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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : शुक्रवार, 14 अप्रैल 2023 (12:39 IST)

योगी राज के ‘एनकाउंटर मॉडल’ से निकाय और लोकसभा चुनाव में होगा वोटरों का ध्रुवीकरण?

2024 के लोकसभा और निकाय चुनाव में मुद्दा बनेगा योगी राज का ‘एनकाउंटर मॉडल’!

योगी राज के ‘एनकाउंटर मॉडल’ से निकाय और लोकसभा चुनाव में होगा वोटरों का ध्रुवीकरण? - Yogi Raj encounter model will polarize voters in civic and Lok Sabha elections
उत्तर प्रदेश में अतीक अहमद के आतंक के साम्राज्य का अंत हो गया है। अतीक अहमद के बेटे असद अहमद और शूटर गुलाम के एनकाउंटर के बाद  अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई का ‘योगी मॉडल’ लगातार सोशल मीडिया पर ट्रैंड कर रहा है। सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा असद और गुलाम के एनकाउंटर को सीधे योगी राज में कानून व्यवस्था से जोड़ रही है। भाजपा एनकाउंटर को सरकार की आतंक के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति बता रही है। उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम बृजेश पाठक कहते हैं कि राज्य को अपराध मुक्त बनाना 2017 से उनकी सरकार का पहला संकल्प है और कानून-व्यवस्था बनाए रखना सरकार की जिम्मेदारी है।

असद और गुलाम का एनकाउंटर ऐसे समय हुआ जब उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव हो रहे है। गुरुवार को असद और गुलाम का एनकाउंटर हुआ और आज (शुक्रवार) से प्रदेश में निकाय चुनाव के पहले चरण की प्रक्रिया शुरु हो रही है। निकाय चुनाव के पहले चरण में 37 जिलों में मतदान होना है। ऐसे में भाजपा अब एनकाउंटर को सीधे सरकार चलाने के ‘योगी म़ॉडल’ से जोड़ कर सियासी माइलेज लेने में जुट गई है। असद और गुलाम के एनकाउंटर में ढेर होने के फौरन उत्तरप्रदेश भाजपा ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मिट्टी में मिला देने वाले बयान का वीडियो शेयर करते हुए लिखा कि “जो कहते हैं, वो कर दिखाते हैं”।

उत्तर प्रदेश के 2022 विधानसभा चुनाव में अपराधियों के खिलाफ ‘बुलडोजर बाबा’ का एक्शन प्रमुख चुनावी मुद्दा बना था और चुनाव परिणाम इस बात की तस्दीक भी करते हैं कि भाजपा को इसका सीधा लाभ मिला था। दरअसल योगी सरकार में कानून के राज का मुद्दा 2017 के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में भाजपा का सबसे बड़ा हथियार है। इतना ही नहीं अपराधियों के खिलाफ “योगी मॉडल” की धमक उत्तर प्रदेश के साथ अन्य राज्यों में भी भाजपा खूब भुनाती रही है।

उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य एनकाउंटर पर विपक्ष के सवाल पर कहते हैं कि जनता की अदालत में इसका निर्णय होगा। वह कहते हैं कि पहले की सरकार में अपराधियों के मनोबल को बढ़ाया गया और पुलिस फोर्स का मनोबल गिराया गया। केशव प्रसाद मोर्य का बयान से साफ संकेत है कि भाजपा निकाय चुनाव के साथ प्रदेश में अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में भी मुद्दा बनाएगी।

दरअसल आतंक का पर्याय रहे अतीक अहमद लंबे समय तक उत्तर प्रदेश की राजनीति का एक ऐसा चेहरा रहा जिसकी धमक पूर्वाचल की राजनीति में सुनाई देती थी। समाजवादी पार्टी और अपना दल के टिकट पर सांसद और विधायक चुने जाने वाला अतीक की एक समय पूर्वांचल के कई राज्यों में तूती बोलती थी। जेल में रहने के बावजूद अतीत के परिवार का सियासी रसूख कायम रहा। वहीं 2017 में योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद अतीक के आतंक के साम्राज्य का अंत होने लगा।

2019 के लोकसभा चुनाव में अतीक अहमद ने वाराणसी से पीएम मोदी के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में था लेकिन ऐने वक्त पर वह पीछे हट गया था। वहीं पिछले कुछ दिनों से अतीक अहमद के परिवार के निकाय चुनाव में शामिल होने की अटकलें भी लगाई जा रही थी। अटकलें थी कि अतीक के भाई अशरफ की पत्नी प्रयागराज से मेयर का चुनाव लड़ सकती है।

एनकाउंटर पर सियासत?- असद और गुलाम के एनकाउंटर पर सियासत भी खूब शुरु हो गई है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एनकाउंटर पर सवाल उठाते हुए एनकाउंटर का प्रदेश बताया है। अखिलेश यादव ने कहा कि झूठे एनकाउंटर करके भाजपा सरकार सच्चे मुद्दों से ध्यान भटकाना चाह रही है। भाजपाई न्यायालय में विश्वास ही नहीं करते हैं। आज के व हालिया एनकाउंटरों की भी गहन जाँच-पड़ताल हो व दोषियों को छोड़ा न जाए। सही-गलत के फ़ैसलों का अधिकार सत्ता का नहीं होता है। भाजपा भाईचारे के ख़िलाफ़ है।

वहीं बसपा सुप्रीमो मायावती ने ट्वीट करके लिखा  कि “प्रयागराज के अतीक अहमद के बेटे व एक अन्य की आज पुलिस मुठभेड़ में हुई हत्या पर अनेकों प्रकार की चर्चायें गर्म हैं। लोगों को लगता है कि विकास दुबे काण्ड के दोहराए जाने की उनकी आशंका सच साबित हुई है। अतः घटना के पूरे तथ्य व सच्चाई जनता के सामने आ सके इसके लिए उच्च-स्तरीय जाँच जरूरी”।

ऐसे में जब उत्तर प्रदेश की राजनीति में वोटरों का ध्रुवीकरण और तुष्टीकरण चुनाव के समय एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बनता है। तब अतीक अहमद के बेटे और उसके गुर्गो के एनकाउंटर के साथ उसके आतंक को मिट्टी में मिलाने का सीधा असर चुनाव में वोटरों के ध्रुवीकरण पर होगा।   
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