शनिवार, 21 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. व्रत-त्योहार
  3. तीज त्योहार
  4. Balbhadra god
Written By
Last Updated : मंगलवार, 16 जुलाई 2024 (12:25 IST)

बलराम जयंती : बलदाऊ के क्रोध से मच जाता था हाहाकार, क्यों प्रसिद्ध है बलभद्र का गुस्सा

बलराम जयंती : बलदाऊ के क्रोध से मच जाता था हाहाकार, क्यों प्रसिद्ध है बलभद्र का गुस्सा - Balbhadra god
Balarama Jayanti 2022: भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलरामजी की आज जयंती है। भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को उनका जन्मोत्सव मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 17 अगस्त को उनका जन्मोत्सव मनाया जा रहा है। कहते हैं कि बलरामजी को छोटी छोटी बातों पर क्रोध बहुत आता था। उनके क्रोध के कारण हाहाकार मच जाता था। आखिर क्या कारण है इसका।
 
शेषनाग का अवतार : बलरामजी शेषनाग के अवतार थे, इसीलिए क्रोध उनका स्वाभाविक गुण था। पुराणों के भगवान शेषनाग ने देवकी के गर्भ में सप्तम पुत्र के रूप में प्रवेश किया था। त्रेतायुग में शेषनाग जी ने राम के छोटे भाई लक्ष्मण के रूप में जन्म लिया था। बलवानों में श्रेष्ठ होने के कारण उन्हें बलभद्र भी कहा जाता है। इनके नाम से मथुरा में दाऊजी का प्रसिद्ध मंदिर है। जगन्नाथ की रथयात्रा में इनका भी एक रथ होता है। यह गदा धारण करते हैं। 
 
श्रीकृष्‍ण के साथ रिश्‍ता : बलराम जी भगवान श्रीकृष्ण के ऐसे बड़े भाई थे तो सगे थे भी और नहीं भी। उन्हें श्रीकृष्ण दाऊ कहते थे और वे उनके बड़े भाई थे। वसुदेवजी की पहली पत्नी रोहिणी के गर्भ से उनका जन्म हुआ था। वसुदेव की दूसरी पत्नी देवकी के गर्भ से श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। मतलब यह कि दोनों के पिता एक थे लेकिन माताएं अलग अलग थीं।
क्रोध के किस्से :
 
1. कहते हैं कि एक बार कौरव और बलराम के बीच किसी प्रकार का कोई खेल हुआ। इस खेल में बलरामजी जीत गए थे लेकिन कौरव यह मानने को ही नहीं तैयार थे। ऐसे में क्रोधित होकर बलरामजी ने अपने हल से हस्तिनापुर की संपूर्ण भूमि को खींचकर गंगा में डुबोने का प्रयास किया। तभी आकाशवाणी हुई की बलराम ही विजेता है। सभी ने सुना और इसे माना। इससे संतुष्ट होकर बलरामजी ने अपना हल रख दिया। तभी से वे हलधर के रूप में प्रसिद्ध हुए।
 
2. दूसरी कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी जाम्बवती का पुत्र साम्ब का दिल दुर्योधन और भानुमती की पुत्री लक्ष्मणा पर आ गया था और वे दोनों प्रेम करने लगे थे। इसलिए एक दिन साम्ब ने लक्ष्मणा से गंधर्व विवाह कर लिया और लक्ष्मणा को अपने रथ में बैठाकर द्वारिका ले जाने लगा। जब यह बात कौरवों को पता चली तो कौरव अपनी पूरी सेना लेकर साम्ब से युद्ध करने आ पहुंचे। कौरवों ने साम्ब को बंदी बना लिया। इसके बाद जब श्रीकृष्ण और बलराम को पता चला, तब बलराम हस्तिनापुर पहुंच गए और बलराम ने अपना रौद्र रूप प्रकट कर दिया। वे अपने हल से ही हस्तिनापुर की संपूर्ण धरती को खींचकर गंगा में डुबोने चल पड़े। यह देखकर कौरव भयभीत हो गए। संपूर्ण हस्तिनापुर में हाहाकार मच गया। सभी ने बलराम से माफी मांगी और तब साम्ब को लक्ष्मणा के साथ विदा कर दिया।
balram
3. रासलीला के समय वरुणदेव ने अपनी पुत्री वारुणी को तरल शहद के रूप में वहां भेजा। जिसकी सुगंध और स्वाद से बलरामजी एवं सभी गोपियां को मन प्रफुल्लित हो उठा। बलराम रासलीला का आनंद यमुना नदी के पानी में लेना चाहते थे। जैसे ही बलराम ने यमुना को उन सबके समीप बुलाया। यमुना ने आने से मना कर दिया। तब क्रोध में बलराम ने कहा कि मैं तुझे अपने हल से बलपूर्वक यहां खींचता हूं और तुझे सैंकड़ों टुकड़ो में बंटने का श्राप देता हूं। यह सुनकर यमुना घबरा गई और क्षमा मांगने लगी। तब बलराम ने यमुना को क्षमा किया। परन्तु हल से खींचने के कारण यमुना आज तक छोटे-छोटे अनेक टुकड़ों में बहती है।
 
4. एक बार बलरामजी को अपने बल पर बड़ा घमंड हो चला था तब श्रीकृष्‍ण की प्रेरणा से एक दिन द्वारिका के बगीचे में हनुमानजी प्रवेश करके वहां फल फूल खाते हुए बहुत उत्पात मचाते हैं। द्वारिका के सैनिक घबराकर बलरामजी के पास जाकर कहते हैं कि कोई वानर द्वारिका में घुसकर उत्पात मचा रहा है। फिर बलरामजी और हनुमाजी का युद्ध होता है जिसमें बलरामजी पसीना पसीना होकर कहते हैं कि हे वानर! तू जरूर कोई मायावी वानर है बता तेरी सचाई क्या है अन्यथा में अपना हल निकालता हूं। फिर बलरामजी कहते हैं- तुम यूं नहीं मानोगे, मुझे अपना हल निकालना ही होगा। ऐसा कहकर बलरामजी अपने हल का आह्‍वान करते हैं। यह देखकर हनुमानजी श्रीकृष्ण से कहते हैं कि बचाइये प्रभु बचाइये ये तो अपना हल निकाल रहे हैं। ये तो शेषनाग का अवतार हैं। इनके हल से तो तीनों लोक नष्ट हो जाते हैं। तब श्रीकृष्‍ण रुक्मिणी के संग वहां तुरंत आ जाते हैं और बलरामजी को रोकते हैं- रुकिए दाऊ भैया। और फिर श्रीकृष्‍ण बताते हैं कि ये हनुमानजी हैं। यह सुनकर बलरामजी चकित होकर उनसे क्षमा मांगते हैं।
 
मौसुल युद्ध में यदुवंश के संहार के बाद बलराम ने समुद्र तट पर आसन लगाकर देह त्याग दी थी।