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Last Updated : सोमवार, 22 अप्रैल 2024 (14:22 IST)

अब नहीं आती शर्म! पत्नी और बहन के लिए पुरुष बेझिझक खरीद रहे सैनिटरी पैड

शहरों में सैनिटरी पैड को लेकर बढ़ रही जागरूकता, ग्रामीण इलाकों में आज भी हालत खराब

Menstruation and Men's Knowledge
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  • मेडिकल दुकानों पर 70 प्रतिशत महिलाएं और 30 प्रतिशत पुरुष खरीदते हैं सैनिटरी पैड।
  • युवाओं को सैनिटरी पैड खरीदने और उनके बारे में बात करने में अब कोई झिझक नहीं।
  • Padman जैसी फिल्मों के ज़रिए भारत में सैनिटरी पैड को लेकर बढ़ रही है जागरूकता।
Menstruation and Men's Knowledge : महिलाओं के 'उन दिनों' की तकलीफ के लिए इस्तेमाल होने वाले सैनिटरी पैड की बिक्री भारत में हर 5 साल में दुगना हो रही है। Statista की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2021 में 10 बिलियन से भी ज्यादा सैनिटरी पैड बेचे गए। यानी भारत में सैनिटरी पैड के इस्‍तेमाल को लेकर महिलाओं में जागरूकता आई है, लेकिन सवाल यह है कि क्‍या भारतीय पुरुष सैनिटरी पैड को लेकर 'कम्‍फर्ट' हो सके हैं। क्‍या वे अपनी मां-बहन और पत्‍नी के लिए ठीक उसी तरह से सैनिटरी पैड खरीदते हैं, जितने आत्‍मविश्‍वास के साथ शराब की बोतलें खरीदते हैं? ALSO READ: Sanitary Pad: महिलाओं के 'उन दिनों' की राहत बन रही पर्यावरण की आफत, सैनिटरी पैड डीकंपोज होने में लगते हैं 800 साल
 
महिलाओं के लिए सैनिटरी पैड खरीदना पुरुषों के लिए अब शर्म का विषय नहीं है। वेबदुनिया ने इस मुद्दें को लेकर शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों तक कुछ पुरुषों से चर्चा की और जाना कि आखिर बहन-बेटियों के लिए क्या वो सैनिटरी पैड खरीदते हैं? जानते हैं महिलाओं के मासिक धर्म के दिनों में इस्‍तेमाल होने वाले सैनिटरी पैड को लेकर क्‍या सोचते हैं पुरुष? ALSO READ: महिला अधिकारों की खिल्ली उड़ाती कॉर्पोरेट संस्कृति, वर्कप्लेस में महिलाओं को सेनेटरी पैड तक नहीं मिल रहे
 
क्‍या पुरुष सैनिटरी पैड खरीदते हैं? 
वेबदुनिया ने महिलाओं के मासिक धर्म और उनके सैनिटरी पैड को लेकर पुरुषों से सवाल-जवाब किए। इस पूरी चर्चा में हमने 30 पुरुषों से बात की, जिसमें सामने आया कि 30 में से 25 पुरुष अपने घर की महिलाओं को सैनिटरी पैड बाजार से खरीदकर देते हैं। इसके अलावा हमनें सतना, मंदसौर, राघोगढ़ जैसे ग्रामीण क्षेत्र में भी कई परुषों से बात की और समझने की कोशिश की कि क्‍या वे मासिक धर्म के दिनों में अपनी घर-परिवार की महिलाओं के लिए सैनिटरी पैड खरीदते हैं।
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Padman फिल्म देखकर खुली आंखें:
इंदौर के रहने वाले भावेश अग्रवाल ने हमें बताया कि 'मैं कई बार छोटी बहन और दोस्त के लिए सैनिटरी पैड लाया हूं। आज के समय में सैनिटरी पैड के लिए न दुकानदार को शर्म आती है और न मुझे। भारत में फिल्मों के ज़रिए पीरियड्स के लिए काफी जागरूकता बढ़ी है। Padman (2018) फिल्‍म देखने के बाद मैंने अपने सोशल मीडिया पर सैनिटरी पैड के साथ फोटो भी पोस्ट किया था।'
 
मम्मी! दीदी 4 दिन इतना बीमार कैसे हो जाती है?
सॉफ्टवेयर इंजीनियर अभिषेक शर्मा ने बताया कि 'मैं मम्मी से हर बार पूछता था कि मेरी दीदी हर महीने 4 दिन के लिए इतनी बीमार कैसे हो जाती है? मम्मी ने तो मुझे कुछ नहीं बताया, लेकिन दीदी ने मुझसे मासिक धर्म को लेकर बहुत खुलकर बात की। उस दिन के बाद से मैं अपनी दीदी के लिए कई बार सैनिटरी पैड लेकर आया हूं।' आज की जनरेशन तो इसके बारे में खुलकर बात करने को तैयार है, लेकिन हमारे बड़े इस बारे में कब खुलेंगे?
 
