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Written By Author हिमा अग्रवाल
Last Updated : बुधवार, 15 फ़रवरी 2023 (08:34 IST)

उम्रकैद, 10 करोड़ का जुर्माना, कितना कारगर होगा उत्तराखंड का नकल विरोधी कानून?

उम्रकैद, 10 करोड़ का जुर्माना, कितना कारगर होगा उत्तराखंड का नकल विरोधी कानून? - Life imprisonment, Rs 10 crore fine, how effective will Uttarakhands anti-copying law?
उत्तराखंड में प्रतियोगी परीक्षाओं में नकल रोकने और पर्चे आउट कराने वालों के खिलाफ नकल विरोधी कानून (Uttarakhand anti copying law) लागू किया गया है। इस अध्यादेश में अब भर्ती परीक्षाओं में पेपर लीक, नकल कराने या अनुचित साधनों में लिप्त पाए जाने पर आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है। इसके साथ में 10 करोड़ रुपए तक का जुर्माना भी देना पड़ेगा। इस गैर जमानती अपराध में दोषियों की संपत्ति जब्त कर ली जाएगी।
 
अध्यादेश लागू होने की तिथि से ही प्रभावी हो गया है, जिसमें संगठित होकर नकल कराने और अनुचित साधनों में लिप्त पाए जाने वाले मामलों में आर्थिक दंड के साथ जेल भेजने के भी प्रावधान हैं। वेबदुनिया ने इस अध्यादेश पर समाज के विभिन्न वर्गों से जुड़े व्यक्तियों के विचार जानने का प्रयास किया। इस बीच, इस अध्यादेश के तहत उत्तरकाशी जनपद में पहला मुकदमा भी दर्ज कर लिया है। आरोपी अरुण कुमार पर जानबूझकर परीक्षा संबंधी भ्रामक सूचना फैलाने का आरोप है। आइए जानते हैं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं...

पूरे देश में हो ऐसा कानून : पूर्व आईपीएस अधिकारी और वर्तमान में यूपी एक्सप्रेस वे इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी के नोडल अधिकारी राजेश पांडे मानते हैं कि प्रतियोगी परीक्षाओं में नकल के लिए कड़ा कानून केवल उत्तराखंड में ही नहीं बल्कि पूरे देश में होना चाहिए।

वेबदुनिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि उत्तराखंड सरकार द्वारा लाया गया नकल विरोधी अध्यादेश स्वागत योग्य है, जिसका कड़ाई से पालन होना चाहिए। उनका मानना है कि अध्यादेश के प्रावधानों का कड़ाई से पालन प्रतियोगी परीक्षाओं की शुचिता बनी रह सकती है। परीक्षार्थियों की मेहनत और मेधा के सम्मान को बचाने के लिए यह जरूरी हो गया था।

हालांकि सख्त और ईमानदार छवि वाले पूर्व आईपीएस अधिकारी ने अध्यादेश के प्रावधानों को थोड़ा कड़ा बताया लेकिन साथ ही कहा कि इसके अलावा वर्तमान दौर में कोई चारा नहीं बचा था क्योंकि परीक्षा-दर-परीक्षा पर्चे आउट होने वाले समाचार विचलित करते थे। उन्होंने 90 के दशक में उत्तर प्रदेश में तत्कालीन शिक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा लाए गए नकल विरोधी अध्यादेश का जिक्र करते हुए कहा कि तब इसका कुछ लोगों ने विरोध किया था, लेकिन उसके परिणाम सुखद रहे थे।

नाक पर बैठी मक्खी को तलवार से मारने की कोशिश : शिक्षाविद दर्शना गुप्ता ने कहा कि देश में उत्तराखंड राज्य वह पहला प्रदेश है, जहां परीक्षाओं में नकल और अनुचित साधनों के प्रयोग करते हुए पकड़े जाने पर उम्र कैद तक का प्रावधान है। दोषी पाए जाने में परीक्षार्थी को 10 साल के लिए परीक्षाओं से डिबार किए जाने का प्रावधान है।सुनियोजित नकल रोकने की दिशा में सबसे पहले उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह के कार्यकाल में पहल हुई थी। नकल माफिया की नकेल कसने को लेकर शायद ही कोई असहमत हो, लेकिन परीक्षार्थी को दोषी पाए जाने पर जेल भेजे जाने का प्रावधान ऐसा है, जैसे नाक पर बैठी मक्खी को उड़ाने या मारने की कोशिश में तलवार से खुद की नाक काट लेना।
 
