- लाइफ स्टाइल
» - एनआरआई
» - एनआरआई साहित्य
तुम ऐसी प्रेयसी
-
हरिबाबू बिन्दल तुम ऐसी प्रेयसी होयादों में आ आकर, करती मन उद्वेलितसागर की लहरों से, तट हो जैसे विचलितकविता लिख देने को, तुम प्रेरित करती होतुम ऐसी प्रेयसी हो।तुम में कुछ ऐसा है, है नहीं किसी के पासहो सात समुन्दर पार, फिर भी जैसे हो पाससूरज की किरणों-सी, तुम आभा बिखेरती होतुम ऐसी रूप-सी हो।मुझको कुछ बंधन हैं, तुमको भी जग बंधन तुम में मुझसे फिर भी, कुछ अद्भुत संवेदनमेरे मन की वीणा को, झंकृत कर देती होतुम ऐसी देवी-सी हो।साभार- गर्भनाल