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Written By सुरेश एस डुग्गर
Last Modified: श्रीनगर , मंगलवार, 21 अक्टूबर 2014 (23:57 IST)

उमर को भाजपा के बढ़ते कदमों से लगने लगा 'डर'

उमर को भाजपा के बढ़ते कदमों से लगने लगा 'डर' -
श्रीनगर। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को अब भाजपा के बढ़ते कदमों से ‘डर’ लगने लगा है। हालांकि वे दिल को तसल्ली देने के लिए साथ में कहते हैं कि देश के अन्य राज्यों में भाजपा की लगातार बढ़ती जीत जम्मू-कश्मीर में खास असर नहीं डालेगी। पर इतना जरूर है कि राज्य में वोट बैंक को पक्का करने के इरादों से अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजनीतिक कदम के तौर पर इस बार दीवाली कश्मीर के बाढ़ पीड़ितों के साथ मनाएंगे।
 
जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने मंगलवार को कहा कि हरियाणा और महाराष्ट्र में भाजपा की जीत का प्रदेश में विधानसभा चुनाव पर कुछ प्रभाव पड़ेगा लेकिन साथ ही कहा कि यह असर उतना अधिक नहीं होगा जितनी पहले संभावना थी। उनका बयान उनके उस डर को जाहिर कर रहा था जो उन्हें भाजपा के बढ़ते कदमों से लग रहा था।
 
उमर ने कहा कि जाहिर सी बात है कि जम्मू कश्मीर में भाजपा का कुछ असर होगा लेकिन मुझे नहीं लगता कि यह उतना अधिक होगा जितना पहले सोचा गया था। मुख्यमंत्री ने कहा कि इन दोनों राज्यों में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया है लेकिन परिणाम उनकी (भाजपा) उम्मीदों के अनुरूप नहीं हैं।
 
उमर ने कहा कि हां, उन्होंने (भाजपा) ने अच्छा किया है लेकिन उतना नहीं जितना कि उन्होंने उम्मीद की थी। यदि आप हरियाणा में भाजपा के संसदीय चुनाव परिणामों और अभी तक के भाजपा, शिवसेना संसदीय चुनाव परिणामों की तुलना करें तो वे इन दोनों राज्यों में संसदीय परिणामों को विधानसभा चुनाव परिणामों में नहीं बदल पाए। 
 
उन्होंने कहा कि हरियाणा में, वे केवल आधे रास्ते ही पहुंच सके। महाराष्ट्र में उन्हें पीछे मुड़कर सहयोगी की तलाश करनी पड़ रही है जहां वे अपने दम पर सरकार बनाने के बारे में बातें कर रहे थे। प्रदेश में चुनाव देरी से कराने की वकालत कर रही नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर ने कहा कि इसका फैसला निर्वाचन आयोग को करना है।
 
इतना जरूर है कि उमर के इस ‘डर’ में वृद्धि अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस फैसले ने की है जिसमें उन्होंने इस बार की दीवाली कश्मीर के बाढ़ पीड़ितों के साथ मनाने की घोषणा की है। प्रधानमंत्री बृहस्पतिवार को कश्मीर आ रहे हैं। वे यहां बाढ़ पीड़ितों के साथ दीवाली मनाएंगे। प्रधानमंत्री के इस कदम को राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है। खासकर अगले दो महीनों में होने जा रहे राज्य विधानसभा चुनावों से।
 
वैसे प्रधानमंत्री के इस फैसले की सोशल नेटवर्किंग साइटों पर आलोचना भी हो रही है। आलोचना करने वालों का कहना था कि कश्मीरियों के लिए दीवाली से अधिक महत्वपूर्ण ईद होती है और ईद पर प्रधानमंत्री ने ऐसा कोई फैसला नहीं किया और न ही मुबारकबाद दी थी।