Nanital highcourt on President rule in Uttarakhand
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Last Updated :नैनीताल , शुक्रवार, 17 जून 2016 (14:26 IST)
उत्तराखंड मामले में कोर्ट बोली, राष्ट्रपति के फैसले भी गलत हो सकते हैं
नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि राज्य विधानसभा को निलंबित करने के राष्ट्रपति के निर्णय की वैधता की न्यायिक समीक्षा हो सकती है, क्योंकि वे भी गलत हो सकते हैं।
राजग सरकार के इस तर्क पर कि राष्ट्रपति ने अपने राजनीतिक विवेक के तहत संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत यह निर्णय किया, मुख्य न्यायाधीश केएम जोसफ और न्यायमूर्ति वीके बिष्ट की पीठ ने कहा कि लोगों से गलती हो सकती है, चाहे वह राष्ट्रपति हों या न्यायाधीश।
अदालत ने कहा कि राष्ट्रपति के समक्ष रखे गए तथ्यों के आधार पर किए गए उनके निर्णय की न्यायिक समीक्षा हो सकती है। केंद्र के यह कहने पर कि राष्ट्रपति के समक्ष रखे गए तथ्यों पर बनी उनकी समझ अदालत से जुदा हो सकती है, अदालत ने यह टिप्पणी की।
पीठ के यह कहने पर कि उत्तराखंड के हालत के बारे में राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति को भेजी गई रिपोर्ट से हमने यह समझा कि हर चीज 28 मार्च को विधानसभा में शक्ति परीक्षण की तरफ जा रही थी, केंद्र ने उक्त बात कही थी।
सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि राज्यपाल ने राष्ट्रपति को भेजी गई अपनी रिपोर्ट में इस बात का जिक्र नहीं किया कि 35 विधायकों ने मत विभाजन की मांग की है।
अदालत ने कहा कि राज्यपाल को व्यक्तिगत तौर पर संतुष्ट होना चाहिए। उन्होंने 35 विधायकों द्वारा विधानसभा में मत विभाजन की मांग किए जाने के बारे में अपनी व्यक्तिगत राय का उल्लेख नहीं किया।
अदालत ने कहा कि उनकी रिपोर्ट में यह नहीं कहा गया है कि कांग्रेस के 9 बागी विधायकों ने भी मत विभाजन की मांग की थी। इसने यह भी कहा कि ऐसी सामग्री की निहायत कमी थी जिससे राज्यपाल को शंका हो कि राष्ट्रपति शासन लगाने की जरूरत है।
अदालत ने पूछा कि तो भारत सरकार को कैसे तसल्ली हुई कि 35 खिलाफ में हैं? राज्यपाल की रिपोर्ट से? पीठ ने कहा कि 19 मार्च को राष्ट्रपति को भेजे गए राज्यपाल के पत्र में इस बात का जिक्र नहीं है कि 35 विधायकों ने मत विभाजन की मांग की। इस बात का जिक्र नहीं होना शंका पैदा करता है। यह निहायत महत्वपूर्ण है। इस पर केंद्र ने कहा कि 19 मार्च को राज्यपाल के पास पूरा ब्योरा नहीं था। (भाषा)