सोनिया गांधी के खिलाफ चुनावी याचिका पर सुनवाई स्थगित
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सोनिया गांधी की नागरिकता और मुस्लिम वोट हासिल करने के लिए कथित रूप से सांप्रदायिक कार्ड खेलने के मामले के मद्देनजर वर्ष 2014 में रायबरेली लोकसभा निर्वाचन सीट से उनके चुनाव को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई को गुरुवार को स्थगित कर दिया।
न्यायमूर्ति एआर दवे की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि 7 न्यायाधीशों वाली संवैधानिक पीठ इसी प्रकार के मामले पर पहले ही सुनवाई कर रही है और इसीलिए इस मामले पर इस समय कोई रुख अपनाना उचित नहीं होगा।
पीठ ने कहा कि 7 न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ इसी प्रकार के मामले पर सुनवाई कर रही है। इस मामले पर निर्णय होने दीजिए। इसके बाद हम इस मामले पर सुनवाई कर सकते हैं। हम कोई आदेश नहीं दे रहे। यदि हम इस मामले में कोई रुख अपनाएंगे तो यह उचित नहीं होगा, क्योंकि एक बड़ी पीठ मामले की सुनवाई कर रही है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 के तहत दर्ज याचिका को 11 जुलाई को जुर्माने के साथ खारिज कर दिया था और कहा था कि चुनावी याचिका में तथ्यों को अभाव है।
सोनिया पर कथित रूप से मुसलमानों के मत हासिल करने के लिए भ्रष्ट आचरण अपनाने का आरोप लगाने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा था कि इसमें बताया जाना चाहिए कि यह काम उनकी उम्मीदवारी घोषित करने की तिथि और चुनाव के बीच प्रचार मुहिम के दौरान किया गया और उन्होंने अपने धर्म के आधार पर वोट की अपील करने के लिए स्वयं या अपने किसी एजेंट या किसी अन्य व्यक्ति के जरिए अपनी सहमति से इस काम को अंजाम दिया।
राकेश सिंह द्वारा दायर चुनाव याचिका में कहा गया था कि सोनिया गांधी के पास दोहरी नागरिकता है। वे जन्म से इतालवी नागरिक हैं और इटली का कानून दोहरी नागरिकता की अनुमति नहीं देता है। याचिककर्ता ने यह भी मांग की थी कि रायबरेली से उनके चुनाव को निरस्त करार देते हुए दरकिनार कर दिया जाए। इसमें कहा गया था कि सोनिया ने चुनाव से पहले जामा मस्जिद के शाही इमाम के जरिए कथित रूप से मुसलमानों से अपील की थी कि वे उनके और उनकी पार्टी के लिए मतदान करें, जो कि भ्रष्ट आचरण है।
उच्च न्यायालय ने कहा था कि भ्रष्ट आचरण के आरोप समाचार चैनल की रिपोर्टों के आधार पर लगाए गए हैं। वास्तव में क्या हुआ था, यदि इस बात को साबित करने के लिए और सबूत नहीं है तो इन रिपोर्टों का कोई महत्व नहीं है। इसमें कहा गया था कि इन रिपोर्टों पर तब तक विचार नहीं किया जा सकता, जब तक कि इनके साथ टीवी चैनलों पर समाचार रिपोर्ट देने वाला रिपोर्टर का बयान नहीं हो। (भाषा)