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Last Modified: नई दिल्ली , सोमवार, 16 नवंबर 2015 (17:09 IST)

सम्मान लौटाने वालों को राष्ट्रपति ने दी नसीहत

सम्मान लौटाने वालों को राष्ट्रपति ने दी नसीहत - Pranab Mukherjee
नई दिल्ली। 'असहिष्णुता' पर छिड़ी बहस की पृष्ठभूमि में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सोमवार को कहा कि असहमति की अभिव्यक्ति चर्चा के जरिए होनी चाहिए और भावनाओं में बहकर चर्चा करने से तर्क नष्ट हो जाता है।
समाज में कुछ घटनाओं से 'संवेदनशील लोगों' के कई बार व्यथित हो जाने को रेखांकित करते हुए राष्ट्रपति ने इस प्रकार की घटनाओं पर चिंता का इजहार करने में संतुलन बरते जाने की वकालत की।
 
राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर यहां प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित एक समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा, समाज में कुछ घटनाओं से संवेदनशील लोग कई बार व्यथित हो जाते हैं, लेकिन इस प्रकार की घटनाओं पर चिंता का इजहार संतुलित होना चाहिए। 
 
उन्‍होंने कहा, तर्कों पर भावनाएं हावी नहीं होनी चाहिए और असहमति की अभिव्यक्ति बहस और विचार-विमर्श के जरिए होनी चाहिए। 'विचार की अभिव्यक्ति के माध्यम के तौर पर कार्टून और रेखाचित्र का प्रभाव' विषय पर अपने विचार रखते हुए उन्होंने कहा, एक गौरवान्वित भारतीय के तौर पर, हमारा संविधान में उल्लिखित भारत के विचार, मूल्यों तथा सिद्धांतों में भरोसा होना चाहिए। 
 
राष्‍ट्रपति ने कहा, जब भी ऐसी कोई जरूरत पड़ी है, भारत हमेशा खुद को सही करने में सक्षम रहा है। हालांकि राष्ट्रपति ने किसी खास घटना का जिक्र नहीं किया, लेकिन कुछ ऐसे मामलों की पृष्ठभूमि में उनकी टिप्पणियां महत्व रखती हैं, जिन्हें 'असहिष्णुता' के बिंब के रूप में देखा गया है।
 
समारोह में राष्ट्रपति ने महान कार्टूनिस्ट आरके लक्ष्मण और राजेन्द्र पुरी को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने जवाहर लाल नेहरू का भी जिक्र किया और कहा कि वे बार-बार कार्टूनिस्ट वी शंकर से कहते थे कि उन्हें (नेहरू) को पीछे मत छोड़ देना।
 
मुखर्जी ने कहा, यह खुली सोच और वास्तविक आलोचना की सराहना हमारे महान राष्ट्र की प्रिय परंपराओं में से एक हैं, जिन्हें हमें हर हाल में संरक्षित और मजबूत करना चाहिए। 
 
राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि भारत में प्रेस की आजादी अभिव्यक्ति की आजादी का हिस्सा है जिसकी गारंटी संविधान में मौलिक अधिकार के रूप में दी गई है। उन्होंने कहा कि एक लोकतंत्र में समय-समय पर विभिन्न चुनौतियां उभरती हैं और उनका समाधान सामूहिक रूप से किया जाना चाहिए। 
 
उन्होंने कहा, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कानून की मूल भावना एक जीवंत सचाई बनी रहे। इस समारोह को संबोधित करते हुए मुखर्जी ने कहा कि देश में समाचार पत्रों और एजेंसियों के विकास की जड़ें हमारे स्वतंत्रता संग्राम में रही हैं।
 
समारोह में सूचना और प्रसारण राज्यमंत्री राज्यवर्धन राठौड़ तथा पीसीआई अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) सीके प्रसाद भी मौजूद थे। (भाषा)