गुप्ता ने कहा कि एक अपरिपक्व छात्र को कारागार में डाल देना किसी भी हालत में उचित नहीं कहा जा सकता। इस तरह तो नाबालिग बच्चे बहुत जल्द अपराध की दुनिया से परिचित हो जाएंगे। इसी तरह अनुचित साधन में लिप्त बच्चों को 10 साल के लिए डिबार करना भी मानवीय दृष्टिकोण से न्यायोचित नहीं कहा जा सकता। बच्चे देश का भविष्य होते हैं। उन्हें सख्त दंड प्रावधान की जगह कोमल भाव से समझाना और नैतिकता के उच्च मूल्यों से परिचित कराते हुए उन्हें स्वयं को सुधारने का एक मौका और दिया जाना उचित रहेगा। सख्त दंडात्मक प्रक्रिया से सामाजिक सुधार संभव नहीं।
 
मूल समस्या की तरफ ध्यान नहीं देतीं सरकारें : महिला सरोकारों से जुड़ीं उत्तर प्रदेशीय महिला मंच की महासचिव ऋचा जोशी इस नकल अध्यादेश को प्रतियोगी छात्रों के हित में किया गया अदूरदर्शी कदम मानती हैं। उनका कहना है कि बढ़ती बेरोजगारी के दौर में युवा नकल जैसी प्रवृत्ति की ओर अग्रसर होते हैं। किसी भी कानून का मकसद मूल समस्या के सुधार पर केंद्रित होना चाहिए। इस कानून के प्रावधान में नकल माफिया के लिए कड़ी सजा का प्रावधान होना स्वागत योग्य है, लेकिन छात्रों के लिए इतनी कड़ी सजा अनुचित है।
उन्होंने कहा कि अगर पर्चे लीक होते हैं तो उसके दोषी सिस्टम को चला रहे लोग हैं जिनका कभी बाल बांका नहीं होता। एक समय था जब रेल हादसा होने पर तत्कालीन रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था जबकि आज सरकार चला रहे लोग बिना दूरगामी परिणामों का आकलन कर अध्यादेश से सिस्टम के छेदों पर लीपापोती करते हैं। बेहतर हो कि सरकार युवाओं के लिए रोजगारों का सृजन करे ताकि कोई युवा गलत राह पर न भटक सके। 
 
नौजवानों के लिए आशा की किरण : शिक्षिका अलका शर्मा का कहना है कि उत्तराखंड सरकार ने नकल विरोधी कानून बनाकर अत्यंत सहारनीय कार्य किया है। दूसरे राज्यों को भी इससे प्रेरणा लेनी चाहिए। यह भ्रष्ट लोगों के लिए दंडात्मक है, वहीं उन विद्यार्थियों के लिए राहत है, जो कठिन परिश्रम करते हैं। लेकिन ऐसे विद्यार्थी बेईमान और भ्रष्ट लोगों की काली करतूत का शिकार बन जाते हैं।
 
अध्यापिका अलका का मानना है कि मात्र कानून बनने से कुछ नहीं होगा जब तक इसका ठीक से अनुपालन न हो। आपका मानना है कि यदि कानून का चाबुक चल गया तो इस तरह की गतिविधियों पर अंकुश लग सकता है। प्रतिवर्ष लाखों युवक पेपर लीक होने के कारण अपना भविष्य चौपट होते हुए देखते हैं। ये कानून होनहार छात्रों और प्रतियोगी परीक्षा में शामिल होने वाले नौजवानों को आशा की किरण दिखाते हुए शक्ति और आत्मविश्वास देगा। सरकार ने सजा के साथ जो आर्थिक दंड का प्रावधान दिया है, वह भ्रष्टाचारियों को भयभीत अवश्य करेगा। यह सबसे बड़ी बात है कि इस कानून को उत्तराखंड सरकार ने लागू भी कर दिया है।
 
कड़ी सजा का प्रावधान अनुचित : प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहीं प्रशस्ति द्विवेदी का मत है कि पेपर लीक और नकल करने वालों पर दंडात्मक कार्रवाई जरूर होनी चाहिए। लेकिन, 10 साल की सजा और 10 करोड़ रुपए तक का जुर्माना बहुत ज्यादा है। प्रशस्ति सिविल जज बनना चाहती है और उसी की तैयारियों में लगी हैं। उत्तराखंड से पैतृक नाता होने के नाते वह चाहती है कि लागू अध्यादेश में कुछ बदलाव होने चाहिए ताकि राह से भटके छात्रों का भविष्य खराब न हो। यदि कोई छात्र या प्रतियोगी गलती करता है तो उसे एक बार हल्की-फुल्की सजा देकर सुधरने का अवसर जरूर मिलना चाहिए।
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