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Last Updated : रविवार, 24 नवंबर 2019 (10:13 IST)

भारतीय राजनीति के इन धुरंधर चाचाओं के लिए चुनौती बने भतीजे

भारतीय राजनीति के इन धुरंधर चाचाओं के लिए चुनौती बने भतीजे - Mahabharata political
महाराष्ट्र (Maharashtra) की सियासी महाभारत में उस समय बड़ा उलटफेर हो गया, जब अजित पवार ने बीजेपी के साथ मिलकर उपमुख्यमंत्री की शपथ ले ली। जिस चाचा शरद पवार का हाथ पकड़कर अजित पवार राजनीति में आए। जिस चाचा से उन्होंने सियासी ककहरा सीखा, उन्हीं से बागी होकर वे विधायकों को तोड़कर बीजेपी के पाले में आ गए। हालांकि इन खेलों के बड़े खिलाड़ी रहे शरद पवार ने जल्द ही डैमेज कंट्रोल कर लिया। भारतीय राजनीति में चाचा-भतीजे का यह सियासी घमासान नया नहीं है। ऐसे कई राजनीतिक घराने हैं  जहां भतीजे, चाचाओं के लिए चुनौती बने।
 
1. बाला साहब ठाकरे-राज ठाकरे : महाराष्ट्र में जिस शिवसेना को अजित पवार के पैंतरे से बड़ा झटका लगा है, उसी पार्टी में चाचा के पुत्रमोह के चलते भतीजे ने राजनीति की नई राह चुन ली थी। शिवसेना की स्थापना करने वाले बाला साहेब ठाकरे का अक्स उनके भतीजे राज ठाकरे में देखा जाता था। राज ठाकरे ने भी चाचा बाला साहेब ठाकरे से राजनीति के हर गुर सीखे।

राज ठाकरे हमेशा से ही बाला साहेब ठाकरे के कदमों पर चला करते थे। जहां बाला साहेब के बेटे उद्धव फोटोग्राफी में व्यस्त थे, वहीं राज बाला साहेब के साथ कंधे से कंधे मिलाकर काम कर रहे थे, लेकिन अचानक बाला साहब के पुत्रमोह ने राज को दूर कर दिया।

2004 में जब शिवसेना की कमान संभालने की बारी आई तो बाल ठाकरे ने उद्धव ठाकरे को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया। इससे राज ठाकरे और चाचा बाला साहेब ठाकरे के बीच दूरियां बढ़ती गईं। राज ठाकरे ने एक साल बाद ही वर्ष 2006 में शिवसेना से अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) नाम से पार्टी बनाकर अलग राजनीति शुरू कर दी।
2. शिवपाल-अखिलेश यादव : भारतीय राजनीति के एक और घराने यादव परिवार में भी चाचा-भतीजे के संग्राम से टूट हुई। 2016 के अंत में मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव के कुछ फैसलों पर नाराज होते हुए भाई शिवपाल यादव को समाजवादी पार्टी का अध्यक्ष बना दिया। अखिलेश को पिता का फैसला मंजूर नहीं था।

अखिलेश चूंकि उस समय उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री थे इसलिए पार्टी के ज्यादातर विधायकों का समर्थन उन्हें हासिल था। अखिलेश यादव पार्टी मीटिंग बुलाकर 2016 में ही पार्टी के नए अध्यक्ष बन गए।

मुलायम परिवार की लड़ाई चुनाव आयोग में भी पहुंची। चुनाव आयोग में बाजी अखिलेश ने जीती और समाजवादी पार्टी का चिन्ह उन्हें मिल गया। शिवपाल यादव ने 2019 में अपनी अलग प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बना ली और लोकसभा चुनाव लड़ा।
3. चौटाला परिवार के चाचा-भतीजे : हरियाणा के चौटाला परिवार में भी चाचा-भतीजे में सियासी संग्राम हुआ। पिछले वर्ष ओमप्रकाश चौटाला के दोनों बेटे अभय और अजय भी अलग हो गए। अजय चौटाला ने बेटे दुष्यंत चौटाला के साथ मिलकर जननायक जनता पार्टी बनाई है, जबकि अभय चौटाला के पास इंडियन नेशनल लोकदल की कमान है।

अक्टूबर 2019 में हरियाणा में विधानसभा चुनाव आए। जननायक जनता पार्टी ने मजबूती से चुनाव लड़ा, दु‍ष्यंत की मेहनत से पार्टी ने 10 सीटें जीतीं। दुष्यंत ने साबित किया कि परदादा देवीलाल की विरासत के सही हकदार वे ही हैं। दुष्यंत चौटाला की मदद से हरियाणा में बीजेपी की सरकार बनी है। दुष्यंत चौटाला को खट्टर सरकार में उपमुख्यमंत्री बनाया गया।
4. बादल परिवार के चाचा-भतीजे : पंजाब में बादल परिवार में भी चाचा-भतीजों में राजनीतिक संग्राम हुआ। 2010 में प्रकाश सिंह बादल के भतीजे मनप्रीत बादल ने शिरोमणि अकाली दल से अलग होकर पीपीपी बनाई थी। मनप्रीत बादल की प्रकाश सिंह बादल से नाराजगी 2007 में शुरू हुई।

2007 में अकाली दल की सरकार बनने के बाद प्रकाश सिंह बादल ने अपने बेटे सुखबीर बादल को डिप्टी सीएम बनाया, जबकि मनप्रीत बादल को वित्त मंत्रालय दिया गया, लेकिन मनप्रीत बादल प्रकाश सिंह बादल द्वारा
सुखबीर को अपना वारिस बनाने से नाराज हो गए। मनप्रीत बादल की पार्टी पीपीपी 2012 के चुनाव में कोई कमाल नहीं दिखा पाई।

2014 में मनप्रीत बादल कांग्रेस में शामिल हो गए। 2017 में मनप्रीत बादल अमरिंदर सिंह की सरकार में कैबिनेट मंत्री बनने में कामयाब रहे। शिरोमणि अकाली दल की कमान अब पूरी तरह से सुखबीर बादल के हाथों में है।
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