संकल्प: स्वच्छ वस्त्र पहनकर पूजा स्थान पर आएं। हाथ में जल और पुष्प लेकर भगवान विष्णु के सामने पूरे दिन निर्जला या फलाहारी व्रत रखने का संकल्प लें।
प्रातःकाल पूजा:
- पूजा चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवान विष्णु/श्री कृष्ण की प्रतिमा स्थापित करें।
- उन्हें पंचामृत से स्नान कराएं।
- पीला चंदन, रोली, पीले फूल, माला और भोग (फल/मिठाई) अर्पित करें।
- तुलसी दल (पत्ते) अवश्य चढ़ाएं। तुलसी के बिना विष्णु जी का भोग अधूरा माना जाता है।
- घी का दीपक और धूप जलाकर 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जप करें।
- गीता जयंती पर गीता पूजन और पाठ करें।
- भगवान विष्णु के पास श्रीमद्भगवद्गीता को रखें।
- गीता को पीले वस्त्र पर रखकर उसका पूजन करें।
- पूरे दिन गीता का पाठ (या कम से कम 11वें अध्याय का पाठ) अवश्य करें।
- दिन भर केवल फलाहार (फल, दूध, पानी) ग्रहण करें।
- चावल या अनाज का सेवन बिल्कुल न करें।
2. संध्या आरती और जागरण
- शाम को तुलसी के पौधे के पास दीपक जलाएं।
- पुनः भगवान विष्णु की पूजा और आरती करें।
- रात्रि में जागरण करते हुए / रात भर जागकर भजन-कीर्तन करना विशेष फलदायी माना जाता है।
3. पारण विधि (दिसंबर 2, 2025)
- द्वादशी के दिन (02 दिसंबर) शुभ पारण समय (सुबह 06:57 बजे से 09:03 बजे तक) के भीतर व्रत तोड़ना अनिवार्य है।
- सुबह स्नान के बाद भगवान विष्णु की अंतिम पूजा करें।
- किसी ब्राह्मण या गरीब व्यक्ति को भोजन कराएं, दक्षिणा दें और दान करें।
- व्रत का पारण करने के लिए सबसे पहले चरणामृत या तुलसी दल युक्त जल ग्रहण करें।
- इसके बाद ही अपना नियमित भोजन (जिसमें चावल भी शामिल हो) ग्रहण करके व्रत समाप्त करें।
याद रखें: एकादशी का व्रत सात्विकता, संयम और भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण की मांग करता है।
अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न सोर्स से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। सेहत या ज्योतिष संबंधी किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। इस कंटेंट को जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है जिसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।
ALSO READ: Mokshada Ekadashi: मोक्षदा एकादशी: मोह का नाश, मुक्ति का मार्ग और गीता का ज्ञान