21 साल तक सैनिटरी पैड से अनजान थी मेरी मां?
स्टूडेंट स्नेहा शर्मा ने बताया कि हम बिहार के रहने वाले हैं और मेरी मम्मी इंदौर 1997 में आईं। 1997 में ही मेरी दीदी का जन्म हुआ। डिलीवरी के बाद हॉस्पिटल वालों ने मम्मी को सैनिटरी पैड इस्तेमाल करने की सलाह दी। इससे पहले यानी 21 साल की उम्र तक मेरी मां को सैनिटरी पैड के बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी।

हमारे गांव में आज भी इन दिनों को लेकर महिलाओं की स्थिति बेहद शर्मिंदगी वाली और खराब है। वहां पुरुष इस बारे में खुलकर बात नहीं करते हैं। कई घरों में तो पुरुष महिलाओं की स्थिति देखकर समझ भी नहीं पाते हैं कि वे मासिक धर्म के दौर से गुजर रही हैं। सैनिटरी पैड के इस्‍तेमाल से लेकर महिलाओं के दर्द के अहसास की तो बात ही दूर है।  
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सैनिटरी पैड का पूछा तो मां ने दे दी कसम:
एमबीए स्टूडेंट अंश जैन ने हमें बताया कि 'मेरे घर में कभी खुलकर मासिक धर्म के बारे में बात नहीं होती है। घर की महिलाएं अक्सर उन दिनों के लिए 'टाइम',  'किचन में नहीं जाना', 'पूजा नहीं करना' जैसे कोड वर्ड का इस्तेमाल करती हैं। एक बार मैंने बचपन में अपनी मां से सैनिटरी पैड के बारे में पूछा तो मां ने मुझे कसम दे डाली कि तू आज के बाद इसके बारे में कभी बात नहीं करेगा।

कॉलेज में आने के बाद मुझे मासिक धर्म के बारे में पता चला। मेट्रो सिटी में इसे लेकर काफी खुलकर बात की जाती है।' पुरुष से पहले महिलाओं को अपनी शर्म का गहना उतारना पड़ेगा, क्‍योंकि इस मामले में ज्‍यादातर महिलाएं ही बात करने में हिचकिचाती हैं, ऐसे में पुरुषों से पहले महिलाओं को जागरूकता होने की ज़रूरत है।
 
भईया! लड़कियों की प्रॉब्लम वाला सामान दे दो:
ग्राफिक डिज़ाइनर शुभम अग्रवाल ने बताया कि 'मैं कई बार अपनी वाइफ और दोस्त के लिए सैनिटरी पैड लाया हूं। जब पहली बार मेरी दोस्त ने मुझे सैनिटरी पैड लाने को कहा तो मैं कुछ हिचकिचा गया। मैं सोच में पड़ गया कि आखिर मैं मेडिकल पर जाकर क्या बोलूंगा। मेडिकल पर जाने के बाद मैंने कहा कि भईया, वो लड़कियों की प्रॉब्लम वाला सामान चाहिए। मेडिकल वाला समझ गया। हालांकि इसके बाद मुझे कभी शर्म नहीं आई।' आज भी भारत में कई लोगों को सैनिटरी पैड बोलने में हिचकिचाहट होती है या शर्म आती है। ऐसा इसलिए क्योंकि देश में इसे लेकर जागरूकता की बेहद कमी है।
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वैरायटी का झोलझाल समझ नहीं आता:
कॉलेज प्रोफेसर डॉ. हरीश गिदवानी ने बताया कि 'मैं मेरी भतीजी और कजिन के लिए कई बार सैनिटरी पैड लेकर आया हूं। मुझे कभी इसे खरीदने में शर्म नहीं आई। हालांकि कई बार मुझे इसकी वैरायटी को लेकर कन्फ्यूजन हो जाता है। वैरायटी के बारे में दुकानदार ज्यादा बताते नहीं है, इसलिए मैं अपनी भतीजी या कजिन से ही इस बारे में पूछ लेता हूं।'
 
कॉन्डम- सैनिटरी पैड लेने में पुरुषों को कैसी शर्म:
स्टूडेंट गर्व देसाई का कहना है 'मेरे घर में इसकी खुलकर बात होती है। मैंने अपनी कॉलेज जूनियर को सैनिटरी पैड लाकर दिया है। लड़कों को मेडिकल शॉप पर दो चीज़ें लेने में शर्म नहीं आनी चाहिए, पहली कॉन्डम और दूसरी सैनिटरी पैड। ज़माना बदल चुका है, अब न मेडिकल वाले को हंसी आती है और न मुझे शर्म।'
 
