चुनावी साल में कर्मचारियों की पुरानी पेंशन का मुद्दा बड़ा होता जा रहा है। पुरानी पेंशन स्कीम की बहाली की मांग को लेकर अब कर्मचारियों का विरोध मुखर होता जा रहा है। जैसे-जैसे लोकसभा और विधानसभा चुनाव नजदीक होते जा रहे है कर्मचारी संगठन लामबंद होकर विरोध प्रदर्शन करने लगे है। वहीं दूसरी ओर पुरानी पेंशन स्कीम (OPS) और नेशनल पेंशन स्कीम (NPS) अब सियासी टकराव का मुद्दा भी बनता दिखा रहा है। गैर भाजपा शासित राज्य खुलकर ओपीएस के समर्थन में आ गए है और लगातार फैसले कर रहे है वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सप्ताह ओपीएस लागू करने वाले राज्य सरकारों को सीधी चेतावनी दी।
पुरानी पेंशन स्कीम की बहाली की मांग क्यों?-2003 में अटल बिहारी सरकार ने देश में ओल्ड पेंशन स्कीम को खत्म कर नेशनल पेंशन स्कीम को लागू कर दिया था। देश में 1 अप्रैल 2004 से नेशनल पेशन स्कीम को लागू किया गया है। पुरानी पेंशन स्कीम की बहाली की मांग कर रहे कर्मचारी संगठन नेशनल पेंशन स्कीम (NPS) को कर्मचारी विरोधी बता रहे है। कर्मचारी संगठनों का आरोप है कि केंद्र सरकार ने केंद्रीय कर्मचारियों के लिए लागू सिविल सेवा पेंशन नियम 1972 यानि ओल्ड पेंशन स्कीम को खत्म कर दिया और एक जनवरी 2004 के बाद सरकारी सेवा में नियुक्ति कर्मचारियों और अधिकारियों पर नेशनल पेंशन स्कीम लागू की गई है जो पूरी तरह शेयर बाजार पर अधारित है।
कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना की बहाली की लड़ाई को राष्ट्रीय स्तर पर लडने वाले नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम के अध्यक्ष विजय कुमार बंधु कहते हैं कि देश में 80 लाख का कर्मचारी देश का नागरिक है। कर्मचारी भी सरकार का एक अंग है और वह सरकार रीढ़ है और कर्मचारी ही वह वर्ग है कि सहारे सरकार अपनी योजनाओं को जनता तक पहुंचाती है और विकास के तमाम दावे करती है।
विजय कुमार कहते हैं कि अगर देश के नेताओं को पेंशन मिलती है तो कर्मचारियों को पेंशन से क्यों वंचित किया जा रहा है। वह कहते हैं कि अगर सरकार कर्मचारियों को पुरानी पेंशन देने में वित्तीय संसाधन का रोना रो रही है यह अपने आप में सवालों के घेरे में है। कर्मचारियों को पेशन तब मिल रही थी जब सरकार की वित्तीय स्थिति सहीं नहीं था वहीं जब आज भारत दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है तब सरकार का वित्तीय संसधान का बहाना करना बेईमानी है।
वह कहते हैं कि 5 और 6 मार्च को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में आगे की रणनीति तय करेंगे और पुरानी पेंशन स्कीम की बहाली होने तक उनका विरोध प्रदर्शन जारी रहेगा। वह कहते हैं कि एक दिन सरकार उनकी मांगों को पूरा करेगी और पुरानी पेंशन बहाल की जाएगी।
NPS पर क्यों भारी OPS?-नेशनल पेंशन स्कीम के लागू होने के बाद ही कर्मचारी संगठनों के इसका विरोध करने के एक नहीं कई कारण है। पुरानी पेंशन योजना में कर्मचारी को मिलने वाले आखिरी वेतन का रिटायरमेंट के बाद सरकार 50 फीसदी पेंशन का भुगतान करती थी,जबकि नेशनल पेंशन स्कीम में 2004 के बाद सरकारी नौकरी में आए कर्मचारी अपनी सैलरी से 10 फीसदी हिस्सा पेंशन के लिए योगदान करते हैं वहीं राज्य सरकार 14 फीसदी योगदान देती है। कर्मचारियों की पेंशन का पैसा पेंशन रेगुलेटर PFRDA के पास जमा होता है, जो इसे बाजार में निवेश करता है।
