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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : शनिवार, 17 सितम्बर 2022 (15:49 IST)

75 साल बाद चीतों की कूनो में वापसी के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भरोसे को बनाए रखने की अब बड़ी चुनौती?

आप मुसीबत झेलेंगे लेकिन चीतों पर मुसीबत नहीं आने देंगे: पीएम नरेंंद्र मोदी

75 साल बाद चीतों की कूनो में वापसी के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भरोसे को बनाए रखने की अब बड़ी चुनौती? - Why PM Narendra Modi worried about the safety of cheetahs in Kuno
देश में 75 साल बाद एक बार चीता मध्यप्रदेश के धरती पर दौड़ने लगा। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र ने श्योपुर के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में नामीबिया से लाए गए चीतों को छोड़ा। चीतों के नेशनल पार्क में छोड़ने के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीतों की तस्वीरों को अपने कैमरे में कैद किया। इस दौरान प्रधानमंत्री काफी खुश दिखाई दिए। 
 
कूनो नेशनल पार्क में चीतों को छोड़ने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीतों की सुरक्षा के लिए बनाए गए चीता मित्रों के साथ संवाद किया। चीतों को कूनों में छोड़ने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि चीते हमारे मेहमान हैं, उनको देखने के लिए कुछ समय का धैर्य और रखना होगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि कूनो नेशनल पार्क में चीते इसलिए छोड़े गए, क्योंकि मुझे आप पर भरोसा है और आप लोगों ने मेरे भरोसे को कभी नहीं तोड़ा है।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा वह पूरे विश्व को संदेश देना चाहते है कि 75 साल बाद देश की धरती पर चीता लौट आए, हमारे बहुत बड़े मेहमान आए है। प्रधानमंत्री ने कहा कि एक ऐतिहासिक अवसर है और मध्यप्रदेश के लोगों को और श्योपुर के लोगों के विशेष बधाई देता हूं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि श्योपुर को चीता इसलिए सौंपा क्योंकि आप पर हमारा भरोसा है। आप मुसीबत झेंलेगे लेकिन चीतों पर मुसीबत नहीं आने देगें। यह मेरा विश्वास हैं और इसी कारण आप सभी को इन 8 चीतों की जिम्मेदारी सुपुर्द करने आया हूं। मुझे पूरा विश्वास है कि इस देश के लोगों ने और मध्यप्रदेश के लोगों ने मेरे भरोसे को कभी तोड़ा नहीं है और आंच नहीं आने दी और मुझे पूरा भरोसा है कि श्योपुर के लोग भी मेरे भरोसे पर आंच नहीं आने देंगे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि मुझे आज इस बात की भी खुशी है कि भारत की धरती पर अब 75 साल बाद चीता फिर से लौट आया है। कूनो नेशनल पार्क में चीतों को छोड़ने का सौभाग्य मिला। आज इस मंच से पूरे विश्व को संदेश देना चाहता हूं कि आज जब करीब-करीब 75 वर्ष बाद आठ चीतें हमारे देश की धरती पर लौट आए हैं। अफ्रीका से हमारे मेहमान आए हैं, इन मेहमानों के सम्मान में हम सभी इनका स्वागत करें। 
 
चीतों के बाड़े में चप्पे पर नजर- कूनो पहुंचने के बाद अब इन 8 चीतों को 30 दिनों तक अलग-अलग बाड़ों में रखा जाएगा। इस दौरान उनकी सेहत पर नजर रखी जाएगी। अफ्रीकी महाद्धीप से एशिया महाद्धीप में आने वाले चीतों के एक बार कूनो के पर्यावरण में ढ़लने के बाद इन्हें जंगल में छोड़ जाएगा। चीतों को पांच किलोमीटर दायरे में बने जिन बाड़ों में रखा गया है उसमें सीसीटीवी कैमरे लगाने के साथ जगह वॉच टॉवर बनाए गए है जिससे चीतों की गतिविधियों पर नजर रखी जा सकें। इसके साथ बाड़ों की विशेष प्रकार की फेंसिग की गई है। कूनो नेशनल पार्क में पाए जाने वाले तेदुओं से चीतों की सीधी भिड़ंत की भी आंशका है। इसके साथ ही चीतों को शिकारियों से बचाना भी अपने आप में एक चुनौती है। चीतों की सुरक्षा के कूनो नेशनल प्रबंधन ने सेना के रिटायर्ड जवानों को तैनान किया है।  

क्यों चीतों की सुरक्षा बड़ी चुनौती?–टाइगर स्टेट और तेंदुआ स्टेट का दर्जा रखने वाला मध्यप्रदेश जो आज से चीता स्टेट बनने जा रहा है, उसके समाने सबसे बड़ी चुनौती चीतों की सुरक्षा का है। वन्य प्राणी सरंक्षण को लेकर कैग ने रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में 2014 से 2018 के बीच 115 बाघों और 209 तेंदुओं की अलग-अलग कारणों से मृत्यु हुई। चिंता वाली बात यह है कि प्रदेश के सात वन मंडल में ही 80 बाघों की मृत्यु हुई, जिसमें 16 का शिकार किया गया है। ऐसे 16 बाघ और 21 तेंदुए के शव मिले है जिनकी मौत बिजली के करंट से हुई है। 
 
अगर बीते सालों में बाघों की मौत के आंकड़ों पर नजर डाले तो गत 6 सालों में 175 बाघों की मौत हो चुकी है।  जनवरी 2022 से 15 जुलाई 2022  तक मध्यप्रदेश में 27 बाघों की मौत दर्ज की गई है जोकि देश में सबसे ज्यादा है। वहीं मध्यप्रदेश में 2021 में 44, 2020 में 30, 2019 में 29, 2018 में 19, 2017 में 27 और 2016 में 34 बाघों की मौत हुई थी। नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) की रिपोर्ट के मुताबिक जनवरी 2022 में 15 जुलाई तक 74 बाघों की मौत हुई जिसमें 27 बाघ मध्यप्रदेश के थे। 
 
प्रदेश में लगातार हो रही बाघों की मौत में सबसे आश्चर्यजनक पहलू यह है कि नेशनल पार्क में रहने वाले बाघ भी सुरक्षित नहीं है। एक रिपोर्ट के मुताबिक बाघों की सबसे ज्यादा मौतें टाइगर रिजर्व क्षेत्र में हुई है। कान्हा टाइगर रिजर्व में सबसे ज्यादा 30 और बांधवगढ़ में 25 मारे गए थे।