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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : बुधवार, 19 अक्टूबर 2022 (16:41 IST)

कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे बन पाएंगे राहुल गांधी के ‘बॉस’?

कांग्रेस पार्टी को फिर से खड़ा कर पाएंगे 80 साल के मल्लिकार्जुन खड़गे?

कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे बन पाएंगे राहुल गांधी के ‘बॉस’? - Will Mallikarjun Kharge become Rahul Gandhi's boss?
24 साल कांग्रेस को गांधी परिवार के बाहर का अध्यक्ष मिल गया है। 80 साल के मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस का नए अध्यक्ष चुन लिया गया है। 24 साल बाद कांग्रेस में गैर गांधी परिवार का व्यक्ति अध्यक्ष बना है। मल्लिकार्जुन खड़गे के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के पार्टी में राहुल गांधी की क्या भूमिका होगी इसको लेकर उठ रहे सवाल का खुद राहुल गांधी ने जवाब दिया।

भारत जोड़ो यात्रा में मीडिया से बात करते हुए राहुल गांधी ने मल्लिकार्जुन खड़गे उनकी भूमिका को तय करेंगे। राहुल ने कहा कि कांग्रेस में अध्यक्ष सर्वोच्च प्राधिकारी हैं और वहीं पार्टी के आगे के रुख के बारे में फैसला करेंगे। राहुल ने कहा कि कांग्रेस अध्‍यक्ष ही पार्टी में मेरी भूमिका तय करेंगे। वहीं जब मीडिया ने राहुल से जब पूछा गया कि क्या वह नए अध्यक्ष को रिपोर्ट करेंगे तो उन्होंने कहा कि जाहिर है।

राहुल गांधी के इस बयान के बाद अब सबकी निगाहें इस बात पर टिक गई है कि क्या सच में मल्लिकार्जुन खड़गे पार्टी में राहुल गांधी की भूमिका तय करेंगे?,क्या मल्लिकार्जुन खड़गे राहुल गांधी के बॉस बन पाएंगे? अगर वकाई में खड़गे का कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर अपने को साबित करना है तो उनको एक नहीं कई चुनौतियां से जूझना होगा।  

गांधी परिवार के रबर स्टैंप की छवि को तोड़ना चुनौती?- कांग्रेस में मल्लिकार्जुन खड़गे को गांधी परिवार को रबर स्टैंड के तौर पर देखा जाता है। राज्यसभा ने नेता विपक्ष रहने वाले मल्लिकार्जुन एक नहीं कई मौकों पर खुद को गांधी परिवार के सच्चे सिपाहसालार के तौर पर पेश करते आए है। खुद खड़गे भी गांधी परिवार के प्रति अपनी निष्ठा नहीं छिपाते है। 

दरअसल कांग्रेस और गांधी परिवार एक दूसरे से पर्याय माने जाते है। जब-जब कांगेस में गांधी परिवार के बाहर कोई व्यक्ति पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया है तो यह माना गया है कि पर्दे के पीछे सभी फैसले गांधी परिवार ही लेता है। अगर  कांग्रेस पार्टी के इतिहास को देखा जाए जब-जब कांग्रेस में गांधी परिवार के बाहर को कोई अध्यक्ष हुआ है तो उसे गांधी परिवार का रबर स्टैप माना गया है। ऐसे में खड़गे को भी इस चुनौती से जूझना होगा और खुद उनके लिए गांधी परिवार के साये से बाहर निकलना एक बड़ी चुनौती होगी।

दरअसल भारत की राजनीति में बिना गांधी परिवार के कांग्रेस पार्टी को वजूद को नहीं माना जाता है। 24 साल पहले सीताराम केसरी जब गांधी परिवार के बाहर के तौर पर अध्यक्ष बने तो वह तब तक ही अपने पद पर रहे जब तक उनको गांधी परिवार का समर्थन रहा।

