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Last Updated : सोमवार, 6 अगस्त 2018 (09:23 IST)

सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 35ए पर सुनवाई, जम्मू-कश्मीर में बंद का ऐलान, सुरक्षा के कड़े इंतजाम

सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 35ए पर सुनवाई, जम्मू-कश्मीर में बंद का ऐलान, सुरक्षा के कड़े इंतजाम - supreme court to hear petitions challenging validity of article 35a in jammu and kashmir
श्रीनगर/जम्मू। संविधान के अनुच्छेद 35ए की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो सकती है। इसके विरोध में अलगाववादी संगठनों ने सोमवार को लगातार दूसरे दिन जम्मू-कश्मीर में बंद का ऐलान किया। रविवार को कई जगह प्रदर्शन भी हुए। प्रदर्शनों को देखते हुए प्रशासन ने सुरक्षा के कड़े कदम उठाए हैं। रविवार को दो दिन के लिए अमरनाथ यात्रा रोक दी गई थी।
 
नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, माकपा, कांग्रेस की जम्मू-कश्मीर इकाई समेत कई राजनीतिक दल और अलगाववादियों ने सुनवाई के खिलाफ बंद का समर्थन किया है। ये सुनवाई को रुकवाना चाहते हैं। जम्मू-कश्मीर राज्य प्रशासन ने राज्य में पंचायत और नगर निकाय चुनावों के लिए चल रही तैयारियों के मद्देनजर सुनवाई पर स्थगन की अपील की है।
 
जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष दर्जे के खिलाफ दिल्ली स्थित गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) वी द सिटिजन ने याचिका दायर की है। इस एनजीओ का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 35(ए) और अनुच्छेद (370) से जम्मू-कश्मीर को जो विशेष दर्जा मिला हुआ है वह शेष भारत के नागरिकों के साथ भेदभाव करता है।
क्या है अनुच्छेद 35 ए : अनुच्छेद 35ए जम्मू-कश्मीर के स्थायी नागरिकों को विशेष अधिकार देता है। यह अनुच्छेद बाहरी राज्य के व्यक्तियों को वहां अचल संपत्तियों के खरीदने एवं उनका मालिकाना हक प्राप्त करने से रोकता है। अन्य राज्यों का व्यक्ति वहां हमेशा के लिए बस नहीं सकता और न ही राज्य की ओर से मिलने वाली योजनाओं का लाभ उठा सकता है। यह अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर सरकार को अस्थाई नागरिकों को काम देने से भी रोकता है।वर्ष 1954 में राष्ट्रपति के आदेश से अनुच्छेद 35ए को अनुच्छेद 370 में शामिल किया गया।
 
क्यों हो रहा है विवाद : अनुच्छेद 35ए के प्रावधान जो कि जम्मू-कश्मीर के स्थानी नागरिकों को विशेष दर्जा एवं अधिकार देता है, उसे संविधान में संशोधन के जरिए नहीं बल्कि 'अपेंडिक्स' के रूप में शामिल किया गया है। एनजीओ के अनुसार अनुच्छेद 35ए को 'असंवैधानकि' करार दिया जाना चाहिए क्योंकि राष्ट्रपति अपने 1954 के आदेश से 'संविधान में संशोधन' नहीं करा सके थे। इस तरह यह एक 'अस्थायी प्रावधान' मालूम पड़ता है। एनजीओ के मुताबिक यह अनुच्छेद कभी संसद के सामने नहीं लाया गया और इसे तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया गया। जम्मू-कश्मीर सरकार ने इस याचिका का विरोध किया है। जम्मू-कश्मीर सरकार का कहना है कि राष्ट्रपति को अपने आदेश के जरिए संविधान में नए प्रावधान को शामिल करने का अधिकार है।
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