आरती करूँ सद्गुरु की
सद्गुरु की आरती (2)
आरती करूँ सद्गुरु कीप्यारे गुरुवर की आरती करूँ गुरुवर की।जय गुरुदेव अमल अविनाशी, ज्ञानरूप अन्तर के वासी,पग पग पर देते प्रकाश, जैसे किरणें दिनकर कीं।आरती करूँ गुरुवर की॥जब से शरण तुम्हारी आए, अमृत से मीठे फल पाए,शरण तुम्हारी क्या है छाया, कल्पवृक्ष तरुवर की।आरती करूँ गुरुवर की॥ब्रह्मज्ञान के पूर्ण प्रकाशक, योगज्ञान के अटल प्रवर्तक।जय गुरु चरण-सरोज मिटा दी, व्यथा हमारे उर की।आरती करूँ गुरुवर की।अंधकार से हमें निकाला, दिखलाया है अमर उजाला,कब से जाने छान रहे थे, खाक सुनो दर-दर की।आरती करूँ गुरुवर की॥संशय मिटा विवेक कराया, भवसागर से पार लंघाया,अमर प्रदीप जलाकर कर दी, निशा दूर इस तन की।आरती करूँ गुरुवर की॥भेदों बीच अभेद बताया, आवागमन विमुक्त कराया,धन्य हुए हम पाकर धारा, ब्रह्मज्ञान निर्झर की।आरती करूँ गुरुवर की॥करो कृपा सद्गुरु जग-तारन,सत्पथ-दर्शक भ्रान्ति-निवारन,जय हो नित्य ज्योति दिखलाने वाले लीलाधर की।आरती करूँ गुरुवर की॥आरती करूँ सद्गुरु कीप्यारे गुरुवर की आरती, आरती करूँ गुरुवर की।**** सद्गुरु की आरती (2)ॐ ये देवासो दिव्येकादशस्थ पृथिव्या मध्येकादश स्थ।अप्सुक्षितो महिनैकादश स्थ ते देवासो यज्ञमिमं जुषध्वम्॥ॐ अग्निर्देवता व्वातो देवता सूर्य्यो देवता चंद्रमा देवता।व्वसवो देवता रुद्द्रा देवता ऽऽदित्या देवता मरुतो देवता।व्विश्वेदेवा देवता बृहस्पति द्देवतेन्द्रो देवता व्वरुणो देवता।कर्पूर गौरं करुणावतारं संसार सारं भुजगेन्द्रहारम्।सदावसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानी सहितं नमामि॥