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Last Updated : रविवार, 16 अप्रैल 2023 (17:13 IST)

अतीक अहमद के आतंक का अंत : एक मर्डर ने कैसे यूपी के सबसे बड़े माफिया को किया तबाह?

अतीक अहमद के आतंक का अंत : एक मर्डर ने कैसे यूपी के सबसे बड़े माफिया को किया तबाह? - story of atique ahmed : How one murder distroyed mafia
मीडिया कर्मियों के भेष में आए 3 हमलावरों ने माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की प्रयागराज मेडिकल कॉलेज के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी। दोनों 4 दिनों की पुलिस रिमांड पर थे। मौत से 3 दिन पहले ही उसके बेटे असद को यूपी पुलिस ने एनकाउंट में मार गिराया था। वह अपने बेटे को अंतिम विदाई भी नहीं दे सका। आखिर कौन था अतीक अहमद और कैसे एक गरीब तांगे वाले का यह बेटा विधायक और सासंद से लेकर यूपी का सबसे बड़ा माफिया बन गया। कैसे उसके अपराध की यह फेहरिस्‍त इतनी लंबी हो गई।
 
तांगे वाले के बेटा बना सबसे बड़ा डॉन : अतीक एक तांगे वाले का अनपढ़ बेटा था। लेकिन पैसों की जरुरत उसे अपराध की दुनिया में ले आई। उसे पता था कि अपराध को पोसने के लिए उसे सियासत का भी सहारा लेना होगा। उसने अपराध को ही अपना धर्म बना लिया। अतीक को गुनाहों की दुनिया इतनी पसंद आ गई कि उसने अपने पूरे परिवार को इसमें लिप्‍त कर लिया।

उसका बड़ा बेटा उमर लखनऊ जेल में कैद है तो दूसरा बेटा अली अहमद प्रयागराज की नैनी सेंट्रल जेल में सजा काट रहा है। तीसरे बेटे असद को यूपी एसटीएफ ने एनकाउंटर में मार गिराया। तो उसकी बीवी शाइस्ता परवीन फरार हैं। एहजम और आबान नाम के दो नाबालिग बेटे बाल संरक्षण गृह में हैं।
 
17 साल की उम्र में पहली FIR : दरअसल, अतीक अहमद के पिता हाजी फिरोज भी अपराधी था। वो तांगा चलाता था। हाजी फिरोज की माली हालत ऐसी नहीं थी कि वह अतीक समेत अपनी दूसरी औलादों को बेहतर तालीम दिला सके। इसलिए बेटा अतीक जुर्म की दुनिया में उतर गया। अतीक के खिलाफ 1983 में पहली एफआईआर दर्ज हुई। उस वक्त उसकी उम्र 17 या 18 साल थी।

अतीक की सियासी ताकत : अतीक के गुनाहों की सूची भी लंबी है तो सियासत में उसकी उपलब्‍धियां भी कम नहीं हैं। वो विधायक और सांसद रहने के साथ ही यूपी में आतंक का दूसरा नाम था। गैंगस्‍टर, हिस्ट्रीशीटर अतीक 5 बार विधायक और एक बार उस फूलपुर सीट से सांसद भी रहा।  उसके ऊपर खिलाफ 100 से ज़्यादा आपराधिक मामले दर्ज थे। उसका आतंक का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हाईकोर्ट के करीब 10 जजों ने उसके उपर लगे मुकदमों की सुनवाई से इनकार कर दिया था।
 
यूपी की राजनीति ने बना डाला माफिया : दरअसल अतीक के माफिया बनने की सबसे बड़ी वजह यूपी की सियायत है। किसी जमाने में यहां राजनीति और अपराध का चोली दामन का साथ रहा है। इसी दौरान अतीक के आतंक का उदय हुआ।

दरअसल, 90 के दशक में क्षेत्रीय पार्टियां अपने मकसदों को साधने के लिए अपराधियों को ही सत्ता में भागीदार बना दिया करती थी। लेकिन बाद में ये अपराधी इतने बड़े हो गए कि उन पर कोई लगाम नहीं रही। सियासी छत्रछाया में अतीक गैंग्‍स्‍टर, हिसट्रीशीटर, माफिया और डॉन बन गया।
 
एनकाउंटर से बचने राजनीति का सहारा : पूरे यूपी की नाक में दम कर देने वाले अतीक ने इतने अपराध किए कि एक समय में उस पर पुलिस इनकाउंटर का साया मंडराने लगा। एनकाउंटर से बचने के लिए अतीक ने 1989 में हुए यूपी के विधानसभा चुनावों में इलाहाबाद वेस्ट सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर चुनाव लड़ा और वो विधायक बन गया। 1989 के इस चुनाव में तत्कालीन पार्षद और अतीक जैसा ही अपराधी चांद बाबा भी मैदान में उतरा था। लेकिन अतीक ने उसे अपने गुर्गों के साथ मिलकर गोलियों से भून दिया।
 
