भाजपा और आरएसएस का प्लान बी
नई दिल्ली। मीडिया में अपने बयानों में भाजपा और आरएसएस के नेताओं ने विश्वास जाहिर किया है कि वे अगली सरकार बनाने के लिए राजग (एनडीए) को पर्याप्त संख्या बल प्राप्त हो जाएगा। एक्जिट पोल के संकेत भी इसी ओर इशारा कर रहे हैं, लेकिन बंद कमरों में भाजपा और इसके पितृ संगठन के नेताओं ने इस पर गंभीरता से चर्चा की अगर राजग को 272 सीटें नहीं मिलती हैं तो उनकी संख्या बल हासिल करने की रणनीति क्या होगी। डेलीमेल ऑनलाइन में प्रकाशित एक समाचार में कहा गया है कि भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि रविवार को इस मुद्दे पर चर्चा हुई कि पार्टी को अधिक छोटे दलों जैसे ओमप्रकाश चौटाला की इंडियन नेशनल लोकदल, नवीन पटनायक के नतृत्व वाली बीजू जनता दल और के. चंद्रशेखर राव की तेलंगाना राष्ट्र समिति से गठबंधन किया जाए। अधिक बड़े क्षेत्रीय दलों, जैसे जयललिता की एआईएडीएमके, ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस या मायावती की बसपा से दूर ही रहा जाए। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि जयललिता, ममता और मायावती जैसे क्षत्रपों से गठजोड़ करने का अर्थ होगा कि इन्हें संभालना मुश्किल होगा और ये नेत्रियां अपनी मांगों से केन्द्र सरकार को बंधक बना लेंगी।एक जानकार का कहना है कि आईएनएलडी, बीजद अथवा टीआरएस जैसी छोटी पार्टियां अधिक सीटें नहीं जीत सकेंगी, लेकिन इस बात की संभावनाएं हैं कि भाजपा को बहुमत पाने के लिए बहुत अधिक सीटों की जरूरत नहीं पड़ेगी। चौटाला की आईएनएलडी के साथ हाथ मिलाना पर्याप्त होगा, भले ही यह दो-तीन सीट ही जीतती है। एक अन्य नेता का कहना है कि तमिलनाडु में पार्टी करुणानिधि की डीएमके के साथ तालमेल करना चाहेगी क्योंकि जयललिता का कोई भरोसा नहीं है। वह 2016 में होने वाले विधानसभा चुनावों में राजग सरकार को धोखा दे सकती हैं।आंध्र में पार्टी जगनमोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस के साथ समझौता करना पसंद करेगी। भाजपा और आरएसएस दोनों के ही नेताओं ने इस बात को मानने से इनकार कर दिया है कि भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारा नरेन्द्र मोदी और पार्टी प्रमुख राजनाथसिंह की शनिवार और रविवार को बैठकें चुनाव बाद के गठबंधनों की रणनीति बनाने के लिए हुई थीं।लेकिन, सूत्रों का कुछ और ही कहना है। एक अंदरूनी जानकार का कहना है कि बंद दरवाजों के पीछे हुई बैठकों को अंतिम समय पर इसलिए रखा गया था ताकि सारे देश में राजग के लिए प्रचार कर रहे स्वयंसेवकों से जानकारी हासिल करनी थी।इस जानकारी के मिलने के बाद संघ आश्वस्त है कि राजग की चुनावी संभावनाएं बेहतर हैं लेकिन वे फिर भी चिंतित हैं। अगर गठबंधन को कुछेक सीटें कम मिलती हैं तो यह आश्चर्य की बात नहीं होगी। सूत्रों का यह भी कहना है कि पार्टी में इस बात को लेकर भी आशंका है कि बिहार और यूपी में उन्हें उतनी अधिक सीटें नहीं मिल सकेंगी जितनी का उन्होंने पहले अनुमान लगाय था। एक जानकार का कहना है कि बिहार में लालू की वापसी को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। अब यह देखना बाकी है कि लोक जनशक्ति के रामविलास पासवान के साथ गठबंधन से भाजपा को कितनी सीटें मिलती हैं। प्रारंभिक में यूपी में पार्टी को करीब 50 सीटें मिलने का अंदाजा था, लेकिन अहम जानकारी यह है कि पार्टी को अब 80 में से 42 से ज्यादा सीटें नहीं मिलेंगी।