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Written By WD Feature Desk
Last Updated : सोमवार, 23 सितम्बर 2024 (12:23 IST)

Shardiya navratri 2024: शारदीय नवरात्रि का इतिहास, कैसे शुरुआत हुई इस उत्सव की?

navratri-2024
History of Navratri: 3 अक्टूबर 2024 गुरुवार से नवरात्र‍ि का उत्सव और व्रत प्रारंभ होने वाले हैं। नवरात्रि में माता पार्वती के नौ रूपों की पूजा होती है। हिंदू मास अश्‍विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से इसकी शुरुआत होती है और नवमी एवं दशहरा पर इसका समापन होता है। क्या आप जानते हैं कि चैत्र या शारदीय नवरात्र के उत्सव और परंपरा की शुरुआत कब से और कैसे हुई? यदि नहीं तो जानिए नवरात्रि व्रत त्योहार परंपरा का इतिहास और महत्व।
 
51 शक्ति पीठ : देवी भागवत पुराण में 108, कालिकापुराण में 26, शिवचरित्र में 51, दुर्गा शप्तसती और तंत्रचूड़ामणि में शक्ति पीठों की संख्या 52 बताई गई है। इन सभी शक्तिपीठों की स्थिति और स्थापना का कोई काल निर्धारण नहीं है क्योंकि यह सभी माता सती और शिव की कथा से जुड़े हैं। फिर भी पुराणों के जानकार मानते हैं कि यह सभी रामायण काल के पूर्व के हैं।
 
श्रीराम की शक्ति पूजा : वाल्मीकि रामायण के अनुसार किष्किंधा के पास ऋष्यमूक पर्वत पर लंका की चढ़ाई करने से पूर्व श्री राम ने माता दुर्गा की उपासना की थी। ब्रह्मा जी ने भगवान श्री राम को देवी दुर्गा के स्वरूप चंडी देवी की पूजा करने की सलाह दी थी। इनकी सलाह से ही श्रीराम ने प्रतिपदा तिथि से लेकर नवमी तिथि तक चंडी देवी की पूजा और उपासना की थी। प्रभु श्री राम ने 9 दिनों तक अन्न जल कुछ भी ग्रहण नहीं किया था। 9 दिनों तक माता दुर्गा के स्वरूप चंडी देवी की उपासना करने के बाद श्री राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी। ऐसा माना जाता है कि तभी से नवरात्रि मनाने और 9 दिनों तक व्रत रखने की शुरुआत हुई।
Navratri Durga Worship
विजरायदशमी पर्व : प्रभु श्रीराम के पहले से ही विजयादशमी का पर्व मनाया जा रहा है। माता दुर्गा ने महिषासुर से 9 दिन तक युद्ध करने के बाद 10वें दिन उसका वध कर दिया था। विजयादशमी का पर्व माता कात्यायिनी दुर्गा द्वारा महिषासुर का वध करने के कारण मनाया जाता है जो कि श्रीराम के काल के पूर्व से ही प्रचलन में रहा है। इस दिन अस्त्र-शस्त्र और वाहन की पूजा की जाती है। नए शोधानुसार श्रीराम का जन्म 5114 ईसा पूर्व हुआ था।
 
सिंधु घाटी सभ्यता : सिंधु घाटी की सभ्यता के नागरिक जिन देवताओं की पूजा करते थे वे आगामी वैदिक सभ्यता में पशुपति और रुद्र कहलाए तथा वे जिस मातृका की उपासना करते थे वे वैदिक सभ्यता में देवी का आरंभिक रूप बनीं। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक सील में पीपल के वृक्ष के नीचे खड़ी देवी का अंकन है।
 
वैदिक सभ्यता : सिंधुघाटी की सभ्यता ही वैदिक आर्यों की सभ्यता थी। इनमें सर्वशक्तिमान देवी अदिति हैं जो समस्त प्राणियों की जननी हैं। इसके बाद  इस काल में अनेक देवियों के नाम मिलते हैं जैसे अम्बिका, कात्यायिनी,कन्याकुमारी आदि। इसी क्रम में सात कालियों के नाम भी मिलते हैं। इस काल में देवी का महिषासुर मर्दिनी स्वरूप बहुत शिल्पित हुआ। नेपाल में आठ माताओं को पूजने की परम्परा बहुत प्राचीन रही है।
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