बुजुर्ग बनाम यंग कांग्रेस में तालमेल की चुनौती?- कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने सबसे बड़ी और पहली चुनौती कांग्रेस में बुजुर्ग बनाम यंग कांग्रेस की जो लड़ाई इस समय चरम पर है उस पर काबू पाना है। मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच दंद्ध को रोकना सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा है।

कांग्रेस में माना जाता है कि यंग कांग्रेस का प्रतिनिधित्व राहुल गांधी का कैंप करता है वहीं बुजुर्ग कांग्रेस का प्रतिनिधित्व सोनिया गांधी के खास माने जाने वाले नेता। ऐसे में मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने बड़ी चुनौती इन दोनों धड़ों के बीच सांमजस्य बनाना है।

दरअसल कांग्रेस में इस वक्त नए और पुराने नेताओं के बीच जो शीत युद्ध छिड़ा है उस पर काबू करना और दोनों के बीच सांमजस्य बनाए रखना मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए इतना आसान काम नहीं होगा। पार्टी के बड़े नेताओं के बीच इस समय खेमेबाजी साफ दिखाई दे रही है इस खेमेबाजी को खत्म कर फिर से सभी को पार्टी के झंडे के नीचे लाना खड़गे के सामने बड़ी चुनौती होगी। ऐसे में कांग्रेस के नए अध्यक्ष के सामने चुनौती पार्टी को और बिखरने से बचाना और पार्टी के अंसतुष्ट नेताओं को एकजुट करना होगा।

वहीं कई दशकों तक पार्टी के साथ मजबूती के साथ खड़े रहने वाले कांग्रेस नेता एक के बाद पार्टी को अलविदा कह रहे हैं,वहीं कई नेता पार्टी के अलविदा कहने की कगार पर खड़े है। दो दशक से अधिक लंबे अंतराल के बाद कांग्रेस में गैर गांधी परिवार के अध्यक्ष बनने के बाद अब उसके सामने पार्टी को एकजुट रखना बड़ी चुनौती है।

पार्टी को चुनाव में जीत के ट्रैक पर लाने की चुनौती?–कांग्रेस के नए अध्यक्ष  मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस पार्टी को जीत के ट्रैक पर वापस लाने की चुनौती है। खड़गे ऐसे समय कांग्रेस की कमान संभाल रहे है जब हिमाचल और गुजरात जैसे राज्य में चुनाव बिगुल बज चुका है और खड़गे जिस कर्नाटक से आते वहां छह महीने बाद चुनाव होने है। ऐसे में खड़गे के सामने चुनौती इन राज्यों में जीत हासिल करना है। वहीं पार्टी के कैडर को फिर से खड़ा करना भी खड़गे के सामने बड़ी चुनौती है। खड़गे के सामने पूरे देश में पार्टी के कैडर को फिर से खड़ा करना जिससे कि वह भाजपा का सामना कर सके।

विचारधारा के भंवर से निकालने की चुनौती?-कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने बड़ी चुनौती पार्टी को विचारधारा के संकट के भंवर से निकालना है। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस अगर आज इतिहास के अपने सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही है तो इसका बड़ा कारण पार्टी के सामने विचारधारा का संकट होना है।

राहुल गांधी ने कांग्रेस संगठन को नई विचारधारा पर खड़ा करने की कोशिश की लेकिन उसमें वह कामयाब नहीं हो पाए। ऐसे में कांग्रेस को संगठन के साथ साथ विचाराधारा पर भी नए सिरे से खड़ा करने की जरूरत होगी जो किसी चुनौती से कम नहीं होगा। दिलचस्प बात यह है कि खुद खड़गे का चुनाव वैचारिक रूप  राहुल गांधी की उस विचारधारा पर सवाल उठाता है जिसमें राहुल नए नेतृत्व को आगे लाने की बात कहते है। 80 साल के खड़गे को नया नेतृत्व तो नहीं ही कहा जा सकता है।