नई दिल्ली। तमिलनाडु के वेल्लोर में मंगलवार की रात को इ वी आर 'पेरियार' की प्रतिमा को खंडित कर दिया गया। वह शुरू से ही धार्मिक विश्वासों, प्रतीकों और ब्राह्मणवादी सोच के घोर विरोधी रहे और बाद में उनके विचारों का प्रभाव तमिल राजनीति पर देखा गया। पेरियार का अर्थ तमिल भाषा में 'बड़ा' या 'सम्मानित व्यक्ति' होता है और वे ऐसे सम्मानित व्यक्ति रहे हैं जिन्होंने तमिलनाडु की द्रविड़ राजनीति को इतना विस्तार दिया है कि दक्षिण भारत का कोई भी राजनीतिक दल उनके विचारों से अप्रभावित नहीं रहा है।
उत्तर और मध्य भारत में दलित राजनीति का जो चेहरा भीमराव अम्बेडकर रहे हैं, दक्षिण भारत और विशेष रूप से तमिलनाडु में वही स्थान पेरियार का रहा है।
पेरियार का जन्म 1879 में मद्रास प्रेजीडेंसी के इरोड कस्बे में हुआ था। उन्होंने जीवनभर ब्राह्मणवादी सोच और हिंदू कुरीतियों पर प्रहार किया और मनुस्मृति जैसे धर्मग्रंथों को जलाने में कोई संकोच नहीं किया। तमिलनाडु में डीएमके (द्रविड़ मुनेत्र कषगम) और अन्नाडीएमके ऐसे दो दल हैं जोकि पेरियार को अपने वैचारिक संघर्ष का स्रोत मानते हैं।
द्रविड़ आंदोलन के संस्थापक और तमिलनाडु के महान समाज सुधारक इवी रामास्वामी 'पेरियार' की प्रतिमा को क्षतिग्रस्त कर दिया गया। राज्य में तमिल राजनीति के केन्द्र बिंदु रहे पेरियार की मूर्ति को तोड़े जाने के बाद उपद्रव होना स्वाभाविक है क्योंकि पेरियार समर्थकों का मानना है कि यह काम हिंदूवादी संगठन और दल, भाजपा, का है।
पेरियार अपने विचारों में ब्राह्मणवादी सोच के कट्टर विरोधी थे और उन्होंने हमेशा ही कथित हिंदू प्रतीकों, कर्मकांड, धार्मिक पुस्तकों और आंदोलनों का विरोध किया। कहा जाता है कि वह 1904 में काशी गए थे। वहां की एक घटना ने उनके विचारों पर गहरा प्रभाव डाला। यहां भूखे होने के बावजूद उनको गैर-ब्राह्मण होने के कारण भोजन नहीं मिल सका। इसके साथ ही धार्मिक आस्था के नाम पर हो रहे कर्मकांड ने उनको आस्तिक से नास्तिक बना दिया।
पेरियार वर्ष 1919 में कांग्रेस में शामिल हुए लेकिन 1925 में उन्होंने इस पार्टी से नाता तोड़ लिया। उनका मानता था कि यह ब्राह्मणवादी विचारों को आगे बढ़ाने का काम कर रही है।
उस वक्त दक्षिण के राज्यों में छुआछूत और जातिवादी व्यवस्था का गहरा असर था। केरल के वाइकोम कस्बे में हालत इतनी खराब थी कि दक्षिण भारत के कई मंदिरों में निचली, दलित जातियों के लोगों को प्रवेश तो दूर उन्हें पास की सड़कों पर भी नहीं आने दिया जाता था। इसके खिलाफ उन्होंने केरल के वाईकोम अहिंसक सत्याग्रह आंदोलन में हिस्सा लिया।
आत्मसम्मान आंदोलन और इसका असर : दलितों, पिछड़ों को अगड़ी जातियों के बराबर मानव अधिकारों की मांग करते हुए इन लोगों में आत्मसम्मान जगाने के लिए इस आंदोलन की शुरुआत 1921 में एस रामानाथन ने की थी। बाद में, उन्होंने इस आंदोलन की अगुआई के लिए पेरियार को चुना। ब्राह्मणवादी विचारों और सोच के खिलाफ शुरू हुआ यह आंदोलन बहुत सफल रहा था। मौजूदा दौर में तमिलनाडु की सियासत में अहम स्थान रखने वाली डीएमके और अन्नाडीएमके जैसे दल इसी आंदोलन से उपजे।
राज्य में हिंदी का विरोध की शुरुआत : जब 1937 में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी मद्रास प्रेजीडेंसी के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य भाषा के रूप में पढ़ाने का निश्चय किया। इसके परिणामस्वरूप 1938 में इसके खिलाफ पेरियार और एटी पन्नीरसेल्वम के नेतृत्व में हिंदी विरोधी आंदोलन शुरू हुआ। इसके खिलाफ पेरियार का नारा था कि तमिलनाडु, तमिलों के लिए है।
जस्टिस पार्टी का जन्म : वर्ष 1916 में ब्राह्मणवादी वर्चस्व के खिलाफ दलितों, पिछड़ों को सामर्थ्यवान बनाने के लिए राज्य में साउथ इंडियन लिबरल फेडरेशन पार्टी का गठन हुआ और बाद में इसीको जस्टिस पार्टी के नाम से जाना गया। पेरियार 1938-44 तक इसके अध्यक्ष रहे। पेरियार ने 1944 में इसको सामाजिक संगठन द्रविड़ कषगम में बदल दिया।
द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) : वर्ष 1949 में पेरियार के करीबी सीएन अन्नादुरई ने उनका साथ छोड़कर द्रमुक (डीएमके) की स्थापना की। पेरियार जहां एक स्वतंत्र द्रविड़ देश की मांग के पक्षधर थे वहीं अन्नादुरई पृथक राज्य से ही संतुष्ट थे। इसके अलावा पेरियार राजनीति में उतरने के इच्छुक नहीं थे लेकिन अन्नादुरई समर्थक राजनीति में उतरे।
पेरियार का राजनीति में न उतरने का कारण उनका निजी जीवन भी था। विदित हो कि 1933 में पेरियार की पहली पत्नी का निधन हो गया था। उसके करीब 16 साल बाद उन्होंने अपने से 32 साल छोटी महिला से विवाह कर लिया। वह महिला उनकी निजी सचिव थीं। उस वक्त पेरियार की उम्र 70 साल थी जिस कारण से उनके विवाह को लेकर विरोध किया गया।
उनके विरोधियों ने इसको मौके के रूप में देखते हुए उनका साथ छोड़कर अन्नादुरई का दामन थाम लिया। तर्कवादी, मानवतावादी पेरियार ने जीवन भर खुद को सत्ता की राजनीति से दूर रखा। वह दलितों, पिछड़ों और महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे। 24 दिसंबर, 1973 को उनका निधन हो गया।
दूसरी ओर वर्ष 1969 में अन्नादुरई के निधन के बाद एम. करुणानिधि ने डीएमके की कमान संभाली। करुणानिधि के अस्वस्थ होने के कारण अब इस पार्टी की कमान उनके बेटे एमके स्टालिन के पास है। वर्ष 1972 में फिल्म अभिनेता एमजी रामचंद्रन ने करुणानिधि से अलग होकर अन्नाद्रमुक (अन्नाडीएमके) बनाई। उनके बाद जयललिता ने अन्नाडीएमके को संभाला। इस वक्त तमिलनाडु में अन्नाडीएमके की सरकार है और ई पलानीस्वामी मुख्यमंत्री हैं।