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Last Modified: नई दिल्ली , रविवार, 18 मार्च 2018 (11:58 IST)

यहां रोजाना होती है महात्मा गांधी की पूजा-अर्चना

यहां रोजाना होती है महात्मा गांधी की पूजा-अर्चना - worship of Mahatma Gandhi
नई दिल्ली। महात्मा गांधी अपने नाम पर या स्मृति में कोई स्मारक बनाने के कभी पक्ष में नहीं रहे लेकिन आज उनके नाम पर न केवल कई स्मारक और स्मृति स्थल हैं बल्कि ओडिशा और तेलंगाना में उनका मंदिर है जिनमें स्थापित उनकी मूर्ति की रोजाना पूजा-अर्चना की जाती है।
 
दोनों गांधी मंदिर पारंपरिक मंदिरों की तरह ही हैं। यहां गांधी को भगवान मानकर पूजा-अर्चना की जाती है, उनकी प्रिय रामधुन बजाई जाती है और पेड़ों में धागे बांधकर मन्नतें मांगी जाती हैं। इन मंदिरों की खास बात यह है कि यहां भले गांधी भगवान की तरह पूजे जाते हैं, पर यहां आने वाले आगंतुकों को उनके विचारों और आदर्शों का पाठ भी पढ़ाया जाता है। ओडिशा का मंदिर लगभग 5 दशक पुराना है जबकि तेलंगाना में करीब 4 वर्ष पहले ही मंदिर बना है।
 
ओडिशा के संबलपुर जिले के भटारा गांव में गांधी मंदिर बनाने का सपना ग्रामीणों ने उसी  समय से देखना शुरू कर दिया था, जब 1928 में छुआछूत खत्म करने के लिए महात्मा गांधी वहां पहुंचे थे। उस समय दलितों को किसी भी मंदिर में प्रवेश करने से रोक दिया जाता था। इस मंदिर की आधारशिला 1971 में रखी गई। ग्रामीणों ने आपसी सहयोग से मंदिर का निर्माण किया। मंदिर में महात्मा गांधी की 6 फीट ऊंची प्रतिमा है और बाहर भारतमाता की प्रतिमा के अलावा अशोक स्तंभ है।
 
मंदिर की परिकल्पना स्थानीय शिल्पी तृप्ति दासगुप्ता ने की थी जबकि गांधीजी की प्रतिमा का निर्माण गंजाम जिले के आर्ट कॉलेज के छात्रों ने किया। ग्रामीणों ने अपने सपनों को  खुद के बलबूते से 4 वर्ष में साकार किया।
 
इस मंदिर में गांधीजी के आदर्शों का पालन करते हुए पूजा-अर्चना एक दलित द्वारा की जाती है। मंदिर में गांधी की सुबह-शाम आरती होती है, उनके उपदेशों का पाठ होता है और रामधुन बजती है। लोगों को नशे और हिंसा से दूर रहने का पाठ पढ़ाया जाता है।
 
गांधी जयंती के दिन यहां मेला-सा लग जाता है। आसपास के गांवों से हजारों लोग आते हैं।  इसी तरह 30 जनवरी, 26 जनवरी और 15 अगस्त को भी भारी भीड़ उमड़ती है। गांधी मंदिर डेवलपमेंट कमेटी मंदिर की देखभाल करती है।
 
दूसरा गांधी मंदिर तेलंगाना राज्य में विजयवाड़ा-हैदराबाद रोड पर चिटयाल गांव के पास साढ़े 4 एकड़ जमीन पर एक पहाड़ी के नीचे बना है। 4 साल पहले सेवानिवृत्त शिक्षकों और डॉक्टरों ने अपने पैसों से इस अनूठे मंदिर का निर्माण कराया है। सभी धर्मों का आदर करते हुए 30 से अधिक पवित्र स्थलों की मिट्टी इस मंदिर की नींव में डाली गई है।
 
मुख्य मंदिर में गांधी की प्रतिमा है, जबकि गर्भगृह के सामने धर्मचक्र और 32 फीट ऊंचा ध्वज स्तंभ है। मंदिर के दाईं ओर नवग्रहों की प्रतिमाएं हैं जबकि बाईं ओर पंच महाभूत की प्रतीक प्रतिमाएं हैं। मंदिर के निचले तल पर ध्यान कक्ष है। मंदिर में सुबह-शाम आरती  होती है। इसमें 2 पुजारी हैं, जो आगंतुकों को पूजा-पाठ कराते हैं।
 
महात्मा गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट गुंटूर के चेयरमैन श्रीपाल रेड्डी ने बताया कि इस मंदिर में  रोजाना करीब 200 लोग आते हैं। छुट्टियों के दिनों में संख्या दुगनी हो जाती है। उन्होंने कहा कि मंदिर के बारे में जैसे-जैसे लोगों को पता चल रहा है, वैसे-वैसे आगंतुकों की संख्या भी बढ़ती जा रही है।
 
मंदिर की एक विशेषता यह भी है कि गांधीजी को भगवान मानते हुए आगंतुक मंदिर परिसर में स्थित विशाल पेड़ की टहनियों में धागे बांधते हैं। लाखों धागे बंधे होने के कारण  यह पेड़ सभी को अपनी ओर सहज आकर्षित कर लेता है।
 
गांधी के इन मंदिरों पर वरिष्ठ गांधीवादी गुणवंत कालबांडे का कहना है कि आज जहां कुछ लोग गांधीजी के खिलाफ दुष्प्रचार करते नहीं थकते उससे तो यह बेहतर है कि उनकी पूजा  हो रही है। वैश्विक स्तर पर गांधीजी का सम्मान, उनके मूल्यों और आदर्शों के कारण लगातार बढ़ रहा है लेकिन अपने देश के कुछ लोग गांधीजी के बारे में भ्रांतियां फैलाने से बाज नहीं आ रहे। (वार्ता)
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