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Last Updated : शनिवार, 26 मार्च 2022 (18:26 IST)

दशा माता व्रत है आज, जानिए व्रत की सरल विधि और पौराणिक कथा

दशा माता व्रत है आज, जानिए व्रत की सरल विधि और पौराणिक कथा - Dasha mata vrat ki vidhi and katha
Dasha Mata Vrat: 27 मार्च 2022, रविवार को रखा जाएगा दशा माता का व्रत। यह व्रत चैत्र (चेत) माह के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को किया जाता है। सुहागिन महिलाएं यह व्रत अपने घर की दशा सुधारने के लिए करती हैं। इस दिन महिलाएं पूजा और व्रत करके गले में एक खास डोरा (पूजा का धागा) पहनती है ताकि परिवार में सुख-समृद्धि, शांति, सौभाग्य और धन संपत्ति बनी रहे। ग्रंथों के अनुसार, ये व्रत करने से सभी तरह की परेशानियों से बचा जा सकता है। आओ जानते हैं व्रत की सरल विधि और दशा माता की पौराणिक कथा।
 
 
जानिए व्रत की सरल विधि या पूजा (Dasha Mata Puja 2022): 
 
1. इस दिन कच्चे सूत का 10 तार का डोरा, जिसमें 10 गठानें लगाते हैं, लेकर पीपल की पूजा करती हैं। इस डोरे की पूजन करने के बाद कथा सुनती हैं। इसके बाद डोरे को गले में बांधती हैं। 
 
2. इस दिन महिलाएं एक ही प्रकार का अन्न एक समय खाती हैं। भोजन में नमक नहीं होना चाहिए। विशेष रूप से अन्न में गेहूं का ही उपयोग करते हैं।
 
 
3. दशा माता की पूजा पीपल के पेड़ की छांव में करना शुभ होता है और पीपल के आस-पास पूजा का धागा भी बांधा जाता है। पीपल की की पूजा से भगवान विष्णु की पूजा भी इस दिन हो जाती है।
 
नियम : यदि यह व्रत एक बार रख लिया तो इसे जीवनभर किया जाता है और इसका उद्यापन नहीं होता है। इस व्रत को बीच में नहीं छोड़ सकते। ऐसा करना अशुभ माना जाता है। यदि सेहत संबंधी समस्या या और कोई समस्या हो तो उद्यापन करने के बाद इसे छोड़ सकते हैं।
 
 
इस व्रत में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखते हैं। झाड़ू आदि खरीदने की परंपरा भी प्रचलित है। दशा माता का डोरा साल भर गले में पहना जाता है। लेकिन यदि दशा माता का डोरा साल भर नहीं पहन सकते हैं तो वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष में किसी अच्छे दिन खोलकर रखा जा सकता है। उस दिन व्रत करना चाहिए।
 
दशा माता व्रत की पौराणि कथा (Dasha mata vrat ki katha):
 
दशा माता व्रत की प्रामाणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में राजा नल और दमयंती रानी सुखपूर्वक राज्य करते थे। उनके दो पु‍त्र थे। उनके राज्य में प्रजा सुखी और संपन्न थी।
 
 
एक दिन की बात है कि उस दिन होली दसा थी। एक ब्राह्मणी राजमहल में आई और रानी से कहा- दशा का डोरा ले लो। बीच में दासी बोली- हां रानी साहिबा, आज के दिन सभी सुहागिन महिलाएं दशा माता की पूजन और व्रत करती हैं तथा इस डोरे की पूजा करके गले में बांधती हैं जिससे अपने घर में सुख-समृद्धि आती है। अत: रानी ने ब्राह्मणी से डोरा ले लिया और विधि अनुसार पूजन करके गले में बांध दिया। 
 
कुछ दिनों के बाद राजा नल ने दमयंती के गले में डोरा बंधा हुआ देखा। राजा ने पूछा- इतने सोने के गहने पहनने के बाद भी आपने यह डोरा क्यों पहना? रानी कुछ कहती, इसके पहले ही राजा ने डोरे को तोड़कर जमीन पर फेंक दिया। रानी ने उस डोरे को जमीन से उठा लिया और राजा से कहा- यह तो दशा माता का डोरा था, आपने उनका अपमान करके अच्‍छा नहीं किया। 
 
जब रात्रि में राजा सो रहे थे, तब दशा माता स्वप्न में बुढ़िया के रूप में आई और राजा से कहा- हे राजा, तेरी अच्छी दशा जा रही है और बुरी दशा आ रही है। तूने मेरा अपमान करने अच्‍छा नहीं किया। ऐसा कहकर बुढ़िया (दशा माता) अंतर्ध्यान हो गई। 
 