इसके बाद वह इलाहाबाद सिटी वेस्ट की इसी सीट से 1991, 1993, 1996 और 2002 में भी लगातार जीत हासिल करता रहा। पहला दो चुनाव वह निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीता। तीसरे चुनाव में भी वह निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर ही मैदान में उतरा, लेकिन सपा-बसपा गठबंधन ने उसे अपना समर्थन दिया और उसके खिलाफ कोई प्रत्याशी नहीं खड़ा किया।

1996 में वह समाजवादी पार्टी के टिकट पर विधायक चुना गया तो 2002 में डॉ सोनेलाल पटेल के अपना दल से। 2002 के चुनाव के समय वह अपना दल का प्रदेश अध्यक्ष बना था। 2004 में फिर से सपा में न सिर्फ उसकी वापसी हुई, बल्कि वह मुलायम सिंह की पार्टी से फूलपुर से सांसद चुना गया। यह सीट पर देश के पूर्व प्रधानमंत्री पं जवाहर लाल नेहरू की हुआ करती थी।
 
राजूपाल हत्याकांड बना तबाही की वजह : 25 जनवरी साल 2005 को प्रयागराज में शहर के धूमनगंज इलाके में विधायक राजू पाल की दिन दहाड़े हत्या कर दी गईं। विधायक राजू पाल की हत्या का आरोप अतीक और अशरफ पर लगा। इस मामले में दोनों भाइयों को जेल भी जाना पड़ा। दरसअल, साल 2007 के चुनाव में अशरफ और 2012 में अतीक को हार का सामना करना पड़ा था।

राजू पाल की हत्या का आरोप अतीक के साम्राज्‍य के लिए तबाही बन गई। राजू पाल हत्याकांड के गवाह उमेश पाल की उसके बेटे असद ने गुलाम और गुड्डू इस्लाम जैसे शूटर्स के साथ मिलकर हत्या कर दी। इस मामले में अतीक के परिवार के कई लोगों पर आरोप लगे। उमेश पाल की हत्या के मात्र 2 माह के भीतर ही अतीक और उसके साम्राज्य का अंत हो गया। 
 
अतीक का अपराधी परिवार : अतीक का छोटा भाई पूर्व सपा विधायक अशरफ भी उसके साथ ही प्रयागराज मेडिकल कॉलेज के बाहर मारा गया। उसे पुलिस ने 2020 में गिरफ्तार किया था। अशरफ पर कई सालों तक एक लाख रुपए का इनाम घोषित था। उसका सबसे बड़ा बेटा उमर लखनऊ तो दूसरे नंबर का अली अहमद प्रयागराज की नैनी सेंट्रल जेल में कैद है।

बड़े बेटे उमर ने लखनऊ में सरेंडर किया था। दूसरे बेटे अली ने पांच करोड़ रुपये की रंगदारी मांगने के मामले में पिछले साल जुलाई महीने में प्रयागराज कोर्ट में सरेंडर किया था। तीसरा बेटा असद उमेश पाल शूट आउट केस में मोस्ट वांटेड था। 13 अप्रैल को पुलिस ने उसे एक एनकाउंटर में मार गिराया।

सता रहा था हत्या का डर : गैंगस्टर से नेता बने अतीक अहमद की प्रयागराज में पुलिस सुरक्षा में गोली मारकर हत्या किए जाने से दो सप्ताह पहले सुप्रीम कोर्ट ने उमेश पाल हत्याकांड में उत्तर प्रदेश पुलिस की हिरासत के दौरान सुरक्षा उपलब्ध कराने का अनुरोध करने वाली उसकी याचिका खारिज कर दी थी। पीठ ने कहा था कि चूंकि, अभी वह न्यायिक हिरासत में है, इसलिए उसकी जान को खतरा होने के मामले में उत्तर प्रदेश राज्य तंत्र उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करेगी।
 
योगी राज में मिला मिट्टी में : सीएम योगी आदित्‍यनाथ के राज में अतीक और उसके गुर्गों के साथ ही तमाम करीबियों के खिलाफ भी बड़ी कार्रवाइयां की गई हैं। उमेश पाल शूट आउट केस के बाद जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार अतीक की गैंग पर कुल 144 कार्रवाइयां की गई। 14 लोगों को गिरफ्तार किया गया। 22 करीबियों की हिस्ट्रीशीट खोली गई।

14 लोगों के खिलाफ गुंडा एक्ट की कार्रवाई की गई। 68 शस्त्र लाइसेंस रद्द किए गए। दो लोगों को जिला बदर किया गया। गैंगस्टर एक्ट के तहत 415 करोड़ की संपत्ति जब्त की गई। 751 करोड़ रुपए की अवैध सम्पत्तियों को ध्वस्त किया गया। ठेके-टेंडर और दूसरे अवैध कामों पर 1200 करोड़ रुपए से ज्‍यादा की चोट की गई। इसके बाद उसके बेटे असद का एनकाउंटर हो गया और फिर असद और उसके भाई का भी मर्डर हो गया।