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Last Modified: गुरुवार, 5 जनवरी 2017 (20:41 IST)

नोटबंदी के बाद देश में गरीबों की परेशानी बढ़ी : प्रणब मुखर्जी

नोटबंदी के बाद देश में गरीबों की परेशानी बढ़ी : प्रणब मुखर्जी - President Pranab Mukherjee said Demonetisation may slow down economy
नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज कहा कि नोटबंदी के बाद आर्थिक मंदी के कारण गरीबों को होने वाली अपरिहार्य परेशानियों को दूर करने के लिए अतिरिक्त ध्यान दिया जाना चाहिए। मुखर्जी ने यहां राष्ट्रपति भवन से वीडियो-कांफ्रेंसिंग के माध्यम से राज्यपालों और उपराज्यपालों को संबोधित करते हुए कहा कि कालेधन को समाप्त करने और भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए लागू नोटबंदी से अर्थव्यवस्था में अस्थाई मंदी आ सकती है।
उन्होंने कहा, ‘हमें लंबे समय की अपेक्षित प्रगति के लिए गरीबों के लिए अपरिहार्य हो गयीं परेशानियों को समाप्त करने के लिहाज से अतिरक्त सावधानी बरतनी होगी।’राष्ट्रपति ने कहा कि गरीबी उन्मूलन के लिए अधिकार की सोच से उद्यमशीलता की ओर बढ़ने पर जोर देने का वह स्वागत करते हैं लेकिन उन्हें पता नहीं कि क्या गरीब लोग इतना इंतजार कर सकते हैं।
 
उन्होंने कहा, ‘उन्हें तत्काल मदद की जरूरत है ताकि वे भूख, बेरोजगारी और उत्पीड़न से मुक्त भविष्य की ओर राष्ट्रीय अभियान में सक्रियता से भाग ले सकते हैं।’मुखर्जी ने कहा कि प्रधानमंत्री द्वारा हाल ही में घोषित पैकेज कुछ राहत देगा। उन्होंने कहा कि इस साल सात राज्यों में चुनाव होंगे और पांच में चुनावों की तारीख घोषित हो चुकी हैं।
 
उन्होंने कहा, ‘निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनावों ने हमारे देश को दुनिया के सबसे जीवंत लोकतंत्रों में शामिल किया है। चुनाव राजनीतिक माहौल के प्रति जनता के रवैये, मूल्यों और विश्वास को प्रदर्शित करते हैं।’ चुनावों में बयानबाजी और वोटबैंक की राजनीति के प्रति चेताते हुए मुखर्जी ने कहा कि हो-हंगामे वाली बहस समाज में विभाजन रेखा को और अधिक गहरा कर सकती है।
 
राष्ट्रपति ने कहा, ‘विभिन्न समुदायों के बीच सद्भाव बना रहना चाहिए। कई बार निहित स्वाथोर्ं के लिए सद्भाव को खतरे में डाला जा सकता है। सांप्रदायिक तनाव बढ़ सकता है। इस तरह की किसी भी चुनौतीपूर्ण स्थिति से निपटने के लिए कानून का शासन ही एकमात्र आधार होना चाहिए।’ 
 
उन्होंने कहा कि राज्यपाल और उपराज्यपाल अपने राज्य की जनता का सम्मान और आदर पाते हैं और वे समाज में तनाव कम करने में भूमिका निभा सकते हैं। मुखर्जी ने अपने संबोधन में कहा, ‘आप अपने विचारों और बुद्धिमतापूर्ण सलाह से समाज में तनाव कम करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘‘हमारे जैसे बहुलवादी लोकतंत्र में सहिष्णुता, विरोधाभासी विचारों के लिए सम्मान और धर्य जरूरी हैं जिन्हें संरक्षित किया जाना चाहिए।’ 
 
मुखर्जी ने कहा, ‘भारत की शक्ति उसकी विविधता में है। संस्कृति, आस्था और भाषा की विविधता भारत को विशेष बनाती है। सार्वजनिक विचार-विमर्श में हमेशा विविध रख रहेंगे। हम तर्क पेश कर सकते हैं। हम असहमति जता सकते हैं। लेकिन हम विचारों की वैविध्य को खारिज नहीं कर सकते।’ उन्होंने राज्यपालों और उपराज्यपालों से उनके राज्यों के नागरिकों में सभ्यता के बुनियादी मूल्यों को भरने को कहा। (भाषा)