इसके साथ पुरानी पेंशन में कर्मचारियों की पेंशन हर छह महीने पर मिलने वाले महंगाई भत्ते (DA) के अनुसार तय होती है, इसके अलावा जब-जब सरकार वेतन आयोग का गठन करती है, पेंशन भी रिवाइज हो जाती है, जबकि नेशनल पेंशन स्कीम में ऐसा कुछ भी नहीं है। इसके साथ ही पुरानी पेंशन स्कीम में रिटायरमेंट के समय 20 लाख रुपये तक ग्रेच्युटी की रकम मिलती है जबकिन नेशनल पेंशन स्कीम में इसकी कोई गारंटी नहीं है।
OPS क्यों बना चुनावी मुद्दा?-2004 से बंद ओल्ड पेंशन स्कीम के हाल के समय चुनावी मुद्दा बनने का मुख्य हिमाचल चुनाव में कांग्रेस की जीत और भाजपा की हार से जोड़कर देखा जा रहा है। पिछले दिनों हुए हिमाचल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के पीछे राजनीतिक विश्लेषक ओल्ड पेंशन स्कीम (OPC) की बहाली का वादा बड़ा कारण मान रहे हैं। चुनाव के बाद कांग्रेस के साथ भाजपा नेताओं ने दबी जुबान स्वीकार किया कि राज्य में तख्ता पलट होने का बड़ा कारण ओल्ड पेंशन स्कीम रहा।
वहीं दूसरी कांग्रेस शासित कई राज्यों ने ओल्ड पेंशन स्कीम को बहाल करने के बाद अब भाजपा शासित राज्यों पर दबाव बढ़ गया है। कांग्रेस शासित हिमाचल प्रदेश के साथ छत्तीसगढ़, राजस्थान और झारखंड में राज्य सरकारों ने ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू कर दिया है। हिमाचल प भाजपा शासित मध्यप्रदेश जैसे राज्य जहां वर्ष विधानसभा चुनाव होने है वहां पर ओल्ड पेंशन स्कीम चुनाव मुद्दा बन गई है। मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने एलान कर दिया है कि सत्ता में वापस आते ही पुरानी पेंशन स्कीम को बहाल किया जाएगा। वहीं चुनावी राज्य राजस्थान में भी बजट में ओपीएस को लेकर बड़ा एलान किया गया।
OPS लागू करने वाले राज्यों को प्रधानमंत्री की चेतावनी- पिछले दिनों संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिना ओपीएस का जिक्र किए ओपीएस लागू करने वाले राज्य सरकारों को नसीहत भी दी। प्रधानमंत्री ने कहा कि जिनको आर्थिक नीतियों की समझ नहीं है, सत्ता का खेल खेलने वालों ने अर्थनीति को अनर्थ नीति में बदल दिया।
प्रधानमंत्री ने चेतावनी देते हुए कहा कि राज्यों को समझाएं कि वह राजनीतिक फायदे के लिए गलत रास्ते पर नहीं ले जाए। कर्ज के तले दबे पड़ोसी देश की दुर्दशा का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि कर्ज लेकर घी पीओ की नीति खतरनाक है और किसी को देश की आर्थिक सेहत से खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। राज्य सरकारों के इस कमद से बच्चों का भविष्य बर्बाद हो जाएगा और आने वाली पीढ़ियों को इसका बोझ उठाना पड़ेगा।
जहां एक ओर पुरानी पेंशन योजना को लेकर जहां कर्मचारी संगठन विरोध कर रहे है वहीं रिजर्व बैंक इसके विरोध में है। आरबीआई की रिपोर्ट में कहा गया हैं कि पुरानी पेंशन योजना को स्वीकार करने से ढेर सारी समस्याएं खड़ी हो सकती हैं। इस कदम से राजकोषीय संसाधनों पर अधिक दबाव पड़ेगा और राज्यों की बचत पर नकारात्मक असर पड़ेगा। वर्तमान खर्चों को भविष्य के लिए स्थगित करके राज्य आने वाले वर्षों के लिए बहुत बड़ा जोखिम उठा रहे हैं। इससे उनकी पेंशन देनदारियां बढ़ती जाएंगी।
मध्यप्रदेश सरकार को अल्टीमेटम-मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले पुरानी पेंशन स्कीम की बहाली को लेकर अब कर्मचारी संगठन आरपार की लड़ाई के मूड में आ गए है। कर्मचारी संगठनों ने राज्य सरकार को पुरानी पेंशन योजना को लागू करने के लिए एक महीने का अल्टीमेटम दे दिया है। कर्मचारी संगठनों ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर मांग की है कि सरकार आने वाले बजट में राज्य में पुरानी पेंशन् योजना को लागू करने की घोषणा करें।