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Last Updated : रविवार, 20 जून 2021 (19:33 IST)

फादर्स डे पर डॉ. हर्षवर्धन ने लांच की कृष्णा सक्सेना की किताब 'My Joys and Sorrows'

फादर्स डे पर डॉ. हर्षवर्धन ने लांच की कृष्णा सक्सेना की किताब 'My Joys and Sorrows' - Krishna Saxena's book My Joys and Sorrows launched by Dr. Harsh Vardhan on Father's Day
नई दिल्ली। केंद्रीय स्वास्‍थ्‍य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने आज वरिष्ठ लेखिका डॉ. कृष्णा सक्सेना की नई किताब 'My Joys and Sorrows' का विमोचन किया। किताब एक स्पेशल चाइल्ड की मां के बलिदान और उसके साहस पर लिखी गई है।

'फादर्स डे' पर किताब लांच करते हुए डॉ. हर्षवर्धन ने कहा, मुझे उम्मीद है कि माताओं के साथ यह किताब पिता भी पढ़ेंगे, जिससे वे बच्चों की परवरिश के साथ-साथ पूरी पीढ़ी की परवरिश करने के बारे में भी जान सकेंगे। यह पुस्तक भारतीय मातृत्व की सर्वोत्तम परंपरा और एक मां की बहादुरी और सहनशक्ति का प्रतीक है। देश की तरह ऐसी माताओं को भी हमें नमन करना चाहिए।

किताब दिल को छू लेने वाली और दिल दहला देने वाली है। किताब का हर पन्ना भावुक करने वाला और आंखें नम करने वाला है। हर रोज कैसे एक भारतीय मां अपनी वीरता और बलिदान से देश की पीढ़ियों की रक्षा करने में सर्वस्व न्यौछावर कर देती है, यह पुस्तक इसी बात का एहसास कराती है।

सामान्य मां के जीवन को हल्के में लेने वाले लोगों के लिए भी यह आंखें खोलने वाला है। किताब पढ़ना एक आध्यात्मिक अनुभव सरीखा है। पुस्तक को बातचीत के अंदाज में और आसान शैली में लिखा गया है। पाठक बेहद नजदीक से लेखक की जीवन यात्रा में महसूस कर सकता है।
पेशे से शिक्षक रहीं डॉ. कृष्णा सक्सेना ने यह किताब अपनी और अपने बेटे शिव की आत्मकथा के रूप में लिखी है। शिव विकलांग (differently abled) हैं  और अपनी कहानी स्वयं नहीं लिख सकते। पुस्तक का हर अध्याय उनके बेटे के जीवन के अद्भुत क्षणों को जीता है।

यह कहानी उसी क्षण से शुरू हो जाती है, जब परिवार को पहली बार पता चलता है कि शिव किसी अन्य बच्चे की तरह नहीं है। सबका जीवन बदल जाता है लेकिन सबसे बढ़कर एक मां का जीवन बदलता है। अपने बेटे शिव के बड़े होने की कहानी को लेखक ने बेहतरीन तरीके से समेटा है।
लखनऊ विश्वविद्यालय से 1955 में पीएचडी की डिग्री लेने वाली पहली महिला का सम्मान पाने वाली डॉ. कृष्णा सक्सेना कहती हैं, मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं शिव के साथ अपने जीवन के बारे में लिख सकती हूं। लेकिन उम्र के साथ मुझे एहसास हुआ कि एक ऐसे बच्चे को आवाज देना भी मेरी जिम्मेदारी है, जिसकी अपनी कोई आवाज नहीं है और उसकी आवाज मेरी अपनी आवाज से इतनी उलझी हुई है कि यह किताब दो लोगों की एक आत्मकथा के रूप में सामने आई है।
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