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डेटा चोरी बड़ा खतरा, इस तरह बचें...

डेटा चोरी बड़ा खतरा, इस तरह बचें... - Mobile data theft case, data theft
फेसबुक डेटा लीक का खुलासा होने के बाद पूरी दुनिया में खलबली मची हुई है। भारत में भी आधार डेटा को लेकर समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं। अब भाजपा का 'नमो ऐप और कांग्रेस का 'ऐप' भी सवालों के घेरे में आ गया है। ऐसे में आम आदमी का सबसे बड़ा सवाल अपनी निजता को लेकर है। विशेषज्ञ तो यह भी मानते हैं कि आपका स्मार्ट फोन कुछ ही सेकंड में हैक हो सकता है। आखिर आम आदमी से जुड़ी जानकारी कहां-कहां लीक हो सकती हैं और इससे कैसे बचा जा सकता है। आइए जानते हैं....
 
 
यह बात सही है कि डेटा की पूरी जानकारी ऐप कंपनी को होती है और उसे वह डेटा कई बार थर्ड पार्टी तक भी पहुंच जाता है। डेटा गोपनीयता को लेकर कंपनी की पॉलिसी में इन बातों का जिक्र भी होता है, लेकिन पॉलिसी का पालन नहीं होने पर भी उपभोक्ता कुछ कर नहीं सकता, क्योंकि देश में डेटा प्रोटेक्शन कानून अभी बना ही नहीं है।
एक अध्ययन के अनुसार, 70 प्रतिशत से अधिक स्मार्टफोन ऐप्स आपकी निजी जानकारी थर्ड पार्टी ट्रैकिंग कंपनियों को दे रही हैं। दूसरी ओर कई ऐप्स में लोकेशन ट्रैक करने की अनुमति देना भी जरूरी होता है। ऐप के जरिए कंपनियों की पहुंच आपके मोबाइल फोन के माइक और फोटो गैलरी तक हो जाती है। ये सिलसिला तब से शुरू हुआ है, जब से यूजर्स ने स्मार्टफोन में ऐप डाउनलोड करना शुरू किया है।
 
थर्ड पार्टी के पास डेटा जाने पर क्या होता है?
  • थर्ड पार्टी के पास डेटा जाने के बाद इसका कई तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है। जैसे- गूगल पर जो  चीज ज्यादा सर्च करते हैं या पढ़ते हैं उससे संबंधित विज्ञापन और कंटेंट प्राथमिकता के साथ आपके मोबाइल और डेस्कटॉप पर आने लगते हैं। 
  • थर्ड पार्टी को डेटा शेयर करने पर कोई नियम नहीं।
  • कुछ ऐसे ऐप भी हैं जिनका आपके डेटा से कोई लेना-देना नहीं, फिर भी वह आपके कैलेंडर, माइक,  कॉन्टैक्ट्स, टेलीफोन, पिक्चर गैलरी आदि की अनुमति मांगते हैं।
 
यूजर ऐसे देते हैं अपना डेटा :  
  • ऐप डाउनलोड के समय इंस्टॉलेशन फाइल गूगल के सर्वर पर ले जाती है। यह अपने सर्वर से यूजर के मोबाइल को कनेक्ट करता है। ऐप इन्स्टॉल होने से पहले बताया जाता है कि यह आपसे डेटा लेगा। आश्चर्य की बात ये है कि मुश्किल से एक फीसदी से भी कम यूजर पॉलिसी पढ़ते हैं। 
  • गूगल, फेसबुक और वॉट्सऐप की सेवाएं लेने के लिए वीडियो, फोटो, कॉन्टैक्ट लिस्ट जैसी जानकारी शेयर करनी पड़ती है।
  •  यहीं नहीं आपके मोबाइल पर आए ओटीपी को भी ये पढ़ लेते हैं यानी एसएमएस की जानकारी ऐप के पास होती है।
  • मोबाइल फोन ही आपका ट्रैक्र है। किसी भी सर्च पर गूगल की-वर्ड को स्टोर कर लेता है और आपका हर ट्रांसजेक्शन, लोकेशन यह मेल से भी ट्रैक कर लेता है।
 
अब जरुरी बात कि इससे कैसे बचें : 
  • ऐप में गैरजरूरी एक्सेस डिसेबल करें।
  • सेटिंग्स में ऐप परमीशन का स्टेटस देखें, जिनकी एक्सेस नहीं देनी है, उन्हें डिसेबल कर दें।
  • दो मेल आईडी रखें। बैंक कम्यूनिकेशन वाले आईडी को मोबाइल से कनेक्ट न करें।
  • दो मोबाइल भी रख सकते हैं। एक पर सोशल मीडिया और दूसरे पर निजी काम करें।
  • डेटा चोरी उन जगहों से होती है जहां डाउनलोड किया गया। साइबर कैफे में आधार या फिर अन्य दस्तावेज डाउनलोड किए हैं तो रिसाइकिल बिन से भी डिलीट कर दें।
  • मिलते-जुलते नाम वाले ऐप से बचें। गूगल प्ले स्टोर पर ऐप डाउनलोड करने से पहले उसकी रेटिंग देखें। रेटिंग 4 या अधिक होनी चाहिए। 
  • ऐसे भी ऐप हैं, जो ये बताते हैं कि आपका डेटा शेयर किया जा रहा है या नहीं। 
 
किन देशों में हैं डेटा प्रोटेक्शन कानून?
यूरोप के अलावा न्यूजीलैंड, जापान, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका, चीन आदि देशों में डेटा प्रोटेक्शन कानून है। 
 
भारत में क्या कहता है कानून? 
  • भारत में आईटी एक्ट की धारा 79 में साधारण डेटा लीक होने पर 3 साल, संवेदनशील डेटा में 10 साल  सजा का प्रावधान है। अभी तक किसी को सजा नहीं हुई है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने भी 27 मार्च को डेटा चोरी के मामले में कानून नहीं होने को लेकर भी सवाल खड़ा किया है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि जब डेटा चोरी पर कानून नहीं है तो आधार डेटा कैसे सुरक्षित रहेगा? 
  • एक अनुमान के मुताबिक, भारत में कानून बनने में लग जाएंगे 8 महीने। 
  • डेटा प्रोटेक्शन एक्ट पर सरकार ने नवंबर में श्वेत पत्र जारी किया था। इस साल शीतकालीन सत्र में कानून लाने की संभावना है। 
 
कानून में किए जा सकते हैं ये प्रावधान : 
  • डेटा लीक होने पर 5-7 साल तक की सजा का प्रावधान संभव है।
  • कंपनी पर 5 से 8 लाख रुपए तक का जुर्माना किया जा सकता है।
  • कंपनी डेटा यूजर को साझा करने के लिए मजबूर नहीं करेगी।
  • थर्ड पार्टी से डेटा साझा करने के लिए यूजर की मंजूरी लेनी होगी।
  • थर्ड पार्टी को डेटा देने के लिए उसका नाम-वजह बतानी होगी।
  • यूजर बाद में कभी भी कंपनी से साझा किया हुआ डेटा डिलीट करने के लिए कह सकता है। कंपनी को ऐसा करना पड़ेगा।
 
कहा जा सकता है कि कानून बनने तक इस मामले में सावधानी ही बचाव है। ज्यादा अच्छा होगा कि आप स्मार्टफोन का इस्तेमाल बेहद ही स्मार्ट तरीके से करें और ऐप्स डाउनलोड करते वक्त पॉलिसी ध्यान से जरुर पढ़ें।