अब जैसे-तैसे दिन बीतते गए, वैसे-वैसे कुछ ही दिनों में राजा के ठाठ-बाट, हाथी-घोड़े, लाव-लश्कर, धन-धान्य, सुख-शांति सब कुछ नष्ट होने लगे। अब तो भूखे मरने का समय तक आ गया। एक दिन राजा ने दमयंती से कहा- तुम अपने दोनों बच्चों को लेकर अपने मायके चली जाओ।
 
 
रानी ने कहा- मैं आपको छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी। जिस प्रकार आप रहेंगे, उसी प्रकार मैं भी आपके साथ रहूंगी। तब राजा ने कहा- अपने देश को छोड़कर दूसरे देश में चलें। वहां जो भी काम मिल जाएगा, वही काम कर लेंगे। इस प्रकार नल-दमयंती अपने देश को छोड़कर चल दिए।
 
चलते-चलते रास्ते में भील राजा का महल दिखाई दिया। वहां राजा ने अपने दोनों बच्चों को अमानत के तौर पर छोड़ दिया। आगे चले तो रास्ते में राजा के मित्र का गांव आया। राजा ने रानी से कहा- चलो, हमारे मित्र के घर चलें। मित्र के घर पहुंचने पर उनका खूब आदर-सत्कार हुआ और पकवान बनाकर भोजन कराया। मित्र ने अपने शयन कक्ष में सुलाया। उसी कमरे में मोर की आकृति की खूंटी पर मित्र की पत्नी का हीरों जड़ा कीमती हार टंगा था।
 
 
मध्यरात्रि में रानी की नींद खुली तो उन्होंने देखा कि वह बेजान खूंटी हार को निगल रही है। यह देखकर रानी ने तुरंत राजा को जगाकर दिखाया और दोनों ने विचार किया कि सुबह होने पर मित्र के पूछने पर क्या जवाब देंगे? अत: यहां से इसी समय चले जाना चाहिए। राजा-रानी दोनों रात्रि को ही वहां से चल दिए।
 
सुबह होने पर मित्र की पत्नी ने खूंटी पर अपना हार देखा। हार वहां नहीं था। तब उसने अपने पति से कहा- तुम्हारे मित्र कैसे हैं, जो मेरा हार चुराकर रात्रि में ही भाग गए हैं। मित्र ने अपनी पत्नी को समझाया कि मेरा मित्र कदापि ऐसा नहीं कर सकता, धीरज रखो, कृपया उसे चोर मत कहो।
 
 
आगे चलने पर राजा नल की बहन का गांव आया। राजा ने बहन के घर खबर पहुंचाई कि तुम्हारे भाई-भौजाई आए हुए हैं। खबर देने वाले से बहन ने पूछा- उनके हाल-चाल कैसे हैं? वह बोला- दोनों अकेले हैं, पैदल ही आए हैं तथा वे दुखी हाल में हैं। इतनी बात सुनकर बहन थाली में कांदा-रोटी रखकर भैया-भाभी से मिलने आई। राजा ने तो अपने हिस्से का खा लिया, परंतु रानी ने जमीन में गाड़ दिया।
 
चलते-चलते एक नदी मिली। राजा ने नदी में से मछलियां निकालकर रानी से कहा- तुम इन मछलियों को भुंजो, मैं गांव में से परोसा लेकर आता हूं। गांव का नगर सेठ सभी लोगों को भोजन करा रहा था। राजा गांव में गया और परोसा लेकर वहां से चला तो रास्ते में चील ने झपट्टा मारा तो सारा भोजन नीचे गिर गया। 
 
राजा ने सोचा कि रानी विचार करेगी कि राजा तो भोजन करके आ गया और मेरे लिए कुछ भी नहीं लाया। उधर रानी मछलियां भूंजने लगीं तो दुर्भाग्य से सभी मछलियां जीवित होकर नदी में चली गईं। रानी उदास होकर सोचने लगी कि राजा पूछेंगे और सोचेंगे कि सारी मछलियां खुद खा गईं। जब राजा आए तो मन ही मन समझ गए और वहां से आगे चल दिए। 
 
चलते-चलते रानी के मायके का गांव आया। राजा ने कहा- तुम अपने मायके चली जाओ, वहां दासी का कोई भी काम कर लेना। मैं इसी गांव में कहीं नौकर हो जाऊंगा। इस प्रकार रानी महल में दासी का काम करने लगी और राजा तेली के घाने पर काम करने लगा। दोनों को काम करते बहुत दिन हो गए। जब होली दसा का दिन आया, तब सभी रानियों ने सिर धोकर स्नान किया। दासी ने भी स्नान किया। 
 
दासी ने रानियों का सिर गूंथा तो राजमाता ने कहा- मैं भी तेरा सिर गूंथ दूं। ऐसा कहकर राजमाता जब दासी का सिर गूंथ ही रही थी, तब उन्होंने दासी के सिर में पद्म देखा। यह देखकर राजमाता की आंखें भर आईं और उनकी आंखों से आंसू की बूंदें गिरीं। आंसू जब दासी की पीठ पर गिरे तो दासी ने पूछा- आप क्यों रो रही हैं? 
 
