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Last Updated :नई दिल्ली , सोमवार, 8 सितम्बर 2014 (21:27 IST)

'मुझे क्षमा करें'

'मुझे क्षमा करें' - Narendra Modi, Jainism
-शोभना, अनुपमा जैन
 
नई दिल्ली। (वीएनआई)। 'मिच्छामी दुक्कड़म' क्षमावाणी पर्व पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस बार अपने एक संदेश में कहा था, 'मिच्छामी दुक्कड़म'- 'क्षमा'। सांझ हो रही थी,  साधु-साध्वियों के समूह के पीछे एक अन्य धर्मावलंबी मित्र के साथ हम मंदिर से ध्वनित होने वाले मंत्रोच्चार के बीच मंदिर की सीढ़ियों से नीचे उतर रहे थे, मित्र की जिज्ञासा थी कि क्षमावाणी पर्व आखिर है क्या? प्रधानमंत्री  के इस कथन के मायने क्या थे? जैन समुदाय की श्वेतांबर परंपरा के पर्यूषण पर्व के सम्पन्न होने पर आयोजित क्षमावाणी दिवस पर प्रधानमंत्री ने यह टिप्पणी करते हुए कामना की थी कि समाज में करुणा तथा क्षमा की शक्ति से समाज में एकता की भावना और मजबूत हो। 
 

 
एक ट्वीट कर प्रधानमंत्री ने उपरोक्त भाव व्यक्त करते हुए लिखा था, 'मिच्छामी दुक्कड़म'। प्रधानमंत्री ने कहा था कि संपूर्ण जगत में अंधकार, हिंसा तथा क्रोध का अंत हो और क्षमा तथा शांति का साम्राजय हो। इस पर्व को लेकर मित्र की कितनी ही जिज्ञासाएं थीं। 
 
जैन धर्म की परंपरा के अनुसार वर्षा ऋतु में मनाया जाया वाला पर्यूषण पर्व, जैन धर्मावलंबियों में आत्मशुद्धि का पर्व  माना जाता है, मित्र की उत्सुकता  है कि आत्मशुद्धि आखिर कैसे की जाती है? इसी पर्व के समापन पर यानी पर्यूषण पर्व के आखिरी दिन क्षमावाणी दिवस पर प्रधानमंत्री ने यह भावना व्यक्त की थी। इस दिवस पर एक-दूसरे से  हाथ जोड़कर क्षमा मांगी जाती है और कहा जाता है कि मैंने मन, वचन, काया से, जाने-अनजाने में आपका मन दुखाया हो तो हाथ जोड़कर आपसे क्षमा मांगता हूं। 
 
पर्यूषण पर्व के दौरान लोग पूजा-अर्चना, आरती, सत्संग, त्याग, तपस्या, उपवास आदि में अधिक से अधिक समय व्यतीत करते हैं। जैन धर्म के दिगम्बर संप्रदाय में मंगलवार को पर्यूषण पर्व सम्पन्न हो रहा है जिसके संपन्न होने पर क्षमावाणी दिवस  मनाया जाएगा, जबकि जैन धर्म की श्वेताम्बर परंपरा में पर्यूषण पर्व आठ दिन पूर्व सम्पन्न हो चुका है।
 
जैन संत अचार्य विद्यासागर के अनुसार भी 'क्षमा' वीरों का आभूषण  है। सही ही कहा जाता है कि क्षमा बराबर तप नहीं, क्षमा का धर्म आधार होता है। क्रोध सभी के लिए अहितकारी है और क्षमा सदा, सर्वत्र सभी के लिए हितकारी होती है। हर धर्म में क्षमा का महत्व है। वैदिक ग्रंथों में भी क्षमा की श्रेष्ठता पर बल दिया गया है। 
 
ईसा मसीह ने भी सूली पर चढ़ते हुए कहा था, 'हे ईश्वर! इन्हें क्षमा करना, ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं।' कुरान शरीफ में भी लिखा है, जो वक्त पर धैर्य रखे और क्षमा कर दे, तो निश्चय ही यह बड़े साहस के कामों में से एक है। सिख गुरु गोविंद सिंह जी एक जगह कहते हैं, यदि कोई दुर्बल मनुष्य तुम्हारा अपमान करता है तो उसे क्षमा कर दो क्योंकि क्षमा करना वीरों का काम है।
 
दस दिन तक चलने वाले पर्यूषण पर्व में दस धर्म आते हैं—उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्ज, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम अकिंचन और उत्तम ब्रह्मचर्य। क्षमा दस धर्म का सार है। 
 
जैन आचार्य विद्यानंदजी के अनुसार, अगर एक क्षमा गुण आत्मा में आता है तो बाकी के नौ धर्म अपने आप आ जाते हैं। क्षमा को चिंतामणि रत्न कहते हैं। जैसे चिंतामणि रत्न चिंतित वस्तु देता है। पारसमणि लोहे को सोना बनाता है। उसी तरह क्षमा आत्मा को शुद्ध बनाती है। 
 
जैन विदुशी आर्यिका ज्ञान माताजी के अनुसार, क्षमावाणी का पर्व सौहार्द, सौजन्यता और सद्भावना और मनोमालिन्य धोने का पर्व है। आज के दिन एक-दूसरे से क्षमा मांगकर मन की कलुशता को दूर किया जाता है। जाने-अनजाने में हुए किसी तरह के अपराध या गलती के प्रति पश्चाताप का भाव रखते हुए मनोमालिन्य को दूर करने की भावना इस पर्व का प्रयोजन है। 
 
मन, वाणी और कर्म से किसी के भी प्रति अहित या अपराध हो जाना स्वाभाविक है किन्तु महत्त्वपूर्ण है उस अपराध या गलती का बोध और फिर क्षमा याचना सहित प्रायश्चित्त अर्थात् शुद्धिकरण। संत तुकाराम ने कहा, संत तुकाराम ने भी कहा था, जिस मनुष्य के हाथ में क्षमा रूपी शस्त्र हो, उसका कोई भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। एक विद्वान के अनुसार, वैश्वीकरण के इस दौर में 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की उक्ति वास्तव में क्षमा पर्व जैसे आयोजनों में ही चरितार्थ होती दिखती है।
 
सबकुछ सुनकर मित्र के चेहरे पर अजीब सी शांति के भाव उभर आते हैं, शांत भाव से वे कहते हैं। आज सुबह से किसी बात पर परिवारजनों, दफ्तर के कर्मियों यहां तक कि जिस ऑटो से यहां आया, उसके चालक से भी मैं उलझ पड़ा, अब लग रहा है कि सबसे क्षमा याचना करूं। इस बात की नहीं सोचूं कि गलती किसकी थी, अचानक अब मन बहुत धुल-धुला सा हो गया है। 
 
साधु-साध्‍वी शायद कहीं बहुत आगे क्षमा भाव का संदेश देने आगे निकल गए हैं, लगा मंदिर से मंत्रोचार की गूंज और तेज हो गई जो हर जगह शांति फैला रही है, एक गूंज-सी हर ओर से सुनाई देने लगी, सभी जीव सुखी रहें, किसी भी जीव को कोई दुःख न हो, सभी जीवों के दुःख दूर हो जाएं, मैं सभी जीवों को क्षमा करता हूं, सभी जीव मुझे क्षमा प्रदान करे। ऐसा ही हो....ऐसा ही हो...