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Written By वेबदुनिया न्यूज डेस्क
Last Modified: शनिवार, 30 मई 2020 (07:24 IST)

Locust Attack: टिड्डी दल के बारे में 10 बातें जो जानना बहुत जरूरी है

Locust Attack: टिड्डी दल के बारे में 10 बातें जो जानना बहुत जरूरी है - Locust Attack : 10  things about Tidde
अफ्रीका से अरब और अरब से ईरान, पाकिस्तान और फिर भारत में टिड्डियों ने हमला किया है जिसके चलते किसानों की करोड़ों की फसल नष्ट हो गई है। इस फसल के नष्ट होने से आने वाले समय में खाद्यान की कमी होगी और महंगाई बढ़ेगी। टिड्डी दल में कम से कम 10 लाख से ज्यादा टिड्डियां होती हैं। एक के पीछे एक करके कई टिड्डी दल समयांतर में हमला करते हैं। 
 
यह टिड्डी दल ईरान में पैदा हुआ, जो पाकिस्तान के रास्ते राजस्थान, गुजरात व मध्य प्रदेश होते हुए अब और आगे बढ़ रहा है।
 
विशेषज्ञों के अनुसार लॉकडाउन में मानव गतिविधियां कम होने के कारण इनकी संख्या अरबों में पहुँच गई है और यह अब ज़्यादा दूर तक सफ़र तय कर रहे हैं। इनके दल बेहद विशाल होते हैं। यह कई किलोमीटर लंबे दलों में सफर करते हैं।
 
डेढ़ लाख टिड्डियों का वजन लगभग एक टन हो सकता है, जो एक दिन में 10 हाथियों के बराबर खाना खाते हैं। यह टिड्डे तब तक सफ़र करते हैं, जब तक मर नहीं जाते हैं।
 
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एंव कृषि संगठन के अनुसार ईरान और दक्षिण-पश्चिम पाकिस्तान में टिड्डियों का वसंत प्रजनन जारी है और वे जुलाई तक भारत-पाकिस्तान की सीमा पर जाते रहेंगे।
 
संरा ने चेतावनी दी है कि जून की शुरुआत में होने वाली बारिश से भारत-पाकिस्तान में  टिड्डों के अंडों को फलने फूलने में मदद मिलेगी।
 
आमतौर पर यह टिड्डी दल एक लाख से लेकर करोड़ों की संख्या में हो सकते हैं। यह कई किमी लंबे भी हो सकते हैं। वर्तमान में उत्तर भारत में हमला करने वाला दल लगभग 3 किलोमीटर लंबा है। बड़े झुंड में चलने वाले टिड्डी गाढ़े पीले रंग के होते है। इनकी लंबाई 4 इंच तक होती है। 
 
यह सिर्फ खाने की तलाश में हवा के बहाव व नमी की दिशा की ओर उड़ते जाते हैं। रास्ते में जहां रुकते हैं, वहां पेड़, पौधों, फसलों आदि को खा जाते हैं। आम तौर पर यह रात में सो जाते हैं।
 
 
 
कैसे मिलती है इन्हें  इतनी ऊर्जा : लगातार सफर करते रहने के लिए इन्हें निरंतर खाना पड़ता है। इसका प्रमुख आहर नए और हरे पत्ते होते हैं। हरे पत्तों में प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट ज्यादा मात्रा में होने के कारण इन्हें चट कर जाते हैं। कई बार यह सूखे पत्तों और मुरझाए पौधों को खाना ज्यादा पसंद नहीं करते हैं।
 
विशेषज्ञों ने बताया कि एक मादा टिड्डी तीन बार तक अंडे दे सकती है और एक बार में 95-158 अंडे तक दे सकती हैं। टिड्डियों के एक वर्ग मीटर में एक हजार अंडे हो सकते हैं। इनका जीवनकाल तीन से पांच महीनों का होता है। नर टिड्डे का आकार 60-75 एमएम और मादा का 70-90 एमएम तक हो सकता है।
 
टिड्डे बलुई मिट्टी वाले क्षेत्रों में जहां नमी एकत्र हो सकती है में प्रजनन करते हैं। प्रजनन के लिए मादा कीट ऊर्जा को लिपिड के रूप में संग्रहित करती हैं, जिसमें पानी होता है।
 
दुनियाभर में टिड्डियों की 10 हजार से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं, लेकिन भारत में केवल चार प्रजाति ही मिलती हैं। इसमें रेगिस्तानी टिड्डा, प्रवाजक टिड्डा, बंबई टिड्डा और पेड़ वाला टिड्डा शामिल हैं।
 
इनमें रेगिस्तानी टिड्डों को सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता है। ये टिड्डियां एक दिन में 35 हजार लोगों का खाना चट कर जाती है। कृषि अधिकारियों के अनुसार, रेगिस्तानी टिड्डों की वजह से दुनिया की दस फीसद आबादी का जीवन प्रभावित हुआ है।
 
कैसे बचाव करें: किसान किसी भी दशा में टिड्डी दल को अपने खेत में न आने दे, उन्हें तेज़ आवाज़ के माध्यम से भगाएं। यह टिड्डे पानी भरे स्थानों के आसपास प्रजनन करते हैं जिसके रिज़र्व वाटर बॉडीज पर लगातार निगाह बनाए रखें। टिड्डी दल के आने पर क्षेत्र में तेज आवाज का प्रयोग करें, पटाखे इत्यादि चलाएं, तेज आवाज वाले साउंड सिस्टम की व्यवस्था करें। टिड्डियों के भारी संख्या में पनपने का मुख्य कारण वैश्विक तापवृद्धि के चलते मौसम में आ रहा बदलाव है।
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