क्‍या हाल है ग्रामीण इलाकों में:
यह तो शहर के हालात हैं, लेकिन जब इस विषय ग्रामीण इलाकों में रहने वाले कई गांव के 15 लोगों से बात की तो वहां की कहानी कुछ ओर ही निकलकर आई। यह कहानी हैरान करती है।
 
काश! मेरे भाई या पापा भी कभी सैनिटरी पैड लाते:
सतना के कोठी जिले के पास गांव में रहने वाली मुस्कान यादव ने बताया कि 'काश मेरे भाई और पापा से मैं सैनिटरी पैड लाने के लिए कह सकती। मेरे गांव में इस बारे में बात नहीं होती है। मासिक धर्म के दौरान मम्मी बहुत ज्यादा रोक टोक करती हैं। किचन में नहीं जाने देती हैं और न ही पानी का घड़ा छूने देती हैं। पापा और भईया को इस बारे में मम्मी बताने से मना करती हैं। अगर उन्हें पता होता तो थोड़ी मदद मिलती और घर के काम करने में आसानी होती।'
 
100 में से 1 महिला करती है सैनिटरी पैड का इस्तेमाल:
मंदसौर के पास गांव में रहने वाले मनोहर डिंडौर ने बताया कि 'मेरे गांव में सैनिटरी पैड को लेकर स्थिति अच्छी नहीं है, क्योंकि अधिकतर महिलाएं शिक्षित नहीं है। वे कई सालों से से कपड़े का प्रयोग करती आ रही हैं। उन्‍हें लगता है कि उनके लिए वही सही है। सिर्फ 100 में से 1 ही महिला ऐसी होगी जो सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती होंगी। गांव में अभी भी लड़कियां इतनी खुलकर घर में सबके साथ इस पर बात नहीं करती हैं।
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ज़मीन पर सोना पड़ता है, पानी भी खुद नहीं ले सकती:
गुना जिले के राघोगढ़ गांव की शालिनी किरार की कहानी तो बहुत दर्दनाक और डराने वाल है। शालिनी ने बताया कि 'उन दिनों के समय मैं अलग बिस्तर पर सोती हूं। पापा या भाई तो दूर मुझे खुद सैनिटरी पैड लेने में शर्म आती है। दादी मुझे बिस्तर से अलग जमीन पर सोने को कहती हैं। मैं पानी भी खुद नहीं ले सकती हूं। भाई या पिता हमेशा घर में नहीं रहते हैं। उन्हें इस बारे में कुछ पता नहीं है या नज़रंदाज़ कर देते हैं।' ऐसे स्‍थिति में अपने ही घर में अनजान की तरह और उपेक्षित महसूस करती हूं, यह बेटी बचाओं के नारे वाले जमाने में बेहद अजीब और दुखद लगता है।    
 
मेडिकल शॉप पर 100 में से 30 प्रतिशत पुरुष खरीदते हैं सैनिटरी पैड:
हमने शहर के कई मेडिकल दुकानों पर बात की और जानना चाहा कि आखिर कितने पुरुष मेडिकल से पैड खरीदते हैं। बता दें कि मेडिकल दुकानों पर 40 से ज्यादा उम्र के पुरुष आते हैं। एक अनुमानित आंकड़ों के अनुसार मेडिकल स्टोर पर सैनिटरी पैड लेने के लिए 70 प्रतिशत महिलाएं आती हैं और 30 प्रतिशत पुरुष आते हैं। अधिकतर पुरुष डायरेक्ट सैनिटरी पैड नहीं बोलते हैं बल्कि 'महिलाओं को वो सामान' जैसी भाषा का इस्तेमाल करते हैं।
 
युवाओं में हिचकिचाहट कम है:
मेडिकल दुकानों पर किए सर्वे के बाद पता चला कि आज की जनरेशन के लड़कों में सैनिटरी पैड को लेकर काफी जागरूकता है। लड़के दुकानों पर सैनिटरी पैड बोलने में शरमाते नहीं है। उन्हें सैनिटरी पैड के ब्रांड या साइज़ के बारे में भी काफी नॉलेज होती है।
 
क्या आप भी अपनी घर की महिलाओं या फीमेल फ्रेंड के लिए सैनिटरी पैड लाते हैं? शहरों में मॉल कल्चर या ऑनलाइन ग्रोसरी एप से सैनिटरी पैड खरीदना अब आसान है लेकिन ग्रामीण इलाकों आज भी इस विषय में खुलकर बात करना ज़रूरी है। महिलाओं के मासिक धर्म की सुविधा के लिए मॉल जैसी सुविधा होना ज़रूरी नहीं बल्कि इस बारे में खुलकर बात करना ज़रूरी है।