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जख्मों में इतिहास है
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दिगंबर नासवा सूनी आँखों में मिलने की प्यास है कोई मेरे आँगन आज उदास है उम्र की चाबी भरी हुई है इंसानों में चिंता फिर भी क्यूँ मरने की खास है। वक्त की आँधी दूर ले गई है जिसको उम्र हुई फिर भी वो दिल के पास है शक के घेरे में तुम भी आ जाओगेतुम न कुरेदो जख्मों का इतिहास है। कभी तो बंजर भूमि सोना उगलेगी अपनी मेहनत पर हमको विश्वास है कितने हैं अरमान दिए की बाती में आसमान छू लेने की आस है। अब तो जीना सीख लिया हमने यारो मौसम मौसम मुझको अब मधुमास है। साभार- गर्भनाल