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Written By Author राजश्री कासलीवाल

ओणम पर्व विशेष : इस बार केरल में नहीं है ओणम की रौनक...

ओणम पर्व विशेष : इस बार केरल में नहीं है ओणम की रौनक...। Onam 2018 - Onam 2018
* इस बार केरलवासियों की आंखें होंगी नम, ओणम पर कैसे करेंगे रा‍जा बलि का स्वागत 
 
श्रावण शुक्ल की त्रयोदशी को केरल का प्रमुख पर्व 'ओणम' मनाया जाता है और इ‍न दिनों केरल में बाढ़ से वहां तबाही मची हुई है, ऐसे में इस बार ओणम पर्व को लेकर केरलवासियों में जरा भी उत्साह नहीं है।


केरल में निपाह के बाद आई बाढ़ के कारण ओणम पर बाजारों में सन्नाटा छाया हुआ है, कहीं भी रौनक नहीं है। वहां के फूल व्यापारी बेहद निराश हैं, क्योंकि ओणम केरल का विशेष पर्व है और इस दौरान केरल में पुक्कलम यानी फूल का कालीन बनाया जाता है, लेकिन इस बार केरल में बाढ़ के चलते इन फूलों का कोई खरीददार नहीं है।

 
जहां तक ओणम की बात है, तो जैसे उत्तर भारत में दीपावली पर्व का महत्व है, उसी प्रकार केरल में ओणम पर्व को उत्साह के साथ मनाया जाता है। इसे लेकर वहां के निवासियों में काफी उत्साह रहता है, लेकिन इस बार प्रलयंकारी बाढ़ के कारण नजारा बदला-बदला-सा है।
 
यहां 10 दिनों के चलने वाले फूलों की खुशबू से महकते इस ओणम पर्व पर चमेली, मैरीगोल्ड, क्राइसेंथेमम आदि फूलों की बड़ी तादाद में मांग होती है, लेकिन इस बार सबकुछ तहस-नहस होने के कारण बाजारों से रौनक गायब है। इस पर्व के दौरान तमिलनाडु के तिरुनेलवेली के अलावा कन्याकुमारी, बेंगलुरु होसुर, कोयंबटूर आदि कई स्थानों से हर साल फूल केरल भेजे जाते हैं।

 
ओणम केरल का खास पर्व है। मलयाली कैलेंडर कोलावर्षम के पहले महीने छिंगम यानी अगस्त-सितंबर के बीच ओणम मनाने की परंपरा कई समय से चली आ रही है। ओणम के पहले दिन को अथम कहते हैं। इस दिन से ही घर-घर में ओणम की तैयारियां प्रारंभ हो जाती हैं, लेकिन निपाह के बाद और केरल में आई बाढ़ से केरलवासी परेशान हैं।
 
बाढ़ से पहले केरल का माहौल अलग होता था, घर-घर में कहीं फूलों से बनी रंगोली, तो कहीं नारियल के दूध में बनी खीर वहां के पर्व को चार चांद लगा देते थे। गीत-संगीत और खेलकूद से माहौल उत्साहभरा होता था।  
 
जहां मलयाली समाज में एक ओर महान राजा बलि के घर आने की खुशी में ओणम पर्व मनाया जाता है, वहीं ओणम के दिन महिलाएं अपने पारंपरिक अंदाज में ही तैयार होती हैं। जिस प्रकार ओणम में नए कपड़ों की, घरों की साज-सज्जा का महत्व है, उसी प्रकार ओणम में कुछ पारंपरिक रीति-रिवाज भी हैं जिनका प्राचीनकाल से आज तक निरंतर पालन किया जा रहा है, जैसे अथम से ही घरों में फूलों की रंगोली बनाने का सिलसिला शुरू हो जाता है। महिलाएं तैयार होकर फूलों की रंगोली जिसे ओणमपुक्कलम कहते हैं, बनाती हैं। हर घर के आंगन में फूलों की पंखुड़ियों से सुंदर-सुंदर रंगोलिया 'पूकलम' डाली जाती हैं।

 
ओणमपुक्कलम विशेष रूप से थिरुओनम के दिन राजा बलि के स्वागत के लिए बनाने की परंपरा है, पर इस बार ऐसा कोई नजारा यहां नजर नहीं आ रहा है। माना जाता है कि इस 10 दिनी उत्सव का समापन थिरुओनम को होता है। उसके पीछे यह मान्यता है कि थिरुओनम के दिन ही राजा बलि अपनी प्रजा से मिलने के लिए आते हैं।
 
लेकिन इस बार केरलवासी ओणम पर्व कैसे मनाएं और राजा बलि के स्वाग‍‍त की तैयारी कैसे करें, यह समझ नहीं पा रहे हैं। कुल मिलाकर इस बार केरल में ओणम पर्व पर खासी रौनक दिखाई नहीं देगी। वो खुशी, वो उत्साह से भरा माहौल और केरलवासियों के चेहरे पर को खुशी दिखाई नहीं देगी, जो हर साल ओणम पर्व पर वहां दिखाई देती थी।

 
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