गुरुवार, 18 अप्रैल 2024
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Chhath Puja shashthi Devi : कौन हैं मां षष्ठी देवी, यहां मिलेगा उनका मंत्र और खास जानकारी

Chhath Puja shashthi Devi : कौन हैं मां षष्ठी देवी, यहां मिलेगा उनका मंत्र और खास जानकारी - Shashthi devi Mantra on Chhath Puja
छठ पर्व पर सूर्य आराधना एवं षष्ठी देवी के पूजन का विशेष महत्व है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि षष्ठी देवी कौन हैं और क्योंकि पड़ा उनका यह नाम ? चलिए जानते हैं षष्ठी देवी के बारे में संपूर्ण जानकारी एवं मंत्र - 
 
दरअसल मां षष्ठी देवी, मां कात्यायनी का ही रूप हैं और मां कात्यायनी, दुर्गा का छठा अवतार हैं। शास्त्रों के अनुसार देवी ने कात्यायन ऋषि के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया, इस कारण इनका नाम कात्यायनी पड़ गया। षष्ठी तिथि के अलावा नवरात्र के छठे दिन कात्यायनी देवी की पूरे श्रद्धा भाव से पूजा की जाती है।
 
कैसा है षष्ठी देवी कात्यायनी का स्वरूप - 
दिव्य रुपा कात्यायनी देवी का शरीर सोने के समाना चमकीला है। चार भुजा धारी मां कात्यायनी सिंह पर सवार हैं। अपने एक हाथ में तलवार और दूसरे में अपना प्रिय पुष्प कमल लिये हुए हैं। अन्य दो हाथ वरमुद्रा और अभयमुद्रा में हैं। इनका वाहन सिंह हैं। देवी कात्यायनी के नाम और जन्म से जुड़ी एक कथा प्रसिद्ध है।
 
क्यों पड़ा देवी का नाम कात्यायनी - 
एक कथा के अनुसार एक वन में कत नाम के एक महर्षि थे उनका एक पुत्र था जिसका नाम कात्य रखा गया। इसके पश्चात कात्य गोत्र में महर्षि कात्यायन ने जन्म लिया। उनकी कोई संतान नहीं थी। मां भगवती को पुत्री के रूप में पाने की इच्छा रखते हुए उन्होंने पराम्बा की कठोर तपस्या की।
 
महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें पुत्री का वरदान दिया। कुछ समय बीतने के बाद राक्षस महिषासुर का अत्याचार अत्यधिक बढ़ गया। तब त्रिदेवों के तेज से एक कन्या ने जन्म लिया और उसका वध कर दिया। कात्य गोत्र में जन्म लेने के कारण देवी का नाम कात्यायनी पड़ गया।
 
जानिए षष्ठी देवी कात्यायनी का सरल मंत्र 
 
चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दू लवर वाहना
कात्यायनी शुभं दद्या देवी दानव घातिनि
 
मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी मानी गई हैं। शिक्षा प्राप्ति के क्षेत्र में प्रयासरत भक्तों को माता की अवश्य उपासना करनी चाहिए।
 
षष्ठी देवी मंत्र 
षष्ठांशां प्रकृते: शुद्धां सुप्रतिष्ठाण्च सुव्रताम्।
सुपुत्रदां च शुभदां दयारूपां जगत्प्रसूम्।।
श्वेतचम्पकवर्णाभां रत्नभूषणभूषिताम्।
पवित्ररुपां परमां देवसेनां परां भजे।। 
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