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Last Updated : शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018 (18:20 IST)

बैंकों के एनपीए में दबे हो सकते हैं ऐसे कई घोटाले

बैंकों के एनपीए में दबे हो सकते हैं ऐसे कई घोटाले - India's fraud problems extend far beyond PNB
नई दिल्ली। देश के दूसरे सबसे बड़े सार्वजनिक बैंक,पंजाब नेशनल बैंक, में हुए महाघोटाले ने देश में नया सियासी तूफान ला दिया है। कथित तौर पर 11360 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी में अरबपति नीरव मोदी पर एफआईआर दर्ज कर ली गई है। आश्चर्य की बात यह है कि अरबों रुपए का यह घोटाला मुंबई की सिर्फ एक ब्रांच का है। 
 
ऐसी हालत में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या दूसरे बैंकों की तमाम दूसरी शाखाओं में ऐसे घोटालों की आशंका से इनकार किया जा सकता है? यह सभी जानते हैं कि घोटालों के अलावा देश की तमाम बैंकों की एनपीए (नॉन परफार्मिंग एसेट्‍स) भी लगातार बढ़ता जा रहा है। बैंकों का एनपीए जिस तेजी से बीते चार बरस में बढ़ा है, उसने बैंकों की खस्ता हालत सतह पर ला दी है जबकि केन्द्रीय सरकारों और रिजर्व बैंक पर इस पर परदा डालने का काम किया जाता रहा है।
 
इस संबंध में उल्लेखनीय है कि मार्च 2014 में ही एनपीए जहां 2,04,249 करोड़ रुपए था, वहीं जून 2017 में बढ़कर यह 8,29,338 करोड़ रुपए तक पहुंच गया। सिर्फ मोदी के कार्यकाल में एनपीए करीब चार गुना बढ़ चुका है। देश के तमाम बैंक किस कदर एनपीए के जाल में उलझे हैं, इसे देश के 25 बैंकों के एनपीए से समझा जा सकता है। लेकिन एनपीए पर पीएम मोदी संसद में कह चुके हैं कि ये 'पाप' पुरानी सरकार का है।
 
बैंक -  एनपीए (करोड़ रुपए में), भारतीय स्टेट बैंक 1,88,068,  पंजाब नेशनल बैंक  57,721,  बैंक ऑफ इंडिया  51,019, आईडीबीआई बैंक  50,173, बैंक ऑफ बड़ौदा 46,173,  आईसीआईसीआई बैंक 43,148, केनरा बैंक  37,658, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया  37,286, इंडियन ओवरसीज बैंक 35,453, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया 31,398, यूको बैंक 25,054, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स  24,409,  एक्सिस बैंक लिमिटेड  22,031, कॉरपोरेशन बैंक  21, 713, इलाहाबाद बैंक  21,032, सिंडिकेट बैंक 20,184, आंध्रा बैंक 19,428, बैंक ऑफ महाराष्ट्र 18,049, देना बैंक 12,994, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया 12,165, इंडियन बैंक  9,653, एचडीएफसी बैंक 7,243, विजया बैंक 6,812,  पंजाब और सिंध बैंक   6,693, जम्मू व कश्मीर बैंक  5,641 करोड़ रुपए।      
 
एक ओर जहां बैंक सुविधाओं के नाम पर प्रत्येक सुविधा के नाम पर ग्राहक की जेब से पैसे निकालने की नीति अपनाते हैं, वहीं 25 बैंकों की यह लिस्ट बताती है कि जनता का पैसा कैसे लोन के तौर पर रईसो में बांटा जाता है। बैंकों को यह पैसा लौटाया नहीं गया तो इसे एनपीए खाते में डाल दिया गया।
 
अगर एनपीए की तहें खोली जाएं तो देश के कई बैंकों में ऐसे हजारों करोड़ के ऐसे घोटाले सामने आ सकते हैं जो चुनावी मौसम में सरकार की छवि खराब कर सकते हैं, भले ही घोटाले किसी भी दौर में हुए हों। केन्द्र की यह सरकार पल्ला झाड़ लेती है कि यह पिछली सरकारों के पाप हैं लेकिन जो एनपीए मार्च, 2014 के बाद बढ़ा है, क्या उसके बारे में भी मोदीजी का यही जवाब होगा?
 
रिजर्व बैंक ने फंसे कर्ज को निपटाने के लिए नियमों में बड़ा बदलाव किया है। बैंक ने संशोधित रुपरेखा में दबाव वाली परिसंपत्तियों की 'जल्द पहचान' करने, निपटान योजना के समय से पालन करने और उस अवधि में बैंकों के विफल रहने पर उन पर जुर्माना लगाने के लिए खास नियम बनाए हैं, लेकिन सवाल यही है कि क्या चुनावी मौसम में बड़े कॉरपोरेट घरानों और घोटालेबाजों पर कार्रवाई हो सकती है?
 
इस तरह के घोटाले, फ्रॉड ट्रांजैक्शन सिर्फ पीएनबी ही नहीं बल्कि अन्य बैंकों में भी हुए हैं जिसमें यूनियन बैंक, एसबीआई ओवरसीज बैंक, एक्सिस बैंक और इलाहाबाद बैंक भी शामिल हैं। इसमें यूनियन बैंक में 2300 करोड़, इलाहाबाद बैंक में 2000 करोड़ और एसबीआई (ओवरसीज) में 960 करोड़ रुपए का ट्रांजैक्शन हुआ है। 
 
आश्चर्यजनक बात यह है कि यह जालसाजी सात पहले साल ही अंजाम दी गई थी, इसके बावजूद पीएनबी के उच्च‍ाधिकारियों को इसका पता नहीं चल पाया। इस जालसाजी के सामने आने के बाद PMLA की धारा 3 के तहत मामला दर्ज किया गया है। वित्त मंत्रालय के निर्देश मिलने पर सीबीआई ने भी मामला दर्ज कर लिया है। यही नहीं, सेबी भी न सिर्फ बैंक बल्कि शेयर बाजार में लिस्टेड कई कंपनियों के खिलाफ जानकारी छिपाने के मामले में जांच शुरू कर सकती है।
 
विदित हो कि मार्च 2018 में बैंकों का एनपीए 9.5 लाख करोड़ का हो जाएगा जबकि 2017 में यह 8 लाख करोड़ था। यानी एक साल में बैंकों का डेढ़ लाख करोड़ लोन डूब गया। यह खबर सारे अखबारों में छपी है। इसी क्रम में यह भी जान लें कि वायर डॉट इन में 13 फरवरी को हेमिंद्र हजारी की रिपोर्ट पढ़ सकते हैं। भारतीय स्टेट बैंक ने रिजर्व बैंक को बताया है कि बैंक ने 31 मार्च 2017 को समाप्त अपने वित्तीय वर्ष के लिए मुनाफे और एनपीए की रकम के बारे में गलत सूचना दी है। 
 
बैंक ने नॉन प्रोफिट एसेट्स के बारे में 21 फीसदी राशि कम बताई है। यानी लोन डूबा 50 रुपए का तो बताया कि 39 रुपया ही डूबा है। यही नहीं, मुनाफे को 36 फीसदी बढ़ा-चढ़ाकर बताया है। भारत का सबसे बड़ा बैंक है एसबीआई। क्या उसकी सालाना रिपोर्ट में घाटे और मुनाफे की रकम में इतना अंतर आ सकता है? लेकिन बड़े पैमाने पर होने वाली लीपापोती के कारण इनकी जानकारी भी समय पर नहीं मिल पाती है।
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