प्रतिदान
जननी और जन्मभूमि को समर्पित
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डॉ. राधा गुप्ता कानपुर में जन्म। कानपुर विवि से एम.ए. और बुंदेलखंड विवि से पी-एच.डी.। भारत में 1983 से 1998 तक अध्यापन। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कहानियाँ, लेख और कविताएँ प्रकाशित। मई 1998 में अमेरिका पहुँची। 2003 में एडल्ट एजुकेशन में शिक्षण से जुड़ गईं। सम्प्रति वे वेसलियन विश्वविद्यालय, कनैक्टिकट में हिन्दी की प्राध्यापक हैं।माँ!तुम कितनी अच्छी थींकितनी स्नेहमयी!कितनी त्यागमयी!यह मैंने तब जानाजब तुमइस दुनिया में नहीं रहीं।तुम्हारा वह औदार्यतुम्हारा वह दुलारअब रह-रहकरमुझे याद आता हैसब बार-बार।बचपन में तुम्हारामेरे खाने-पहनने काभरपूर ख्याल रखनाडाँटना-डपटनाजबर्दस्ती मेरे पीछे पड़नापहले ब्रेड खा लोदूध पी लोस्वेटर पहन लोतब स्कूल जानामेरा रोज-रोज का झुँझलानानित-नए नाज-नखरे दिखानामुझे जो खाना होगा, खा लूँगी,जो पहनना होगा, पहन लूँगी,और समय से स्कूल पहुँच जाऊँगीअब मैं बड़ी हो गई हूँक्या खाक बड़ी हो गई है?इतना तक तो समझ में आता नहीं कि...माँ की इस रोक-टोक मेंमाँ की डाँट-डपट मेंकितना प्यार हैकितनी ममता है। माँ की इस ममता कीसबसे बड़ी कसौटीउस समय होती थीजब मेरे इम्तिहान होते थेरोजाना सुबह जगानाकभी प्यार सेकभी डाँटकर दूध पिलानामेरे साथ देर रात तक जागनामैं कहतीअम्मा, तुम सो जाओपढ़ने के बाद मैं भी सो जाऊँगीमाँ सोचतीलड़की दिल की पिद्दी हैअपनी परछाई से डरती हैफिर भीसोने का उपक्रम करतींबनावटी खर्राटे भरतींऔर मेरी एक आहट परउठकर बैठ जातींमैं जब भीप्रथम श्रेणी में पास होतीमेरी मुट्ठी पैसों से भर देतींवह माँ, जो खुद पढ़ी नहीं थीक्यों पढ़ी नहीं थी?इसकी भी एक बड़ी दिलचस्प कहानी हैजब वहचौथी जमात में पढ़ती थीतेरह का पहाड़ा न सुना पाने परस्कूल की अध्यापिका नेहाथ में डंडा मारा थाग्राम प्रधान की बेटीनाजों से पली सुकुमार-सी कलीघरवालों की सिरचढ़ीगुस्से में अध्यापिका की चुटिया खींचकर भागी थीअध्यापिकाजी कुर्सी समेतधम्म् से गिर पड़ी थींस्कूल से जो नाम कटाफिर जीवनभर दाखिला न मिला वही माँ, अपनी बेटी कोबड़े चाव से पढ़ा रही थीबड़ी तन्मयता से उसका जीवन सँवार रही थीमैंने कभी न जानातुम यह सब क्यों करती होक्यों मेरा इतना ख्याल रखती हो?मैं तो केवल इतना जानती थी तुम जो भी करती होतुम्हारा कर्तव्य है, उत्तरदायित्व हैऔर हर पल तुम्हें सतानाबात-बात पर झुँझलानाअपनी ही बात मनवानातुम्हारी समर्पित निष्ठा काभरपूर लाभ उठानामेरा जन्मसिद्ध अधिकार है।तुम्हारे इस वात्सल्य का तुम्हारे इस उत्सर्ग काबस इतना ही 'प्रतिदान'मैं तुम्हें दे पाई थीआज तुम्हारी वही लाड़लीअमेरिका जैसे विशालऔर सुविधा-संपन्न देश कीमखमली धरती परअपनी जननी और जन्मभूमि कोहृदय की गहराई सेमिस कर रही हैतुम्हारे संरक्षण कातुम्हारे संवर्धन का'
प्रतिदान'आज तुम्हें समर्पित कर रही है।-
गर्भनाल से साभार