चीन की डायरी : चीनी समाज में विवाह परंपरा
-
डॉ. गंगाप्रसाद शर्मा 'गुणशेखर'चीन की एक उल्लेखनीय सामंती कहावत है- किसी के जीवन में अति आनंद के तीन अवसर होते हैं- सम्राट होना, शादी होना और पुत्र-जन्म। वर्तमान समय में सम्राट होना और पुत्र-जन्म सामंतवाद की तरह वैसी प्रासंगिकता खो चुके हैं, जैसी कभी अतीत में हुआ करती थी। लेकिन शादी अपने बदले संदर्भों के बावजूद अभी लगभग उसी प्रासंगिकता और अपने मूलार्थ के साथ बची हुई है। प्राचीनकाल में शादी तय होने के साथ-साथ उपहारों का सिलसिला शुरू हो जाता था। ये उपहार अपनी-अपनी हैसियत को दर्शाने के साथ इस कहावत को चरितार्थ करने के लिए दिए जाते थे कि 'बांस के द्वार से बांस के द्वार और लकड़ी के द्वार से लकड़ी के द्वार।' यानी हर प्रकार से रिश्ता बराबर हैसियत वाले घर में रना ही ठीक माना जाता था।वधू के घर से वर और वर के घर से वधू के घर अनेक उपहारों का आदान-प्रदान होता था। इन्हें बाहरी लोगों के सामने प्रदर्शित करने का भी प्रचलन था। ये परस्पर प्रेम के आदान-प्रदान का भी प्रतीक थे। कुछ उपहारों के तो स्पष्ट प्रतीकार्थ थे, जैसे वधू के घर से वर के घर भेजे जाने वाले पैमाने (स्केल) का अर्थ खूब जमीन, कैंची का मतलब दोनों में तितलियों की तरह परस्पर जुड़ाव और फूलदान का अर्थ प्रेम और सुगंध से परिपूर्ण होने की मंगलाशा था। कई जगहों पर ये धर्म समझकर भी दिए जाते थे।चीनी शादी के रस्मो-रिवाज को प्राचीन और आधुनिक दो रूपों में विभाजित करके देख सकते हैं। प्राचीनकाल में चीनी और भारतीय वैवाहिक रीति-रिवाजों में काफी साम्य भी देखा जा सकता है।