राजमाता ने कहा- तेरे जैसी मेरी भी बेटी है जिसके सिर में भी पद्म था, तेरे सिर में भी पद्म है। यह देखकर मुझे उसकी याद आ गई। तब दासी ने कहा- मैं ही आपकी बेटी हूं। दशा माता के कोप से मेरे बुरे दिन चल रहे है इसलिए यहां चली आई। माता ने कहा- बेटी, तूने यह बात हमसे क्यों छिपाई? दासी ने कहा- मां, मैं सब कुछ बता देती तो मेरे बुरे दिन नहीं कटते। आज मैं दशा माता का व्रत करूंगी तथा उनसे गलती की क्षमा-याचना करूंगी।
 
 
अब तो राजमाता ने बेटी से पूछा- हमारे जमाई राजा कहां हैं? बेटी बोली- वे इसी गांव में किसी तेली के घर काम कर रहे हैं। अब गांव में उनकी खोज कराई गई और उन्हें महल में लेकर आए। जमाई राजा को स्नान कराया, नए वस्त्र पहनाए और पकवान बनवाकर उन्हें भोजन कराया गया। 
 
अब दशा माता के आशीर्वाद से राजा नल और दमयंती के अच्छे दिन लौट आए। कुछ दिन वहीं बिताने के बाद अपने राज्य जाने को कहा। दमयंती के पिता ने खूब सारा धन, लाव-लश्कर, हाथी-घोड़े आदि देकर बेटी-जमाई को बिदा किया। 
 
रास्ते में वही जगह आई, जहां रानी में मछलियों को भूना था और राजा के हाथ से चील के झपट्टा मारने से भोजन जमीन पर आ गिरा था। तब राजा ने कहा- तुमने सोचा होगा कि मैंने अकेले भोजन कर लिया होगा, परंतु चील ने झपट्टा मारकर गिरा दिया था। अब रानी ने कहा- आपने सोचा होगा कि मैंने मछलियां भूनकर अकेले खा ली होंगी, परंतु वे तो जीवित होकर नदी में चली गई थीं।
 
चलते-चलते अब राजा की बहन का गांव आया। राजा ने बहन के यहां खबर भेजी। खबर देने वाले से पूछा कि उनके हालचाल कैसे हैं? उसने बताया कि वे बहुत अच्छी दशा में हैं। उनके साथ हाथी-घोड़े लाव-लश्कर हैं। यह सुनकर राजा की बहन मोतियों की थाल सजाकर लाई। तभी दमयंती ने धरती माता से प्रार्थना की और कहा- मां आज मेरी अमानत मुझे वापस दे दो। यह कहकर उस जगह को खोदा, जहां कांदा-रोटी गाड़ दिया था। खोदने पर रोटी तो सोने की और कांदा चांदी का हो गया। ये दोनों चीजें बहन की थाली में डाल दी और आगे चलने की तैयारी करने लगे। 
 
वहां से चलकर राजा अपने मित्र के घर पहुंचे। मित्र ने उनका पहले के समान ही खूब आदर-सत्कार और सम्मान किया। रात्रि विश्राम के लिए उन्हें उसी शयन कक्ष में सुलाया। मोरनी वाली खूंटी के हार निगल जाने वाली बात से नींद नहीं आई। आधी रात के समय वही मोरनी वाली खूंटी हार उगलने लगी तो राजा ने अपने मित्र को जगाया तथा रानी ने मित्र की पत्नी को जगाकर दिखाया। आपका हार तो इसने निगल लिया था। आपने सोचा होगा कि हार हमने चुराया है। 
 
दूसरे दिन प्रात:काल नित्य कर्म से निपटकर वहां से वे चल दिए। वे भील राजा के यहां पहुंचे और अपने पुत्रों को मांगा तो भील राजा ने देने से मना कर दिया। गांव के लोगों ने उन बच्चों को वापस दिलाया। नल-दमयंती अपने बच्चों को लेकर अपनी राजधानी के निकट पहुंचे, तो नगरवासियों ने लाव-लश्कर के साथ उन्हें आते हुए देखा।
 
सभी ने बहुत प्रसन्न होकर उनका स्वागत किया तथा गाजे-बाजे के साथ उन्हें महल पहुंचाया। राजा का पहले जैसा ठाठ-बाट हो गया। राजा नल-दमयंती पर दशा माता ने पहले कोप किया, ऐसी किसी पर मत करना और बाद में जैसी कृपा करी, वैसी सब पर करना।