कश्मीरी पत्थरबाजों को सबक सिखाने वाले एक मेजर की कहानी
'यदि हम पत्थरबाज को जीप से नहीं बांधते तो कई लोगों की मौत हो सकती थी।' ऐसा कहने और करने वाले भारतीय सेना के मेजर लिथल गोगोई भारत के लोगों के हीरो बने हुए हैं। हालांकि एक धड़ा ऐसा भी है जो उनकी इस कार्रवाई की तीखी आलोचना भी कर रहा है। भारतीय सेना ने उन्हें सम्मानित भी किया है। आखिर कौन हैं गोगोई और क्या है उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि, आइए जानते हैं....
मेजर गोगोई देशभर में उस वक्त चर्चा का विषय बन गए थे, जब 9 अप्रैल को श्रीनगर में लोकसभा उप चुनाव के मतदान के दौरान सेना का एक वीडियो सामने आया था। इसमें एक स्थानीय शख्स को सेना की जीप के आगे बंधा हुआ दिखाया गया था, जिससे पत्थरबाजों ने सेना के काफिले पर हमला नहीं किया था। राष्ट्रीय राइफल्स के मेजर लितुल गोगोई को आर्मी चीफ की ओर से इस घटना के लिए प्रशस्ति-पत्र प्रदान किया गया है। दूसरी ओर कश्मीर में पुलिस ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर रखी है।
पारिवारिक पृष्ठभूमि : मेजर गोगोई का गृहनगर पतकाई पहाड़ियों में जंगलों के बीच डिब्रूगढ़ से लगभग 80 किलोमीटर दूर स्थित है। यह इलाका कभी उल्फा आतंकियों की गतिविधियों के कारण पहचान बना चुका था। मेजर गोगोई के पिता धर्मेश्वर गोगोई नामरूप की सार्वजनिक क्षेत्र इकाई ब्रह्मपुत्र वैली फर्टिलाइजर कॉर्पोरेशन से रिटायर हुए हैं। लिथल के पिता के मुताबिक उनके बेटे ने डिब्रूगढ़ और शिलांग में पढ़ाई की और बाद में भारतीय सैन्य अकादमी से स्नातक किया। लिथल 18 साल उम्र में सेना में भर्ती हुए थे।
बतौर जवान दीं सेवाएं : देहरादून स्थित आर्मी कैडेट कॉलेज (एसीसी) से एक अधिकारी बनने से पहले करीब 9 वर्षों तक लिथल गोगोई ने असम रेजीमेंट की तीसरी बटालियन में बतौर जवान अपनी सेवाएं दीं। दिसंबर 2008 में गोगोई को लेफ्टिनेंट नियुक्त किया गया था। उनके पिता के मुताबिक लीथुल हमेशा से ही सेना में शामिल होना चाहते थे और आखिरकार वे इसमें सफल हो गया।
वीडियो से चर्चा में आए : कश्मीर में पत्थरबाजों से निपटने के लिए एक युवक को जीप से बांधकर ढाल की तरह इस्तेमाल करने वाले मेजर लिथल गोगोई पहली बार मीडिया के सामने आए और उस घटना के बारे में विस्तार से बताया। गोगोई ने कहा कि अगर उस दिन उस युवक को जीप से बांधने वाले प्लान पर काम नहीं किया होता तो मौके पर कई लोगों की जानें जातीं। इस पूरे विवाद के बाद मेजर गोगोई पहली बार मीडिया के सामने आए। उन्होंने बताया कि सुबह साढ़े 10 बजे कॉल आई कि गुंडीपुरा में 1200 लोगों ने पोलिंग स्टेशन को घेर रखा है और उसे पेट्रोल बम से जलाने की कोशिश कर रहे हैं।
ऐसे मिला आइडिया : लिथल के मुताबिक क्विक रिस्पोंस टीम के साथ जब वे वहां पहुंचे तो भीड़ ने उनके काफिले पर पथराव शुरू कर दिया। उन्होंने देखा कि एक युवक पत्थरबाजों को उकसा रहा है और उसी के नेतृत्व में ये पत्थरबाजी हो रही है। उन्होंने उसका पीछा किया तो युवक भागने लगा, लेकिन उनकी टीम किसी तरह उस युवक को पकड़ने में कामयाब रही।
मेजर गोगोई ने कहा कि जब उन्होंने उस युवक को पकड़ा तो पत्थरबाजी बंद हो गई। यहीं से उन्हें ये आइडिया आया कि भीड़ से सुरक्षित बाहर निकलना है और कोई बल-प्रयोग भीड़ पर नहीं करना है तो उस युवक को ही ढाल बनाना होगा। मेजर गोगोई ने कहा कि अगर वे ऐसा नहीं करते और फायरिंग का रास्ता अपनाते तो कई जानें जातीं।