कांग्रेस में अलविदा कहने को क्यों मजबूर सिंधिया, सबसे लोकप्रिय चेहरे के अकेले पड़ने की इनसाइड स्टोरी
भोपाल। मध्य प्रदेश में 15 साल बाद सत्ता में वापस लौटी कांग्रेस सरकार 15 महीने में ही आईसीयू में पहुंच गई है। गुटबाजी और क्षत्रपों के लिए पहचाने जाने वाली पार्टी के अंदर अंतर्कलह इस कदर सामने आ गए है कि अब कमलनाथ सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैंं।
मुख्यमंत्री कमलनाथ और सिंधिया के बीच सियासी जंग अब इस मोड़ पर पहुंच गई है जहां से दोनों की राह अलग- अलग होती दिख रही है। प्रदेश में काफी लंबे अरसे से अलग थलग से चले रहे सिंधिया अब पार्टी को अलविदा कहने के मोड़ पर दिखाई दे रहे हैंं। सिंधिया के भाजपा में शामिल होने और अलग से पार्टी बनाने की अटकलें तेज हो गई है।
सत्ता में रहते हुए कांग्रेस में छिड़े इस सत्ता संघर्ष के पीछे की कहानी वैसे तो वर्तमान में राज्यसभा चुनाव से जुड़ती हुई नजर आती है लेकिन इसकी जड़ें तो विधानसभा चुनाव के नतीजों और कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने से जुड़ी हुई है। विधानसभा चुनाव में प्रदेश में कांग्रेस की जीत के बाद भी जब सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग जोर शोर से उनके समर्थक विधायकों ने उठाई थी लेकिन कांग्रेस हाईकमान यानि राहुल गांधी ने सीधे दखल देकर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया था।
लोकसभा चुनाव से सिंधिया का कद घटा – मुख्यमंत्री की रेस में कमलनाथ से पिछड़ने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए लोकसभा चुनाव के नतीजे हतप्रभ करने वाले थे। लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सिंधिया का कद बढ़ाते हुए उन्हें बहन प्रियंका गांधी के साथ पार्टी का महासचिव बनाते हुए पश्चिमी उत्तर प्रदेश की अहम जिम्मेदारी सौंपी थी।
इसके साथ ही पार्टी ने उन्हें उनकी पारंपरिक सीट गुना शिवपुरी सीट से ही चुनाव मैदान में उतारा था । यह तय था कि अगर कांग्रेस केंद्र में अच्छा प्रदर्शन करती तो ज्योतिरादित्य सिंधिया के एक बड़ी भूमिका देखने को मिलती, लेकिन लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद तस्वीर एकदम से पलट गई । जहां कांग्रेस बुरी तरह हार गई वहीं खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया भी अप्रत्याशित तरीके से अपने गढ़ गुना-शिवपुरी सीट से भी चुनाव हार गए । चुनाव के बाद अब जब राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ दिया तो उनके विश्वस्त सहयोगी सिंधिया पार्टी के अंदर एकदम अकेले पड़ गए।
राज्यसभा की दावेदारी संकट से अलग रास्ता – लोकसभा चुनाव के नतीजों और सिंधिया की करारी हार के बाद एकाएक सिंधिया समर्थकों ने अपने ‘महाराज’ को प्रदेश कांगेस की कमान देने की मांग तेज कर दी। मध्य प्रदेश में जहां कांग्रेस सत्ता में वहां पर सिंधिया प्रदेश अध्यक्ष बन कर एक पॉवर सेंटर बनने की कोशिश कर रहे है, लेकिन वह कमलनाथ और दिग्विजय खेमे के आगे कामयाब नहीं हुए।
विधानसभा चुनाव के होने के 15 महीने बाद भी सत्ता और संगठन पर कमलनाथ का ही कब्जा है और जब राज्यसभा चुनाव के लिए सिंधिया की दावेदारी की बात आई तो उनको दरकिनाकर किए जाने की खबरों के बाद सिंधिया और उनके समर्थकों का सब्र का बांध टूट गया और अब वह पार्टी को अलविदा कहने के मोड़ पर आ गए है।
सिंधिया समर्थकों ने पार्टी से बगावती तेवर दिखाकर आलाकमान पर अब प्रेशर बना दिया है वहीं दूसरी ओर जिस तरह देर रात भोपाल में कमलनाथ के गुट के मंत्रियों ने मुख्यमंत्री के प्रति आस्था जताकर अपना सामूहिका इस्तीफा सौंप दिया उसके बाद अब सिंधिया के पास वापसी के लिए बहुत अधिक रास्ते नहीं बचे है।