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Written By सुरेश डुग्गर
Last Updated : शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2019 (15:06 IST)

भारत के 'पानी बम' से बर्बाद होगा पाकिस्तान, कश्मीर को होगा 8000 करोड़ का फायदा

भारत के 'पानी बम' से बर्बाद होगा पाकिस्तान, कश्मीर को होगा 8000 करोड़ का फायदा - India water bomb will destroy Pakistan
भारत सरकार ने जहां एक व्यास, रावी और सतलज का अपने हिस्से का पानी पाकिस्तान नहीं जाने के निर्णय किया है, वहीं अब यह भी बात सामने आ रही है कि भारत पाकिस्तान के हिस्से का पानी भी रोक सकता है। हालांकि यह सब कुछ इतना आसान नहीं होगा, लेकिन यदि भारत सरकार ऐसा करने में सफल रहती है तो इससे जम्मू-कश्मीर को होने वाला 8000 करोड़ रुपए साल का नुकसान रुक जाएगा। इससे न सिर्फ राज्य के खेतों में सिचाई हो सकेगी बल्कि बिजली भी पैदा की जा सकेगी। हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि पानी रोकने के लिए बांध बनाने में ही अभी लंबा समय लग जाएगा। 
 
यह चौंकाने वाला तथ्य है कि 19 सितंबर 1960 को पाकिस्तान के साथ हुई सिंधु जलसंधि के दुष्परिणामस्वरूप कश्मीर को उन तीन पूर्वी नदियों पर बांध बनाने या सिंचाई की खातिर पानी रोकने को बैराज बनाने की अनुमति नहीं है, जिसे एक तरह से इस संधि के तहत पाकिस्तान के हवाले किया जा चुका है।
 
इतना जरूर है कि कश्मीरी जनता की कीमत पर जिन तीन तीन पश्चिमी नदियां- रावी व्यास और सतलज के पानी को भारत ने अपने पास रखा था, वे आज पंजाब तथा उसके पड़ोसी राज्यों के बीच झगड़े की जड़ बनी हुई हैं। 
 
स्पष्ट शब्दों में कहें तो यह संधि ही सारे फसाद की जड़ है। कश्मीर की बेरोजगारी तथा आर्थिक विकास न होने के लिए भी यही दोषी ठहराई जा सकती है। इस संधि के तहत कश्मीर सरकार अपने जहां बहने वाले तीनों दरियाओं के पानी को एकत्र कर नहीं रख सकती। अर्थात उसे ऐसा करने का कोई हक नहीं तो साथ ही इन दरियाओं पर बनने वाले बांधों की अनुमति भी पाकिस्तान से लेनी पड़ती है। तभी तो दरिया चिनाब पर बन रही बगलिहार पनबिजली परियोजना में पाकिस्तान अड़ंगा लगाए हुए है। इस परियोजना के डिजाइन को लेकर उसे आपत्ति है कि यह परियोजना प्रतिदिन 7000 क्यूसेक पानी के बहाव को प्रभावित करेगी।
 
पाकिस्तान की बात तो भारत सरकार भी सुनती है। तभी तो पाक विशेषज्ञों की टीम को बगलिहार परियोजना स्थल के निरीक्षण की अनुमति दे दी गई थी, लेकिन कश्मीर सरकार की बातों को तो सुना-अनसुना कर दिया जाता रहा है। वह इसके प्रति भी कोई जवाब देने को तैयार नहीं है कि प्रतिवर्ष इस जलसंधि के कारण राज्य को होने वाले रुपए 8000 करोड़ के घाटे की भरपाई कौन करेगा। फिलहाल केंद्र ने न ही इसके प्रति कोई आश्वासन दिया है और न ही उसने कोई धनराशि बतौर भरपाई राज्य को दी है।
 
इस मुद्दे को माकपा विधायक युसूफ तारीगामी वर्ष 2001 में विधानसभा में उठा चुके हैं। पीडीपी की महबूबा मुफ्ती भी मुद्दे के प्रति गंभीर है। मगर वर्तमान सरकार कोई ऐसा कदम नहीं उठा पाई है जिससे जलसंधि से होने वाली क्षति की भरपाई हो सके। इतना जरूर था कि तत्कालीन नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार ने तो इस जलसंधि को समाप्त करने के लिए बकायदा एक नोट केंद्र सरकार को भिजवा दिया था, परंतु कोई प्रतिक्रिया केंद्र की ओर से व्यक्त नहीं की गई क्योंकि वह जानता था कि सिंधु जलसंधि को समाप्त कर पाना इतना आसान नहीं है जितना समझा जाता रहा है।
 
1960 में नेहरू ने की थी जलसंधि : असल में 19 सितंबर 1960 को तत्लीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू तथा पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच हुई इस जलसंधि को विश्व बैंक की गारंटी तो है ही साथ ही इस संधि में ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जर्मनी, न्यूजीलैंड, ब्रिटेन तथ अमेराका भी सीधे तौर पर शामिल हैं।
 
हालांकि भारतीय संसद पर हुए हमले और उड़ी और पुलवामा के हमलों के बाद यह चर्चाएं जोरों पर थीं कि भारत जलसंधि को समाप्त कर पाकिस्तान पर इस ‘परमाणु बम’ को फोड़ सकता है। लेकिन कुछ ऐसा होता दिख नहीं रहा है और जम्मू कश्मीर की जनता को उसी स्थिति में छोड़ दिया गया था जिसमें वह थी। याद रहे कि संधि को तोड़ने का सीधा अर्थ है कि पाकिस्तान को आर्थिक रूप से पूरी तरह से नेस्तनाबूद कर देना। पाकिस्तान भी इस सच्चाई से वाकिफ है। जहां तक कि पाकिस्तान इसे भी जानता है कि अगर इन तीनों दरियाओं के पानी के एक प्रतिशत हिस्से को भी भारत रोक ले तो पाकिस्तान की कम से कम 14 लाख जनता अपने खेतों को पानी देने से वंचित हो जाएगी।
 
बदकिस्मती जम्मू कश्मीर की जनता की यह है कि वह पड़ोसी मुल्क के साथ होने वाली संधि के कारण नुकसान उठाने को मजबूर है पिछले 60 सालों से। यह कब तक चलता रहेगा कोई नहीं जानता क्योंकि भारत सरकार इस पर चुप्पी साधे हुए है तो जम्मू कश्मीर के सूखे पड़े हुए खेत पानी की आस में केंद्र की ओर जरूर टकटकी लगाए हुए हैं।