किसी न किसी को तो ताजमहल की जिम्मेदारी लेनी ही होगी : सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली। ताज महल को औद्योगिक प्रदूषण, वाहनों के जहरीले धुएं और मानव जनित गतिविधियों से बचाने के लिए प्रस्तावित सुरक्षात्मक ताज ट्रेपिजियम जोन के बारे में उत्तरप्रदेश सरकार की ओर से मात्र एक 'मसौदा प्रस्ताव' दाखिल करने से खिन्न उच्चत्तम न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि किसी न किसी को तो ताजमहल की जिम्मेदारी लेनी ही होगी।
न्यायाधीश मदन बी लोकुर की अगुवाई वाली खंडपीठ ने उत्तरप्रदेश सरकार के लचर रवैए पर हैरानी जताते हुए कहा कि आपने एक मसौदा प्रस्ताव क्यों दाखिल किया, क्या हम इसे ठीक करने के लिए हैं, पर्यावरण सुरक्षा और उस क्षेत्र में चीजों को दुरुस्त करने का प्रभारी कौन है?
खंडपीठ ने कहा कि दस्तावेजों को दाखिल करने की एक नियमित प्रकिया होती है, पहले सरकार ने हलफनामा दाखिल किया, उसके बाद भारतीय पुरात्तव सर्वेक्षण (एएसआई) और इसके बाद उत्तरप्रदेश सरकार यह दाखिल कर रही है, यह क्या हो रहा हैं।
न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि कोई भी ताज महल की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता है, किसी न किसी को तो इसकी जिम्मेदारी लेनी ही होगी और ऐसी कोई एक संस्था होनी चाहिए जो यह जिम्मेदारी ले सके। ऐसा लगता है कि सभी निकाय और संस्थान मिलकर ताज महल की जिम्मेदारी से हाथ झाड़ रहे हैं।
उत्तरप्रदेश सरकार की तरफ से न्यायालय में एटर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि ताज ट्रेपिजियम जोन में उद्योगों को किसी और स्थान पर ले जाने की प्रकिया के लिए एएसआई जिम्मेदार नहीं है। उन्होंने कहा कि यह केवल उद्योगों, चमड़ा शोधन इकाइयों और कोयले का इस्तेमाल करने वाली फाउंड्रिज के लिए जिम्मेदार है।
यूनेस्को विश्व विरासत स्थलों की सूची से दार्जीलिंग रेलवे को हटाने के बारे में सोच रहा है और अगर ताज महल को इस सूची से हटा दिया जाता है तो यह देश के लिए काफी शर्मनाक बात होगी। न्यायालय ने अपनी टिप्प्णी में कहा कि अगर विस्तृत योजना में महीनों का समय लगता है तो इस बीच क्या होगा।
पीठ ने उत्तरप्रदेश सरकार से यह भी पूछा कि वह इस बात की जानकारी दे कि ताज महल का वास्तव में प्रभारी कौन है। पीठ ने सख्त लहजे में कहा कि केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार में ताज महल की रक्षा के लिए जिम्मेदार कौन है, बाएं हाथ को ही पता नहीं चल रहा है कि दायां हाथ क्या कर रहा है और यह लापरवाही काफी हैरानी करने वाली है।
ताज ट्रेपिजियम जोन संस्था 1996 में बनी थी और तब से इसने कुछ भी काम नहीं किया है। इस दौरान जोन के आयुक्त ने खंडपीठ को अवगत कराया कि उनके पास स्टाफ नहीं है। उन्होंने कहा कि वह पिछले तीन वर्षों में उत्तरप्रदेश सरकार को 20 से 25 बार पत्र लिख चुके हैं और पिछले एक साल में चार बार सरकार को पत्र लिखा जा चुका है।