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Written By WD Feature Desk
Last Updated : बुधवार, 11 दिसंबर 2024 (14:36 IST)

Justice is due: अतुल सुभाष की आत्महत्या का मामला; क्या भारतीय न्यायपालिका कर रही है पुरुषों के अधिकारों की अनदेखी

Justice is due: अतुल सुभाष की आत्महत्या का मामला; क्या भारतीय न्यायपालिका कर रही है पुरुषों के अधिकारों की अनदेखी - why did Atul Subhash commit suicide
Atul Subhash suicide case 

Justice is due: बेंगलुरू में काम करने वाले 34 वर्षीय AI इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या ने पूरे देश को झकझोर दिया। उन्होंने आत्महत्या से पहले 24 पन्नों का एक नोट और 1.20 घंटे का वीडियो बनाया, जिसमें अपनी अलग रह रही पत्नी और उसके परिवार पर उत्पीड़न का आरोप लगाया।

विडियो में अतुल सुभाष  ने कहा कि उन पर लगाए आरोप बेबुनियाद हैं। उन्होंने विडियो में ये भी आरोप लगाया कि उनकी पत्नी और न्यायपालिका के दुर्व्यवहार से आहत होकर वे आत्महत्या का कदम उठा रहे हैं। अतुल सुभाष की आत्महत्या के बाद कई ऐसे सवाल फिर उठ खड़े हुए जो अब तक दबी ज़बान में पुरुष अधिकारों के बाबद पूछे जाते रहे हैं।  

पहली बार नहीं उठ रहे हैं ये सवाल
अतुल सुभाष का अपने बिखरे रिश्ते और न्यायपालिका में फैले भ्रष्टाचार के आगे हार मानकर आत्महत्या करने का यह अकेला मामला नहीं हैं। घरेलू हिंसा और क्रूरता से जुड़े कानून कई बार बेकुसूर पुरुषों के लिए मुसीबत बने हैं। इसी साल सितंबर में सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा कानून और धारा 498A को सबसे ज्यादा 'दुरुपयोग' किए जाने वाले कानूनों में से एक बताया था।

इस समय जस्टिस बीआर गवई ने अपने स्टेटमेंट में कहा था, 'नागपुर में मैंने एक ऐसा मामला देखा था, जिसमें एक लड़का अमेरिका गया था और उसे शादी किए बिना ही 50 लाख रुपये देने पड़े थे। दिन भी साथ नहीं रहा था। मैं खुले तौर पर कहता हूं कि घरेलू हिंसा और धारा 498A का सबसे ज्यादा दुरुपयोग किया जाता है।'

न्यायपालिका और पुरुषों के प्रति भेदभाव
अतुल सुभाष जैसे मामलों में यह साफ दिखता है कि न्यायपालिका में पुरुषों के साथ भी अन्याय हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में घरेलू हिंसा और धारा 498A के दुरुपयोग को लेकर चिंता व्यक्त की थी।

धारा 498A और घरेलू हिंसा कानून का दुरुपयोग
सितंबर 2023 में जस्टिस बीआर गवई ने बताया कि घरेलू हिंसा और धारा 498A का दुरुपयोग सबसे अधिक होता है। कई निर्दोष पुरुषों को कानूनी लड़ाई में अपने जीवन और धन दोनों से हाथ धोना पड़ता है।

पितृसत्तात्मक समाज और पक्षपाती नज़रिया
हमारा समाज पितृसत्तात्मक कहा जाता है, जहां अक्सर महिलाओं को अबला और पुरुषों को दोषी माना जाता है। लेकिन सच्चाई यह है कि हमेशा पुरुष ही गलत नहीं होते। कई बार महिलाओं की ओर से भी गलतियां होती हैं।

आत्महत्या: हार का परिणाम या न्याय का अभाव?
अतुल सुभाष की आवाज में उनके रिश्ते में छले जाने और न्यायपालिका के रवैये से हताशा का दर्द झलकता है। यह घटना इस ओर इशारा करती है कि पुरुषों की समस्याओं को भी गंभीरता से लिया जाना चाहिए।

हमारे समाज की मानसिकता में पुरुषों के प्रति गहरे तक पैठ कर चुके कुछ विचारों के कारण पूरा पुरुष वर्ग एक ही मापदंड पर जज किया जाता रहा है। महिला-पुरुष के बीच किसी भी विवाद की स्थिति में जल्दबाजी में ये मान लिया जाना कि गलती तो आदमी की ही होगी और औरत को बेकुसूर करार दे देना निश्चित ही पुरुषों के लिए घातक साबित हुआ है।

बेंगलुरू में काम करने वाले 34 वर्षीय AI इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या के इस प्रकरण के बाद एक बार फिर ये सवाल उठ खड़े हुए हैं। ये तो समय ही बताएगा कि क्या भारतीय न्यायपालिका इस तरह के मामलों को ध्यान में रखते हुए हमारी न्याय व्यवस्था में बदलाव करेगी? 



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