symptoms of suicide: मानसिक तनाव, अवसाद और निराशा की स्थिति में कुछ लोग आत्महत्या जैसा घातक कदम उठा लेते हैं। कोरोना काल के बाद उत्पन्न हुईं विपरीत परिस्थितियों के चलते खुदुकशी करने वालों की संख्या में चिंताजनक रूप से इजाफा हुआ है। कोचिंग नगरी कोटा में जेईई और नीट की तैयारी कर रहे 23 विद्यार्थियों ने इस साल (2023) खुदकुशी कर ली। पिछले 3-4 सालों में यह सबसे बड़ा आंकड़ा है।
आत्महत्या के मामलों को काफी हद तक रोका भी जा सकता है, यदि समय रहते ऐसे व्यक्तियों के लक्षणों को पहचान लिया जाए। ऐसे लोगों को काउंसलिंग और उचित उपचार मिल जाए तो कई जानों को बचाया जा सकता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि 70 फीसदी व्यक्तियों में आत्महत्या के लक्षणों को पहचाना जा सकता है।
इंदौर शहर में 18 से ज्यादा सालों से कार्यरत पुनर्वास मनोवैज्ञानिक माया बोहरा ने वेबदुनिया से बातचीत में बताया कि 70 फीसदी व्यक्तियों में आत्महत्या के लक्षणों को पहचाना जा सकता है। वे 2012 से आत्महत्या की रोकथाम के लिए काम कर रही हैं। ऐसे व्यक्तियों की पहचान के बारे में बोहरा कहती हैं कि व्यक्ति के सामान्य व्यवहार में अचानक आमूलचूल परिवर्तन आ जाए और यह बदलाव 15 दिन से ज्यादा समय तक बना रहे तो यह अलार्मिंग साइन होता है।
इसके अलावा सामान्य से ज्यादा खाना या सामान्य से बहुत कम खाना, बहुत ज्यादा सोना या नींद का उड़ जाना, अत्यधिक रोना, अकेले रहना, गुमसुम रहना आदि ऐसे लक्षण हैं, जिनके प्रति जागरूक रहने की जरूरत है। इस तरह के व्यक्ति आत्मघाती कदम उठा सकते हैं। किसी काम में मन नहीं लगना, एकाग्रता में कमी आ जाना, निर्णय लेने की क्षमता कम होना या निर्णय नहीं ले पाना जैसे लक्षण भी संकेत देते हैं कि वह व्यक्ति खुदकुशी कर सकता है।
शाब्दिक लक्षण : बोहरा कहती हैं कि व्यावहारिक ही नहीं, शाब्दिक लक्षण भी होते हैं जिनके माध्यम से आत्महत्या करने वाले व्यक्ति की पहचान की जा सकती है। एक शोध के मुताबिक 70 फीसदी लोग अपनी भावनाओं को शब्दों के माध्यम से व्यक्त करते हैं। हम उन्हें या तो समझ नहीं पाते या फिर उन्हें नजरअंदाज कर देते हैं।
इस तरह के व्यक्ति आपको अक्सर इस तरह की बातें करते हुए दिखाई दे सकते हैं। जैसे- अब मेरे रहने से कोई फायदा नहीं है, ऐसे जीने से बेहतर है मर जाऊं, मेरा कुछ नहीं हो सकता, मैं लोगों पर बोझ नहीं बनूंगा, मेरी कोई मदद नहीं कर सकता आदि। यदि व्यक्ति इस तरह के शब्दों को बार-बार दोहराता है तो हमें इन पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है। आमतौर पर जब हम किसी व्यक्ति से इस तरह की बातें सुनते हैं तो उन्हें यह कहकर चुप करा देते हैं कि ऐसा नहीं सोचते। उन्हें ढेर सारी समझाइश भी दे देते हैं।
माया बोहरा कहती हैं कि सोशल मीडिया के दौर में कुछ और भी लक्षण हैं, जिनसे व्यक्ति की मन:स्थिति को पहचाना जा सकता है। लगातार नकारात्मक पोस्ट डालना, कविताएं, लेख, पिक्चरें पोस्ट करना, सोशल मीडिया या इंटरनेट पर घातक चीजें सर्च करना भी इसी ओर संकेत करता है।
इसके अलावा वयस्क व्यक्ति द्वारा यह हिदायत देना कि मेरे बाद बच्चों के लिए मैंने व्यवस्था कर दी है। यदि कोई इस तरह की बात एकाध बार करता है तो इसे जागरूकता की श्रेणी में रखा जा सकता है, लेकिन यदि बार-बार ऐसा करता है तो इसे गंभीरता से लेना चाहिए।
और भी हैं लक्षण : इसके अलावा धन बांट देना, बैंक अकाउंट बंद कर देना, यह कहते हुए अपनी चीजों को बांट देना कि मेरे बाद तुम इनका ज्यादा खयाल रखोगे। दुखी रहने के बाद अचानक खुश होना, अचानक लोगों मिलना-जुलना शुरू करना या उनसे बिलकुल दूरी बना लेना ऐसे लक्षण हैं, जो दर्शाते हैं कि ऐसा व्यक्ति आत्महत्या जैसा घातक कदम उठा सकता है।
क्या परिवार और समाज कर सकते हैं मदद : माया बोहरा कहती हैं कि बोहरा कहती हैं कि निश्चित ही ऐसे व्यक्तियों की परिवार और समाज मदद कर सकते हैं। क्योंकि इस तरह के लोगों में ट्रिगर परिवार और समाज से ही मिलते हैं। ऐसे में उस व्यक्ति को सेफ फील करवाना परिवार, समाज और मित्रों का काम है।
हालांकि मानसिक बीमारी या डिप्रेशन डॉक्टर के बिना ठीक नहीं हो सकता। मेंटल ट्रीटमेंट डॉक्टर ही करेगा। ऐसे व्यक्तियों को काउंसलिंग और थैरेपी की भी आवश्यकता होती है। इसके लिए विशेषज्ञ की मदद जरूरी होती है। यदि तीनों स्तर पर ऐसे व्यक्ति को मदद मिल जाती है तो वह बहुत जल्दी अवसाद से बाहर आ जाता है आत्महत्या करने के अपने फैसले को बदल देता है।